Shukrwar ka panchag, शुक्रवार का पंचांग, 1 नवंबर 2024 का पंचांग
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
गुरुवार का पंचांग शनिवार का पंचांग
शुक्रवार का पंचांग, Shukrwar ka panchag, 1 नवंबर 2024 का पंचांग,
शुक्रवार का पंचांग, shukrwar ka panchang,
- Panchang, पंचाग, Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang, पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-
1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी नित्य पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए, Shukravar Ka Panchang, शुक्रवार का पंचांग, आज का पंचांग, aaj ka panchang,
1 नवंबर 2024 का पंचांग, 1 November 2024 ka Panchang,
- महालक्ष्मी मन्त्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
- ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
आज का पंचांग, aaj ka panchang,
दिन (वार) – शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु पर जल चढ़ाकर उन्हें पीले चन्दन अथवा केसर का तिलक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
शुक्रवार के दिन नियम पूर्वक धन लाभ के लिए लक्ष्मी माँ को अत्यंत प्रिय “श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” एवं समस्त संकटो को दूर करने के लिए “माँ दुर्गा के 32 चमत्कारी नमो का पाठ” अवश्य ही करें ।
शुक्रवार के दिन माँ लक्ष्मी को हलवे या खीर का भोग लगाना चाहिए ।
शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।
- *विक्रम संवत् 2081,
- * शक संवत – 1946,
*कलि संवत – 5126
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – कार्तिक माह
* पक्ष – कृष्ण पक्ष
*चंद्र बल – मेष, वृषभ, सिंह, तुला, धनु, मकर,
शुक्रवार के दिन नियम पूर्वक धन लाभ के लिए लक्ष्मी माँ को अत्यंत प्रिय “श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” एवं समस्त संकटो को दूर करने के लिए “माँ दुर्गा के 32 चमत्कारी नमो का पाठ” अवश्य ही करें ।
शुक्रवार के दिन माँ लक्ष्मी को हलवे या खीर का भोग लगाना चाहिए ।
शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।
*कलि संवत – 5126
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – कार्तिक माह
* पक्ष – कृष्ण पक्ष
*चंद्र बल – मेष, वृषभ, सिंह, तुला, धनु, मकर,
शुक्रवार को शुक्र देव की होरा :-
प्रात: 6.33 AM से 7.28 AM तक
दोपहर 12.59 PM से 1.54 PM तक
रात्रि 19.54 PM से 8.50 PM तक
छोटी दीपावली पर अवश्य ही करे ये उपाय, पूरे वर्ष होती रहेगी धन की वर्षा
दाहिने हाथ के अंगूठे से नीचे के हिस्से ( शुक्र का स्थान ) और अंगूठे पर थोड़ा सा इत्र लगाकर, ( इत्र ना मिले तो उसके बिना भी कर सकते है) बाएं हाथ के अंगूठे से उस हिस्से को शुक्र की होरा में “ॐ शुक्राये नम:” या
‘ॐ द्रांम द्रींम द्रौंम स: शुक्राय नम:।’ मंत्र का अधिक से अधिक जाप करते हुए अधिक से अधिक रगड़ते / मसाज करते रहे ( कम से कम 10 मिनट अवश्य )I
यह उपाय आप कोई भी काम करते हुए चुपचाप कर सकते है इसके लिए किसी भी विधि विधान की कोई आवश्यकता नहीं है I
सुख समृद्धि, ऐश्वर्य, बड़ा भवन, विदेश यात्रा, प्रेम, रोमांस, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए शुक्रवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा में शुक्रदेव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शुक ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
शुक्र देव के मन्त्र :-
ॐ शुं शुक्राय नमः।। अथवा
” ॐ द्राम द्रीम द्रौम सः शुक्राय नमः “।।
दीपावली के दिन इस तरह से करें पूजा, मां लक्ष्मी, गणेश जी की मिलेगी असीम कृपा, अवश्य जानिए दीपावली की आसान पूजन विधि
- तिथि, (Tithi) :- अमावस्या 18.16 PM तक तत्पश्चात प्रतिपदा,
- तिथि के स्वामी – अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव जी और प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि देव जी है I
इस साल दिवाली 31 अक्टूबर को है या 1 नवम्बर को इस बारे में काफी भ्रम की स्थिति बनी है । दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर मनाई जाती है, और इस बार 31 अक्टूबर की रात में ही अमावस्या होगी।
लेकिन चूँकि उदया तिथि के हिसाब से अमावस्या का मान आज है और लगभग 45 मिनट का लक्ष्मी पूजन के लिए शाम का प्रदोष काल का समय भी मिल रहा है इसलिए देश में बहुत सी जगह बहुत से लोग आज भी दीपावली मना रहे है ।
पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3:52 बजे से शुरू होगी । एक नवंबर को अमावस्या शाम 6.16 बजे तक ही है ।
दिवाली के दिन लक्ष्मी – गणेश जी, कुबेर देव और देवराज इंद्र की पूजा करना अत्यंत फलदाई है । मान्यता है कि दीपावली के दिन शुभ मुहूर्त विशेषकर प्रदोष काल में लक्ष्मी – गणेश जी की पूजा करने से पूरे वर्ष सुख – सौभाग्य की प्राप्ति होती है, धन का आगमन लगातार बना रहता है ।
पूजन के समय गृह स्वामी हलके पीले, केसरी और स्त्री लाल या पीली साड़ी और घर के बाकि सदस्य भी हलके कपडे पहन कर ही पूजा में बैठे ।
दिवाली पूजा में विशेष रूप से माँ लक्ष्मी की आराधना की जाती है। माता लक्ष्मी का दूसरा नाम कमला है, यह विष्णु प्रिय भी कही गयी है । यह कमल के आसन पर हाथ में कमल को धारण किये हुए विराजमान है। लक्ष्मी जी दीपावली के दिन समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी ।
इस दिन घर एवं व्यापारिक प्रतिष्टान के मुख्य द्वार के दोनों ओर दीवार पर शुभ – लाभ , स्वास्तिक , ॐ , आदि सौभाग्य चिन्हों को सिंदूर से अंकित करें तत्पश्चात उस पर पुष्प रोली चड़ाकर प्रार्थना करनी चाहिए, अगर यह 31 अक्टूबर को नही कर पाएं है तो आज अवश्य ही करें ।
दिवाली पूजन का पूजन घर के पूजा कक्ष में अथवा तिजोरी रखने वाले कक्ष में करना उत्तम होता है ।
दिवाली पूजन में कमल गट्टा, पीली सरसों, शहद, साबुत धनिया, पीली कौडिय़ां, गोमती चक्र, नाग केसर, साबुत हल्दी की गांठ, कमल का फूल आदि का अवश्य प्रयोग करें I
लक्ष्मी गणेश, कुबेर जी की पूजा के साथ साथ, यदि घर में स्फुटिक श्री यंत्र, दक्षिण वर्ती शंख, नौ ग्रह यंत्र और यदि कोई अन्य भी यंत्र हो उनकी भी अवश्य ही पूजा करें । और उपरोक्त वस्तुओं को अपने घर के मंदिर अथवा तिजोरी में अवश्य ही रखें
दीवाली के दिन बही खाता, तुला आदि की भी अवश्य जी पूजा करनी चाहिए । दीपावली की पूजा के बाद पूरे घर के कोने कोने को दीपको के प्रकाश से प्रकाशित करना चाहिए । दीपावली की पूजा में घर के मंदिर में एक दिया ऐसा जलाये जो सारी रात जलाता रहे ।
दीपावली के दिन किसी भी विष्णु मंदिर में ऊंचाई पर पीली त्रिकोण आकृति कि पताका / पीला झण्डा इस प्रकार लगा दे कि वह लगातार लहराती रहे तो उसका भाग्य शीघ्र चमक जाता है, यह कार्य भी अगर आपने 31 अक्टूबर को नहीं किया है तो आज अमावस्या के दिन अवश्य ही करें ।
आज कार्तिक अमावस्या के दिन अपने घर की छत पर हनुमान जी की तस्वीर वाला, जिस पर जय श्री राम लिखा हो लाल रंग की ध्वजा / लाल झंडा अवश्य ही लगाएं, इससे घर के सदस्यों का बुरी नज़र से बचाव होता है ।
हर अमावस्या को गहरे गड्ढे या कुएं में एक चम्मच दूध डालें इससे कार्यों में बाधाओं का निवारण होता है ।
इसके अतिरिक्त अमावस्या को आजीवन जौ दूध में धोकर बहाएं, आपका भाग्य सदैव आपका साथ देगा ।
अमावस्या पर तुलसी के पत्ते या बिल्व पत्र बिलकुल भी नहीं तोडऩा चाहिए। अमावस्या पर देवी-देवताओं को तुलसी के पत्ते और शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने के लिए उन्हें एक दिन पहले ही तोड़कर रख लें।
अमावस्या तिथि को पितरों के तर्पण, दान के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है । आज कार्तिक अमावस्या के दिन पितरो का तर्पण करें और पितरो के निमित ब्राह्मण भोजन और दान अवश्य ही करें । ऐसा करने से पितृ दोष नहीं होता है, पितृ प्रसन्न रहते है, कार्यो में रुकावटें दूर होती है ।
शत्रुओं पर विजय, जीवन में अशातीत सफलता के लिए विजयदशमी के दिन सर्व सिद्धिदायी, विजय काल में अवश्य ही करे ये उपाय
- तिथि के स्वामी – अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव जी और प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि देव जी है I
इस साल दिवाली 31 अक्टूबर को है या 1 नवम्बर को इस बारे में काफी भ्रम की स्थिति बनी है । दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर मनाई जाती है, और इस बार 31 अक्टूबर की रात में ही अमावस्या होगी।
लेकिन चूँकि उदया तिथि के हिसाब से अमावस्या का मान आज है और लगभग 45 मिनट का लक्ष्मी पूजन के लिए शाम का प्रदोष काल का समय भी मिल रहा है इसलिए देश में बहुत सी जगह बहुत से लोग आज भी दीपावली मना रहे है ।
पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3:52 बजे से शुरू होगी । एक नवंबर को अमावस्या शाम 6.16 बजे तक ही है ।
दिवाली के दिन लक्ष्मी – गणेश जी, कुबेर देव और देवराज इंद्र की पूजा करना अत्यंत फलदाई है । मान्यता है कि दीपावली के दिन शुभ मुहूर्त विशेषकर प्रदोष काल में लक्ष्मी – गणेश जी की पूजा करने से पूरे वर्ष सुख – सौभाग्य की प्राप्ति होती है, धन का आगमन लगातार बना रहता है ।
पूजन के समय गृह स्वामी हलके पीले, केसरी और स्त्री लाल या पीली साड़ी और घर के बाकि सदस्य भी हलके कपडे पहन कर ही पूजा में बैठे ।
दिवाली पूजा में विशेष रूप से माँ लक्ष्मी की आराधना की जाती है। माता लक्ष्मी का दूसरा नाम कमला है, यह विष्णु प्रिय भी कही गयी है । यह कमल के आसन पर हाथ में कमल को धारण किये हुए विराजमान है। लक्ष्मी जी दीपावली के दिन समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी ।
इस दिन घर एवं व्यापारिक प्रतिष्टान के मुख्य द्वार के दोनों ओर दीवार पर शुभ – लाभ , स्वास्तिक , ॐ , आदि सौभाग्य चिन्हों को सिंदूर से अंकित करें तत्पश्चात उस पर पुष्प रोली चड़ाकर प्रार्थना करनी चाहिए, अगर यह 31 अक्टूबर को नही कर पाएं है तो आज अवश्य ही करें ।
दिवाली पूजन का पूजन घर के पूजा कक्ष में अथवा तिजोरी रखने वाले कक्ष में करना उत्तम होता है ।
दिवाली पूजन में कमल गट्टा, पीली सरसों, शहद, साबुत धनिया, पीली कौडिय़ां, गोमती चक्र, नाग केसर, साबुत हल्दी की गांठ, कमल का फूल आदि का अवश्य प्रयोग करें I
लक्ष्मी गणेश, कुबेर जी की पूजा के साथ साथ, यदि घर में स्फुटिक श्री यंत्र, दक्षिण वर्ती शंख, नौ ग्रह यंत्र और यदि कोई अन्य भी यंत्र हो उनकी भी अवश्य ही पूजा करें । और उपरोक्त वस्तुओं को अपने घर के मंदिर अथवा तिजोरी में अवश्य ही रखें
दीवाली के दिन बही खाता, तुला आदि की भी अवश्य जी पूजा करनी चाहिए । दीपावली की पूजा के बाद पूरे घर के कोने कोने को दीपको के प्रकाश से प्रकाशित करना चाहिए । दीपावली की पूजा में घर के मंदिर में एक दिया ऐसा जलाये जो सारी रात जलाता रहे ।
दीपावली के दिन किसी भी विष्णु मंदिर में ऊंचाई पर पीली त्रिकोण आकृति कि पताका / पीला झण्डा इस प्रकार लगा दे कि वह लगातार लहराती रहे तो उसका भाग्य शीघ्र चमक जाता है, यह कार्य भी अगर आपने 31 अक्टूबर को नहीं किया है तो आज अमावस्या के दिन अवश्य ही करें ।
आज कार्तिक अमावस्या के दिन अपने घर की छत पर हनुमान जी की तस्वीर वाला, जिस पर जय श्री राम लिखा हो लाल रंग की ध्वजा / लाल झंडा अवश्य ही लगाएं, इससे घर के सदस्यों का बुरी नज़र से बचाव होता है ।
हर अमावस्या को गहरे गड्ढे या कुएं में एक चम्मच दूध डालें इससे कार्यों में बाधाओं का निवारण होता है ।
इसके अतिरिक्त अमावस्या को आजीवन जौ दूध में धोकर बहाएं, आपका भाग्य सदैव आपका साथ देगा ।
अमावस्या पर तुलसी के पत्ते या बिल्व पत्र बिलकुल भी नहीं तोडऩा चाहिए। अमावस्या पर देवी-देवताओं को तुलसी के पत्ते और शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने के लिए उन्हें एक दिन पहले ही तोड़कर रख लें।
अमावस्या तिथि को पितरों के तर्पण, दान के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है । आज कार्तिक अमावस्या के दिन पितरो का तर्पण करें और पितरो के निमित ब्राह्मण भोजन और दान अवश्य ही करें । ऐसा करने से पितृ दोष नहीं होता है, पितृ प्रसन्न रहते है, कार्यो में रुकावटें दूर होती है ।
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नक्षत्र ( Nakshatra ) : स्वाति 3.31 AM, 2 नवम्बर तक,
नक्षत्र के स्वामी :– स्वाति नक्षत्र के देवता वायु और सरस्वती जी और स्वामी राहु जी है ।
स्वाति नक्षत्र, नक्षत्र मंडल में उपस्थित 27 नक्षत्रों में 15वां है। स्वाति नक्षत्र राहु का दूसरा नक्षत्र है। स्वाति नक्षत्र के देवता पवन देव हैं। स्वाति नक्षत्र का संबंध विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती से भी है।
स्वाति नक्षत्र ‘शुद्धता’, ‘स्वतंत्रता’ को दर्शाता है । यह अत्यंत शुद्ध और पवित्र बारिश की पहली बूंद का भी प्रतीक है ।
स्वाति नक्षत्र के पानी का महत्व ज्यादा होता है। इसकी एक बूंद से पपैया पक्षी अपनी प्यास बुझा लेता है। केले के पत्ते पर जल की बूंद गिरने से कपूर बनता है। इसी जल की बूंद समुद्र में गिरने से मोती बनता है।
इस नक्षत्र का आराध्य वृक्ष : अर्जुन तथा स्वाभाव शुभ माना गया है। स्वाति नक्षत्र सितारे का लिंग महिला है।
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक पर जीवन भर शुक्र एवं राहु ग्रह का प्रभाव बना रहता है।
इस नक्षत्र में जन्मा जातक धार्मिक, लोकप्रिय, बुद्धिमान, चतुर, परिश्रमी, अनुशासित, आध्यात्मिक होता हैं, सामन्यता इन्हे भूमि, भवन और पूर्ण सुख मिलता है।
लेकिन यदि शुक्र ख़राब हो तो जातक क्रोधी, घमंडी, अति कामुक, मदिरा प्रेमी होता है उसको धन और स्त्री का सुख भी नहीं मिलता है ।
स्वाति नक्षत्र में पैदा हुई स्त्री सुन्दर, मिलनसार, धार्मिक, दयालु, दूसरो को जल्द प्रभावित करने वाली होती हैं। इनका पारिवारिक दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है ।
स्वाति नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 4 और 6, भाग्यशाली रंग, गहरा भूरा, काला, भाग्यशाली दिन शनिवार, सोमवार और मंगलवार माना जाता है ।
स्वाति नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को वायु देव के “ॐ वायवे नमः”। मन्त्र माला का जाप अवश्य करना चाहिए, इससे जीवन में श्रेष्ठ सफलता मिलती है ।
नक्षत्र ( Nakshatra ) : स्वाति 3.31 AM, 2 नवम्बर तक,
नक्षत्र के स्वामी :– स्वाति नक्षत्र के देवता वायु और सरस्वती जी और स्वामी राहु जी है ।
स्वाति नक्षत्र, नक्षत्र मंडल में उपस्थित 27 नक्षत्रों में 15वां है। स्वाति नक्षत्र राहु का दूसरा नक्षत्र है। स्वाति नक्षत्र के देवता पवन देव हैं। स्वाति नक्षत्र का संबंध विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती से भी है।
स्वाति नक्षत्र ‘शुद्धता’, ‘स्वतंत्रता’ को दर्शाता है । यह अत्यंत शुद्ध और पवित्र बारिश की पहली बूंद का भी प्रतीक है ।
स्वाति नक्षत्र के पानी का महत्व ज्यादा होता है। इसकी एक बूंद से पपैया पक्षी अपनी प्यास बुझा लेता है। केले के पत्ते पर जल की बूंद गिरने से कपूर बनता है। इसी जल की बूंद समुद्र में गिरने से मोती बनता है।
इस नक्षत्र का आराध्य वृक्ष : अर्जुन तथा स्वाभाव शुभ माना गया है। स्वाति नक्षत्र सितारे का लिंग महिला है।
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक पर जीवन भर शुक्र एवं राहु ग्रह का प्रभाव बना रहता है।
इस नक्षत्र में जन्मा जातक धार्मिक, लोकप्रिय, बुद्धिमान, चतुर, परिश्रमी, अनुशासित, आध्यात्मिक होता हैं, सामन्यता इन्हे भूमि, भवन और पूर्ण सुख मिलता है।
लेकिन यदि शुक्र ख़राब हो तो जातक क्रोधी, घमंडी, अति कामुक, मदिरा प्रेमी होता है उसको धन और स्त्री का सुख भी नहीं मिलता है ।
स्वाति नक्षत्र में पैदा हुई स्त्री सुन्दर, मिलनसार, धार्मिक, दयालु, दूसरो को जल्द प्रभावित करने वाली होती हैं। इनका पारिवारिक दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है ।
स्वाति नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 4 और 6, भाग्यशाली रंग, गहरा भूरा, काला, भाग्यशाली दिन शनिवार, सोमवार और मंगलवार माना जाता है ।
स्वाति नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को वायु देव के “ॐ वायवे नमः”। मन्त्र माला का जाप अवश्य करना चाहिए, इससे जीवन में श्रेष्ठ सफलता मिलती है ।
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योग(Yog) :- प्रीति 10.41 AM तक तत्पश्चात आयुष्मान,
योग के स्वामी, स्वभाव :- प्रीति योग के स्वामी विष्णु एवं स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है । ।
प्रथम करण : – नाग 18.16 PM तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- नाग करण के स्वामी नागदेव और स्वभाव क्रूर है ।
द्वितीय करण :- किस्तुघ्न पूरी रात्रि तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- किस्तुघ्न करण के स्वामी मरुत और स्वभाव क्रूर है ।
- गुलिक काल : – शुक्रवार को शुभ गुलिक प्रात: 7:30 से 9:00 तक ।
- दिशाशूल (Dishashool)- शुक्रवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है ।
यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से दही में चीनी या मिश्री डालकर उसे खाकर जाएँ ।
- राहुकाल (Rahukaal)-दिन – 10:30 से 12:00 तक ।
- सूर्योदय -प्रातः 06:33
- सूर्यास्त – सायं : 17:36
- विशेष – अमावस्या के दिन तुलसी के पत्ते, बिल्व पत्र या किसी भी तरफ के फूल पत्तो को बिलकुल भी नहीं तोडऩा चाहिए।
- अमावस्या, श्राद्ध और व्रत के दिन काँसे के बर्तन में भोजन करना, तिल का तेल का सेवन करना, तुलसी जी, किसी भी तरह के फूल पत्ती को तोड़ना, सहवास करना निषिद्ध है।
- पर्व त्यौहार- दीपावली का पर्व, कार्तिक माह की अमावस्या
योग(Yog) :- प्रीति 10.41 AM तक तत्पश्चात आयुष्मान,
योग के स्वामी, स्वभाव :- प्रीति योग के स्वामी विष्णु एवं स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है । ।
प्रथम करण : – नाग 18.16 PM तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- नाग करण के स्वामी नागदेव और स्वभाव क्रूर है ।
द्वितीय करण :- किस्तुघ्न पूरी रात्रि तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- किस्तुघ्न करण के स्वामी मरुत और स्वभाव क्रूर है ।
- गुलिक काल : – शुक्रवार को शुभ गुलिक प्रात: 7:30 से 9:00 तक ।
- दिशाशूल (Dishashool)- शुक्रवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है ।
यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से दही में चीनी या मिश्री डालकर उसे खाकर जाएँ ।
- राहुकाल (Rahukaal)-दिन – 10:30 से 12:00 तक ।
- सूर्योदय -प्रातः 06:33
- सूर्यास्त – सायं : 17:36
- विशेष – अमावस्या के दिन तुलसी के पत्ते, बिल्व पत्र या किसी भी तरफ के फूल पत्तो को बिलकुल भी नहीं तोडऩा चाहिए।
- अमावस्या, श्राद्ध और व्रत के दिन काँसे के बर्तन में भोजन करना, तिल का तेल का सेवन करना, तुलसी जी, किसी भी तरह के फूल पत्ती को तोड़ना, सहवास करना निषिद्ध है।
- पर्व त्यौहार- दीपावली का पर्व, कार्तिक माह की अमावस्या
जरुर पढ़ें :- पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रो का राजा कहते है जानिए क्यों महत्वपूर्ण है पुष्य नक्षत्र,
“हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
मित्रो हम इस साईट के माध्यम से वर्ष 2010 से निरंतर आप लोगो के साथ जुड़े है। आप भारत या विश्व के किसी भी स्थान पर रहते है, अपने धर्म अपनी संस्कृति को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए www.memorymuseum.net के साथ अवश्य जुड़ें, हमारा सहयोग करें ।
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आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
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