बुधवार का पंचांग, Budhwar Ka Panchang, 6 नवम्बर 2024 का पंचांग,

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आप सभी को लाभ पंचमी, छठ पूजा के दूसरे दिन की हार्दिक शुभकामनायें


बुधवार का पंचांग, Budhwar Ka Panchang, 30 अक्टूबर 2024 का पंचांग,

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पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :- 1:- तिथि (Tithi) 2:- वार (Day) 3:- नक्षत्र (Nakshatra) 4:- योग (Yog) 5:- करण (Karan)

पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
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बुधवार का पंचांग (Budhwar Ka Panchang)


6 नवम्बर 2024 का पंचांग, ( Panchang ), 6 November 2024 ka Panchang,

गणेश गायत्री मंत्र :
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात ।।

।। आज का दिन मंगलमय हो ।।

* दिन (वार) – बुधवार के दिन तेल का मर्दन करने से अर्थात तेल लगाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है धन लाभ मिलता है।
बुधवार का दिन विघ्नहर्ता गणेश का दिन हैं। बुधवार के दिन गणेश जी के परिवार के सदस्यों का नाम लेने से जीवन में शुभता आती है।

शरद पूर्णिमा के दिन इस उपाय से जीवन भर भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की मिलेगी असीम कृपा,


बुधवार के दिन गणेश जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके लड्डुओं का भोग लगाकर उनकी की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

इस उपाय से शरीर रहेगा निरोगी, शक्ति रहेगी भरपूर, बुढ़ापा पास भी नहीं आएगा, जानिए रोगनाशक दिव्य आहार,

* बुधवार को सभी ग्रहो के राजकुमार बुध देव की आराधना करने से ज्ञान मिलता है, वाकपटुता में प्रवीणता आती है, धन लाभ होता है ।

बुधवार को गाय को हरा चारा खिलाने तथा रात को सोते समय फिटकरी से दाँत साफ करने से आर्थिक पक्ष मजबूत होता है ।

नवरात्री में इस तरह से करें कन्या पूजन, सभी तरह के वास्तु दोष, विघ्न, भय और शत्रुओं का होगा नाश

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*विक्रम संवत् 2081,
*शक संवत – 1945
*कलि संवत 5124
*अयन – दक्षिणायन
*ऋतु – शरद ऋतु
*मास – कार्तिक माह
*पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – मिथुन, कर्क, तुला, धनु, कुम्भ, मीन,

बुधवार को बुध की होरा :-

प्रात: 6.37 AM से 7.31 AM तक

दोपहर 12.59 PM से 1.53 PM तक

रात्रि 19.43 PM से 8.48 PM तक

बुधवार को बुध की होरा में हाथ की सबसे छोटी उंगली और बुध पर्वत को हल्के हल्के रगड़ते हुए अधिक से अधिक बुध देव के मन्त्र का जाप करें ।

ज्योतिष, पढ़ाई, लिखाई, सीखने, वाकपटुता, अपना प्रभाव डालने और व्यापार में सफलता के लिए बुध की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

बुधवार के दिन बुध की होरा में बुध देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

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बुध देव के मन्त्र

“ॐ बुं बुधाय नमः” अथवा

“ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:।।”

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  • तिथि (Tithi) – पंचमी 12.41 AM, 7 नवम्बर तक I
  • तिथि के स्वामी – पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता जी है ।

पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता है। पंचमी तिथि को नाग देवता की पूजा करने से काल सर्प दोष दूर होता है, नाग के काटने का भय नहीं रहता है ।

पंचमी तिथि के समय भगवान शिव का पूजन शुभ माना गया है, मान्यता है कि भगवान शिव कैलाश में निवास करते हैं। पंचमी तिथि को शिवलिंग का जिस पर नाग बना हो दूध या पंचामृत से अभिषेक करने से नाग देवता प्रसन्न होते है।

पंचमी जब शनिवार के दिन होती है, तो वह मृत्युदा योग बनाती है। यह अशुभ योग माना गया है।

जब पंचमी तिथि गुरुवार के दिन होती है तो बहुत ही शुभ सिद्धिदा योग बनता है। शास्त्रों के अनुसार सिद्धिदा योग में किए गए कार्य श्रेष्ठ फल प्रदान करते है।

प्रत्येक पंचमी के दिन नागो के अति पवित्र और पुण्यदायक नामो 1. अनंत (शेषनाग ), 2. वासुकि, 3. तक्षक, 4. कर्कोटक, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. शंख, 8. कुलिक, 9. धृतराष्ट्र और 10. कालिया का उच्चारण करने से काल सर्प दोष दूर होता है, कोई भी भय निकट नहीं रहता है, बल और साहस की प्राप्ति होती है ।

पंचमी को नागो के पौराणिक नाम “अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटल, पिंगल” का कम से कम 11 बार उच्चारण अवश्य ही करें।

हिन्दू पंचांग के अनुसार पंचमी  तिथि को  बसंत पंचमी,  रंग पंचमी, विवाह पंचमी, नाग पंचमी, ऋषि पंचमी, सौभाग्य पंचमी आदि कई शुभ पर्व आते है ।

पंचमी तिथि पूर्णा तिथियों की श्रेणी में आती है, इस तिथि में समस्त शुभ कार्य सिद्ध होते हैं, किन्तु पंचमी तिथि को कर्ज नहीं देना चाहिए।  

पंचमी को बेल खाना निषेध है, मान्यता है कि पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है।  

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आज लाभ पंचमी, सौभाग्य पंचमी का पर्व है । लाभ पंचमी का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। 2024 में यह पर्व 06 नवम्बर शनिवार को मनाया जायेगा।

इस पर्व को भारतवर्ष में दीपावली के अंतिम पर्व के रूप में मनाया जाता है । लाभ पंचमी का पर्व मां लक्ष्मी को दिवाली जितना ही प्रिय है। इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा अत्यंत फलदाई मानी जाती है  ।

लाभ पंचमी गुजरात और विशेषकर महाराष्ट्र में बहुत श्रद्धा से मनाई जाती है। गुजरात में यह माना जाता है कि लाभ पंचमी का दिन अत्यंत शुभ होता है, इस दिन गणेश जी – लक्ष्मी जी की पूजा करने, नए व्यापार करने, नए सौदे करने से उनका भाग्योदय होगा ।    

आज माँ लक्ष्मी जी के अष्ट लक्ष्मी स्वरूपों की पूजा करने से माँ लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती है ।

गुजरात में गुजराती नववर्ष का प्रारम्भ दिवाली के अगले दिन से होता है। सभी लोग इस दिन से आने वाले चार दिनों के लिए छुट्टियों पर चले जाते हैं और लाभ पंचमी के दिन से ही वापस अपना कार्य शुरू करते हैं।

इस दिन विशेषकर भगवान शिव का पूजन करना विशेष फलदायी होता है। लाभ पंचमी के दिन पूरे मन से भगवान शिव की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति आती है और जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है।

इस दिन गणेश जी और माँ लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, मान्यता है इस दिन गणेश जी की पूजा करने से पूरे साल व्यापार, कार्यो में विघ्न नहीं आते है ।

लाभ पँचमी के दिन गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए सर्वप्रथम उन्हें रोली ,लाल सिंदूर का तिलक लगाएं।

दूर्वा गणेश जी को अत्यंत प्रिय है शास्त्रों के अनुसार दूर्वा में अमृत मौजूद होता है। इस दिन “इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः” मंत्र बोलते हुए इन्हें 5/7 /11/21 दूर्वा यानी हरी घास गिन कर अर्पित करें। ध्यान रहे कि दुर्वा गणेश जी के मस्तक पर रखना चाहिए उनके चरणों में दुर्वा नहीं रखें।

शमी गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। इस दिन भगवान गणेश जी को शमी के पत्ते अवश्य ही अर्पित करें ।

लाभ पंचमी के दिन से भगवान गणपति को अपनी मनोकामना बोलते हुए लगातार 21 / 42 दिन तक जयवित्री चढ़ाएं , इससे भगवान विघ्नहर्ता की कृपा से निश्चय ही सोचे हुए कार्य पूर्ण होते है।

कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को पांडव पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार पांडवों ने कौरवों को भगवान श्रीकृष्ण के आदेश से  जिस दिन हराया था, उस दिन  कार्तिक शुक्ल की पंचमी थी। इसीलिए तभी से इस दिन पांचों पांडवों की पूजा होती, इस दिन को पांडव पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को छठ पर्व या षष्‍ठी पूजा का पर्व मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व का सम्बन्ध राजा प्रियव्रत की एक पौराणिक कथा से है।

इस कथा के अनुसार पष्ठी माता का व्रत रखकर, पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान के साथ छठी माता की पूजा करने के बाद राजा प्रियव्रत को उनका मरा हुआ पुत्र वापस जीवित मिला था।

छठ पूजा की शुरुआत दिवाली के 6 दिनों बाद होती है जो चौथे दिन सुबह सूर्य देव को अर्घ देकर समाप्त होती है । इस साल 2024 में छठ पूजा 5 नवम्बर से नहाय-खाय के साथ शुरू हो चुकी है आज खरना है, छठ पूजा 8 नवम्बर को प्रात:कालीन सूर्य देव को अर्घ्य के साथ समाप्त हो जाएगा ।

छठ पूजा के दूसरे दिन को “लोहंडा-खरना” कहा जाता है । इस दिन लोग उपवास रखकर शाम के समय खीर का सेवन करते हैं । यह खीर गन्ने के रस की बनी होती है, इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं किया जता है ।

धर्म शास्त्रों के अनुसार माता सीता ने त्रेतायुग में और द्रौपदी जी ने द्वापर युग में छठ पूजा का व्रत रखकर भगवान सूर्यदेव को अर्ध्य दिया था।

नक्षत्र (Nakshatra) – मूल 11 AM तक तत्पश्चात पूर्वाषाढ़ा

नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी-       मूल नक्षत्र के देवता निॠति (राक्षस) एवं स्वामी केतु जी है ।

मूल नक्षत्र का नक्षत्र मंडल में 19वां स्थान है। ‘मूल’ का अर्थ ‘जड़’ होता है।  ज्योतिष शास्त्र में गंडमूल नक्षत्र के अंतर्गत अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को रखा गया है।

ज्योतिषियों का मानना है कि अगर बच्चे का जन्म गंडमूल नक्षण में हो तब उस की शांति अवश्य करा लेनी चाहिए अन्यथा इसका अशुभ परिणाम प्राप्त होता है।

गंडमूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो, तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। लेकिन यदि बच्चे का जन्म अगर मंगलवार अथवा शनिवार के दिन हुआ है तो इसके अशुभ प्रभाव बढ़ जाते हैं।

मूल नक्षत्र में जन्मा जातक शांतिप्रिय, आकर्षक, साहसी, राजनीति में निपुण, धनवान, चतुर, वाकपटु, सौभाग्यशाली, ज्ञानवान और धार्मिक स्वभाव का होता है।

मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को रविवार को छोड़कर सदैव या समय समय पर पीपल के वृक्ष में प्रसाद और जल चढ़ाते रहना चाहिए । मूल नक्षत्र सितारे का लिंग तटस्थ है।

मूल नक्षत्र का आराध्य वृक्ष साल और नक्षत्र का स्वभाव तीक्ष्ण माना गया है ।

मूल नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 3 और 7, भाग्यशाली रंग, सुनहरा और क्रीम, भाग्यशाली दिन शनिवार, मंगलवार और बुधवार का माना जाता है ।

मूल नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ निॠतये नमः “। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।

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  • योग (Yog) – सुकर्मा 10.51 AM तक तत्पश्चात धृति
  • योग के स्वामी, स्वभाव :- सुकर्मा योग के स्वामी इंद्र जी और स्वभाव शुभ माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – बव 12.32 PM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-    बव करण के स्वामी इंद्र देव और स्वभाव सौम्य है ।
  • द्वितीय करण : – बालव 12.41 AM, 7 नवम्बर तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-   बालव करण के स्वामी ब्रह्म जी और स्वभाव सौम्य है ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- बुधवार को उत्तर दिशा में दिशा शूल होता है ।

    इस दिन कार्यों में सफलता के लिए घर से सुखा / हरा धनिया या तिल खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal) : – बुधवार को राहुकाल दिन 12:00 से 1:30 तक ।
  • सूर्योदय – प्रातः 6.37 AM
  • सूर्यास्त – सायं 17.32 PM
  • विशेष – पंचमी तिथि को बेल का सेवन नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि पंचमी को बेल का सेवन करने से अपयश मिलता है।
  • पंचमी तिथि को कर्ज भी नहीं देना चाहिए, पंचमी को कर्ज देने से धन डूब जाता है तथा धन के आगमन में भी रुकावटें आने लगती है ।
  • मुहूर्त :- लाभ पंचमीछठ पूजा का दूसरा दिन
  • पर्व त्यौहार-

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“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र (नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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