रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag, 23 अक्टूबर 2022 का पंचांग,

रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag, 23 अक्टूबर 2022 का पंचांग,

आप सभी को धनतेरस के पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag,

23 अक्टूबर 2022 का पंचांग, 23 October 2022 ka Panchang,

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Panchang, पंचाग, आज का पंचांग, aaj ka panchang, Panchang 2021, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)



पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे । जानिए रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang।

रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang,
23 अक्टूबर
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भगवान सूर्य जी का मंत्र : ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।
।। आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो ।।

👉🏽दिन (वार) रविवार को की गई सूर्य पूजा से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन उगते हुए सूर्य को देव को एक ताबें के लोटे में जल, चावल, लाल फूल और रोली डालकर अर्ध्य करें।

इस दिन आदित्य ह्रदय स्रोत्र का पाठ करें एवं यथा संभव मीठा भोजन करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य देव को जल देने से पितृ कृपा भी मिलती है।

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रविवार के दिन भैरव जी के दर्शन, आराधना से समस्त भय और संकट दूर होते है, साहस एवं बल की प्राप्ति होती है । अत: रविवार के दिन मंदिर में भैरव जी के दर्शन अवश्य करें ।

रविवार के दिन भैरव जी के मन्त्र ” ॐ काल भैरवाय नमः “ या ” ॐ श्री भैरवाय नमः “ की एक माला जाप करने से समस्त संकट, भय दूर होते है, रोगो, अकाल मृत्यु से बचाव होता है, मनवांछित लाभ मिलता है।

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*विक्रम संवत् 2079,
* शक संवत – 1944,
*कलि संवत 5124
* अयन –दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – कार्तिक माह
* पक्ष – कृष्ण पक्ष
* चंद्र बल – मिथुन, सिंह, तुला, वृश्चिक, कुम्भ, मीन,

  • तिथि (Tithi)- त्रियोदशी 18.03 PM तक तत्पश्चात चतुर्दशी
  • तिथि के स्वामी :- त्रियोदशी तिथि के स्वामी कामदेव जी और चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ ही है।

धनतेरस के पर्व को वैध शिरोमणि भगवान धन्वन्तरि का दिन माना जाता है । शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन जिस घर में इनकी विधिवत पूजा , आराधना होती है उस घर पर किसी भी प्रकार के रोग की छाया भी नहीं पड़ती है ।

दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।

इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था। इन्हे भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। भगवान धन्वन्तरि उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं।

चूँकि धन्वन्तरि जी अपने हाथ में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसी कारण धनतेरस के दिन भगवान को प्रसन्न करने के लिए बर्तन खरीदा जाता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन जिस चीज को भी ख़रीदा जाता है उसमें तेरह गुणा बढ़ोतरी होती है।

इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी।

धनतेरस के दिन घर परिवार के सभी सदस्यों के निरोगी जीवन के लिए, सभी सदस्यों की लम्बी आयु , चिर यौवन के लिए भगवान धन्वन्तरि के मन्त्र “ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।” की कम से काम दो माला का जाप करें ।

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धनतेरस के दिन देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव की पूजा बहुत फलदाई मानी गयी है । धनतेरस के दिन कुबेर देव जी की पूजा करने से पूरे साल उन की पूजा का फल मिल जाता है।

जैसे देवताओं के गुरु बृहस्पति और देवताओं के राजा देवराज इन्द्र कहे गए है उसी प्रकार सम्पूर्ण ब्राह्मांडों के धनाधिपति कुबेर देव कहे गए है।

कुबेर देव की श्रद्धा से पूजन करने से अतुल धन , ऐश्वर्य एवं समस्त संसारिक सुखो की प्राप्ति होती है।

कुबेर देव को शिवजी का परम मित्र माना जाता हैं । इसी लिए कहा जाता है कि जो भगवान भोले नाथ की सच्चे मन से भक्ति करते है कुबेर देव उनपर अपनी विशेष कृपा दृष्टि बनाये रखते है ।

कुबेर जी का मन्त्र :- “ॐ श्री ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:”।

शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति घोर दरिद्रता व अपयश से पीड़ित है तो धनतेरस से शुरू करके पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से नित्य कुबेर देव की पूजा अर्चना करने से उसके सभी आर्थिक संकट शीघ्र से शीघ्र समाप्त हो जाते है ।

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शुभ धनतेरस

कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2022 में धनतेरस का पर्व 22 अक्टूबर शनिवार और 23 अक्टूबर रविवार दोनों ही दिन मनाया जा रहा है।

धनतेरस के दिन गणेश – लक्ष्मी जी के साथ भगवान धन्वन्तरि जी और भगवान कुबेर जी, का पूजन भी अनिवार्य रूप से करना चाहिए, ऐसा करने से अयोग्य और सुख – समृद्धि की प्राप्ति होती है ।

धनतेरस के दिन सोने, चाँदी विशषकर पीतल की खरीद करने से घर में माँ लक्ष्मी का वास होता है । यह भी मान्यता है कि इस दिन जिस चीज को भी ख़रीदा जाता है उसमें तेरह गुणा बढ़ोतरी होती है।

धनतेरस के दिन दीपावली पूजन के लिए लक्ष्मी – गणेश जी की मूर्ति, पूजा की सामग्री की भी खरीद कर लेनी चाहिए ।

इस दिन से दीपावली के पांचों दिनों तक संध्या के समय घर के बाहरी मुख्य द्वार के दोनों ओर अनाज के ढेर पर मिटटी के दीपक को तेल से भर कर अवश्य ही जलाना चाहिए ।

धनतेरस के दिन प्रदोष काल में सांय 5:42 से रात्रि 7:26 बजे तक तक पूजा करना बहुत ही शुभ, लाभकारी होगा ।

धनतेरस के दिन बर्तन खरीद कर घर में लाते समय खाली न लाएं उसमें कुछ न कुछ मीठा अवश्य डाल कर लाएं …..अगर बर्तन छोटा हो या गहरा न हो तो मीठा उस बर्तन के साथ रख कर लाएं ..आपका घर सदैव धन धान्य से भरा रहेगा।

इस दिन घर में मिष्ठान लाने से घर में सौभाग्य का आगमन होता है ।

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  • नक्षत्र (Nakshatra)-  – उत्तर फाल्गुनी 14.34 PM तक तत्पश्चात हस्त
  • नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी-   उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र के देवता आर्यमन और स्वामी सूर्य, बुध देव जी है।

आकाश मंडल में उत्तरा फाल्गुनी को 12 वां नक्षत्र माना जाता है। ‘उत्तरा फाल्गुनी’ का अर्थ है ‘बाद का लाल नक्षत्र’।

यह एक बिस्तर या बिस्तर के पिछले दो पाए को दर्शाता है जो आराम और विलासिता के जीवन का प्रतीक है।

यह नक्षत्र रोमांस, कामुक, ऐश्वर्य, रोमांच और अनैतिक आचरण को प्रदर्शित करता है।

इस नक्षत्र काआराध्य वृक्ष : पाकड़ तथा स्वाभाव शुभ माना गया है। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र सितारे का लिंग महिला है।

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 12, भाग्यशाली रंग, चमकदार नीला, भाग्यशाली दिन बुधवार, शुक्रवार, और रविवार माना जाता है ।

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ अर्यमणे नम: “। मन्त्र माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।

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दिवाली की रात ऐसे करें पूजा घर में पूरे वर्ष सुख – समृद्धि, धन की होगी वर्षा, जानिए दीपावली की पूजा विधि 

  • योग (Yog) – इंद्र 16.07 तक तत्पश्चात वैधृति
  • योग के स्वामी :-  इंद्र योग के स्वामी पितृ देव जी एवं स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है।
  • प्रथम करण : – वणिज 16.03 AM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- वणिज करण की स्वामी लक्ष्मी देवी और स्वभाव सौम्य है।
  • द्वितीय करण : – विष्टि
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है।
  • गुलिक काल : – अपराह्न – 3:00 से 4:30 तक ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- रविवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से पान या घी खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सायं – 4:30 से 6:00 तक ।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:27
  • सूर्यास्त – सायं 17:44

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  • विशेष – रविवार को बिल्ब के वृक्ष / पौधे की पूजा अवश्य करनी चाहिए इससे समस्त पापो का नाश होता है, पुण्य बढ़ते है।

    रविवार के दिन भगवान सूर्य देव को आक का फूल अर्पण करना किसी भी यज्ञ के फल से कम नहीं है, इससे सूर्य देव की सदैव कृपा बनी रहती है ।

    रविवार को अदरक और मसूर की दाल का सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।


    त्रियोदशी को बैगन नहीं खाना चाहिए , त्रियोदशी को बैगन खाने से पुत्र को कष्ट मिलता है।
  • पर्व त्यौहार-

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत शुभ फलो वाला हो ।

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ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)

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