Shukrwar ka panchag, शुक्रवार का पंचांग, 15 नवंबर 2024 का पंचांग,
आप सभी को कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
गुरुवार का पंचांग शनिवार का पंचांग
शुक्रवार का पंचांग, Shukrwar ka panchag, 15 नवंबर 2024 का पंचांग,
शुक्रवार का पंचांग, shukrwar ka panchang,
- Panchang, पंचाग, Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang, पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-
1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी नित्य पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए, Shukravar Ka Panchang, शुक्रवार का पंचांग, आज का पंचांग, aaj ka panchang,
15 नवंबर 2024 का पंचांग, 15 November 2024 ka Panchang,
- महालक्ष्मी मन्त्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
- ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
आज का पंचांग, aaj ka panchang,
दिन (वार) – शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु पर जल चढ़ाकर उन्हें पीले चन्दन अथवा केसर का तिलक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
शुक्रवार के दिन नियम पूर्वक धन लाभ के लिए लक्ष्मी माँ को अत्यंत प्रिय “श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” एवं समस्त संकटो को दूर करने के लिए “माँ दुर्गा के 32 चमत्कारी नमो का पाठ” अवश्य ही करें ।
शुक्रवार के दिन माँ लक्ष्मी को हलवे या खीर का भोग लगाना चाहिए ।
शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।
- *विक्रम संवत् 2081,
- * शक संवत – 1946,
*कलि संवत – 5126
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – कार्तिक माह
* पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन,
शुक्रवार के दिन नियम पूर्वक धन लाभ के लिए लक्ष्मी माँ को अत्यंत प्रिय “श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” एवं समस्त संकटो को दूर करने के लिए “माँ दुर्गा के 32 चमत्कारी नमो का पाठ” अवश्य ही करें ।
शुक्रवार के दिन माँ लक्ष्मी को हलवे या खीर का भोग लगाना चाहिए ।
शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।
*कलि संवत – 5126
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – कार्तिक माह
* पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन,
शुक्रवार को शुक्र देव की होरा :-
प्रात: 6.44 AM से 7.37 AM तक
दोपहर 12.59 PM से 1.52 PM तक
रात्रि 19.40 PM से 8.46 PM तक
कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस तरह से करें स्नान, अक्षय पुण्य की होगी प्राप्ति
दाहिने हाथ के अंगूठे से नीचे के हिस्से ( शुक्र का स्थान ) और अंगूठे पर थोड़ा सा इत्र लगाकर, ( इत्र ना मिले तो उसके बिना भी कर सकते है) बाएं हाथ के अंगूठे से उस हिस्से को शुक्र की होरा में “ॐ शुक्राये नम:” या
‘ॐ द्रांम द्रींम द्रौंम स: शुक्राय नम:।’ मंत्र का अधिक से अधिक जाप करते हुए अधिक से अधिक रगड़ते / मसाज करते रहे ( कम से कम 10 मिनट अवश्य )I
यह उपाय आप कोई भी काम करते हुए चुपचाप कर सकते है इसके लिए किसी भी विधि विधान की कोई आवश्यकता नहीं है I
सुख समृद्धि, ऐश्वर्य, बड़ा भवन, विदेश यात्रा, प्रेम, रोमांस, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए शुक्रवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा में शुक्रदेव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शुक ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
शुक्र देव के मन्त्र :-
ॐ शुं शुक्राय नमः।। अथवा
” ॐ द्राम द्रीम द्रौम सः शुक्राय नमः “।।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, देव दीपावली पर ऐसा करने से पूरी होगी सभी मनोकामनाएं, अवश्य जानिए देव दीपावली क्यों मनाते है
- तिथि, (Tithi) :- पूर्णिमा 2.58 AM, 16 नवम्बर तक,
- तिथि के स्वामी – पूर्णिमा तिथि के स्वामी चंद्र देव जी है I
आज अति शुभ कार्तिक पूर्णिमा है । पुराणों में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान,व्रत, तप एवं दान को मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। कार्तिक माह के महत्व के बारे में स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास की व्याख्या करते हुए कहा है,‘पौधों में तुलसी , मासों में कार्तिक , दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के सबसे निकट है।’ इसीलिए इस मास में भगवान श्री नारायण के साथ तुलसी और शालीग्राम के पूजन से भी असीम पुण्य प्राप्त होता है ।
कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा / त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्ण किए गए गंगा नदी / पवित्र नदी सरोवर में स्नान का अक्षय फल प्राप्त होता है ।
क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे । इसीलिए इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
ऐसी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से मनुष्य अगले सात जन्म तक ज्ञानी, धनवान और भाग्यशाली होता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान सत्य नारायण की कथा सुनना, पढ़ना महा फलदाई माना गया है ।
इस दिन सांयकाल घर को दिये / रौशनी से सजाने से भगवान श्री विष्णु जी के साथ साथ माँ लक्ष्मी की भी स्थाई कृपा प्राप्त होगी ।
पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में धर्म, वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था ।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन किये जाने वाले अन्न, धन और वस्त्र दान का भी बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है।
माना जाता है कि इस दिन जो भी दान किया जाता हैं हमें उसका अनंत गुना लाभ मिलता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ भी दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।
कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिक्ख सम्प्रदाय में प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देवजी का जन्म हुआ था इसलिए इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।
शत्रुओं पर विजय, जीवन में अशातीत सफलता के लिए विजयदशमी के दिन सर्व सिद्धिदायी, विजय काल में अवश्य ही करे ये उपाय
- तिथि के स्वामी – पूर्णिमा तिथि के स्वामी चंद्र देव जी है I
आज अति शुभ कार्तिक पूर्णिमा है । पुराणों में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान,व्रत, तप एवं दान को मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। कार्तिक माह के महत्व के बारे में स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास की व्याख्या करते हुए कहा है,‘पौधों में तुलसी , मासों में कार्तिक , दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के सबसे निकट है।’ इसीलिए इस मास में भगवान श्री नारायण के साथ तुलसी और शालीग्राम के पूजन से भी असीम पुण्य प्राप्त होता है ।
कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा / त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्ण किए गए गंगा नदी / पवित्र नदी सरोवर में स्नान का अक्षय फल प्राप्त होता है ।
क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे । इसीलिए इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
ऐसी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से मनुष्य अगले सात जन्म तक ज्ञानी, धनवान और भाग्यशाली होता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान सत्य नारायण की कथा सुनना, पढ़ना महा फलदाई माना गया है ।
इस दिन सांयकाल घर को दिये / रौशनी से सजाने से भगवान श्री विष्णु जी के साथ साथ माँ लक्ष्मी की भी स्थाई कृपा प्राप्त होगी ।
पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में धर्म, वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था ।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन किये जाने वाले अन्न, धन और वस्त्र दान का भी बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है।
माना जाता है कि इस दिन जो भी दान किया जाता हैं हमें उसका अनंत गुना लाभ मिलता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ भी दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।
कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिक्ख सम्प्रदाय में प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देवजी का जन्म हुआ था इसलिए इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।
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जरूर पढ़े :- एकादशी के इन उपायों से पाप होंगे दूर, सुख – समृद्धि की कोई कमी नहीं रहेगी,
आज अति शुभ देव दीपावली का पर्व है । मनुष्यो की दीपावली मनाने के एक पक्ष अर्थात 15 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं की दीपावली अर्थात देव दीपावली होती है।
मान्यता है कि देव दीपावली मनाने के लिए सभी देवतागण स्वर्ग से धरती पर गंगा नदी के पावन घाटों पर अदृश्य रूप में आते हैं। देव दीपावली दीपावली समारोह का अंतिम उत्सव है।
एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु जी अपने वामन अवतार के बाद, बलि के पास से लौटकर अपने निवास स्थान बैकुंठ लोक में वापस आये थे और इसी खुशी में सभी देवो ने दीप जलाए थे ।
एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिन सायंकाल के समय भगवान विष्णु जी का मत्स्यावतार हुआ था, इसलिए इस दिन किये गए दीप दान, का दस यज्ञों के समान फल मिलता है।
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि आज के दिन ही भगवानशंकर ने महाभयंकर असुर त्रिपुरासुर का संहार किया था जिसके पापो से मनुष्य, ऋषि, देवता सभी त्रस्त थे।
त्रिपुरासुर और उसकी असुरी सेना के संहार के पश्चात सभी देवताओं ने दीप जलाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना, आराधना की थी, प्रसन्नता व्यक्त की थी इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती है ।
देव-दीपावली महोत्सव बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी / वाराणसी में गंगा तट पर बहुत भव्यता से मनाया जाता है, इस उत्सव को देखने के लिए देश से ही नहीं, वरन दुनिया भर से लोग काशी आते है।
कार्तिक पूर्णिमा की रात में काशी में गँगा नदी के घाटों पर हजारों दीपक जलाकर माँ गंगा की महा आरती होती है, यह अवसर अत्यंत अदभुत प्रतीत होता है, ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश के तारे दीपको में उतर आये है ।
मान्यता है कि इस दिन सभी मनुष्यों को अपने घर को दीपको की रौशनी से अवश्य ही सजाना चाहिए, ऐसा करने से उस मनुष्य पर देवताओं की असीम कृपा रहती है ।
शास्त्रो के अनुसार जो जातक कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने घर में दीपमाला जलाकर देव दीपावली मानते है उनके सभी जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है उनको जीवन में सभी सुखो की प्राप्ति होती है।
नक्षत्र ( Nakshatra ) : भरणी 9.55 PM तक तत्पश्चात कृतिका,
नक्षत्र के स्वामी :– भरणी नक्षत्र के देवता यमराज जी और नक्षत्र के स्वामी शुक्र जी है ।
भरणी नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से दूसरा नक्षत्र है और त्रिकोण का प्रतीक है। यह नक्षत्र प्रकृति के स्त्री वाले पहलू को इंगित करता है।
भरणी नक्षत्र बलिदान, ईर्ष्या, सहनशीलता और शुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। यह संयम का एक सितारा माना जाता है और गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है। भरणी नक्षत्र सितारा का लिंग मादा है।
भरणी नक्षत्र का आराध्य वृक्ष आँवला और नक्षत्र स्वभाव क्रूर माना गया है ।
भरणी नक्षत्र में पैदा होने वाले एक बड़े दिल वाले व्यक्ति माने जाते हैं, यह लोगो की बातो का बुरा नहीं मानते है। आपकी ताकत आपकी मुस्कुराहट है आप हमेशा शांत और प्रसन्न रहते हैं। आप ईमानदार है और सकारात्मक रहते है। इनका पारिवारिक जीवन सुखमय रहता है ।
भरणी नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 9, 3 और 12, भाग्यशाली रंग पीला, लाल, और हरा एवं भाग्यशाली दिन मंगलवार तथा गुरुवार माना जाता है ।
भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को तथा सभी मनुष्यों को जिस दिन भारणी नक्षत्र हो उस दिन नक्षत्र देवता नाममंत्र:- “ॐ यमाय् नमः” l मन्त्र की एक माला का जप करना चाहिए, इससे भारणी नक्षत्र के शुभ फल मिलते है ।
भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को भगवान शंकर जी की आराधना परम फलदाई है, इन्हे इस नक्षत्र के दिन महा मृत्युंजय मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।
आज अति शुभ देव दीपावली का पर्व है । मनुष्यो की दीपावली मनाने के एक पक्ष अर्थात 15 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं की दीपावली अर्थात देव दीपावली होती है।
मान्यता है कि देव दीपावली मनाने के लिए सभी देवतागण स्वर्ग से धरती पर गंगा नदी के पावन घाटों पर अदृश्य रूप में आते हैं। देव दीपावली दीपावली समारोह का अंतिम उत्सव है।
एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु जी अपने वामन अवतार के बाद, बलि के पास से लौटकर अपने निवास स्थान बैकुंठ लोक में वापस आये थे और इसी खुशी में सभी देवो ने दीप जलाए थे ।
एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिन सायंकाल के समय भगवान विष्णु जी का मत्स्यावतार हुआ था, इसलिए इस दिन किये गए दीप दान, का दस यज्ञों के समान फल मिलता है।
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि आज के दिन ही भगवानशंकर ने महाभयंकर असुर त्रिपुरासुर का संहार किया था जिसके पापो से मनुष्य, ऋषि, देवता सभी त्रस्त थे।
त्रिपुरासुर और उसकी असुरी सेना के संहार के पश्चात सभी देवताओं ने दीप जलाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना, आराधना की थी, प्रसन्नता व्यक्त की थी इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती है ।
देव-दीपावली महोत्सव बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी / वाराणसी में गंगा तट पर बहुत भव्यता से मनाया जाता है, इस उत्सव को देखने के लिए देश से ही नहीं, वरन दुनिया भर से लोग काशी आते है।
कार्तिक पूर्णिमा की रात में काशी में गँगा नदी के घाटों पर हजारों दीपक जलाकर माँ गंगा की महा आरती होती है, यह अवसर अत्यंत अदभुत प्रतीत होता है, ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश के तारे दीपको में उतर आये है ।
मान्यता है कि इस दिन सभी मनुष्यों को अपने घर को दीपको की रौशनी से अवश्य ही सजाना चाहिए, ऐसा करने से उस मनुष्य पर देवताओं की असीम कृपा रहती है ।
शास्त्रो के अनुसार जो जातक कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने घर में दीपमाला जलाकर देव दीपावली मानते है उनके सभी जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है उनको जीवन में सभी सुखो की प्राप्ति होती है।
नक्षत्र ( Nakshatra ) : भरणी 9.55 PM तक तत्पश्चात कृतिका,
नक्षत्र के स्वामी :– भरणी नक्षत्र के देवता यमराज जी और नक्षत्र के स्वामी शुक्र जी है ।
भरणी नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से दूसरा नक्षत्र है और त्रिकोण का प्रतीक है। यह नक्षत्र प्रकृति के स्त्री वाले पहलू को इंगित करता है।
भरणी नक्षत्र बलिदान, ईर्ष्या, सहनशीलता और शुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। यह संयम का एक सितारा माना जाता है और गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है। भरणी नक्षत्र सितारा का लिंग मादा है।
भरणी नक्षत्र का आराध्य वृक्ष आँवला और नक्षत्र स्वभाव क्रूर माना गया है ।
भरणी नक्षत्र में पैदा होने वाले एक बड़े दिल वाले व्यक्ति माने जाते हैं, यह लोगो की बातो का बुरा नहीं मानते है। आपकी ताकत आपकी मुस्कुराहट है आप हमेशा शांत और प्रसन्न रहते हैं। आप ईमानदार है और सकारात्मक रहते है। इनका पारिवारिक जीवन सुखमय रहता है ।
भरणी नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 9, 3 और 12, भाग्यशाली रंग पीला, लाल, और हरा एवं भाग्यशाली दिन मंगलवार तथा गुरुवार माना जाता है ।
भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को तथा सभी मनुष्यों को जिस दिन भारणी नक्षत्र हो उस दिन नक्षत्र देवता नाममंत्र:- “ॐ यमाय् नमः” l मन्त्र की एक माला का जप करना चाहिए, इससे भारणी नक्षत्र के शुभ फल मिलते है ।
भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को भगवान शंकर जी की आराधना परम फलदाई है, इन्हे इस नक्षत्र के दिन महा मृत्युंजय मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।
दिवाली पर माँ लक्ष्मी को लगाएं इन चीज़ो का भोग, सुख – समृद्धि की नहीं होगी कभी कमी, अवश्य जानिए माता लक्ष्मी के प्रिय भोग
योग(Yog) :- व्यतिपात 7.30 AM तक तत्पश्चात वरीयान,
योग के स्वामी, स्वभाव :- व्यतिपात योग के स्वामी रूद्र देव जी एवं स्वभाव अशुभ माना जाता है ।
प्रथम करण : – विष्टि 16.37 PM तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
द्वितीय करण :- बव 2.58 AM, 16 नवम्बर तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- बव करण के स्वामी इंद्र देव और स्वभाव सौम्य है ।
- गुलिक काल : – शुक्रवार को शुभ गुलिक प्रात: 7:30 से 9:00 तक ।
- दिशाशूल (Dishashool)- शुक्रवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है ।
यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से दही में चीनी या मिश्री डालकर उसे खाकर जाएँ ।
- राहुकाल (Rahukaal)-दिन – 10:30 से 12:00 तक ।
- सूर्योदय -प्रातः 06:44
- सूर्यास्त – सायं : 17:27
- विशेष – पूर्णिमा और व्रत के दिन काँसे के बर्तन में भोजन करना, तिल का तेल का सेवन करना, सहवास करना, क्रोध करना, हिंसा करना मना है ।
- पर्व त्यौहार- कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली
योग(Yog) :- व्यतिपात 7.30 AM तक तत्पश्चात वरीयान,
योग के स्वामी, स्वभाव :- व्यतिपात योग के स्वामी रूद्र देव जी एवं स्वभाव अशुभ माना जाता है ।
प्रथम करण : – विष्टि 16.37 PM तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
द्वितीय करण :- बव 2.58 AM, 16 नवम्बर तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- बव करण के स्वामी इंद्र देव और स्वभाव सौम्य है ।
- गुलिक काल : – शुक्रवार को शुभ गुलिक प्रात: 7:30 से 9:00 तक ।
- दिशाशूल (Dishashool)- शुक्रवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है ।
यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से दही में चीनी या मिश्री डालकर उसे खाकर जाएँ ।
- राहुकाल (Rahukaal)-दिन – 10:30 से 12:00 तक ।
- सूर्योदय -प्रातः 06:44
- सूर्यास्त – सायं : 17:27
- विशेष – पूर्णिमा और व्रत के दिन काँसे के बर्तन में भोजन करना, तिल का तेल का सेवन करना, सहवास करना, क्रोध करना, हिंसा करना मना है ।
- पर्व त्यौहार- कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली
जरुर पढ़ें :- पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रो का राजा कहते है जानिए क्यों महत्वपूर्ण है पुष्य नक्षत्र,
“हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
मित्रो हम इस साईट के माध्यम से वर्ष 2010 से निरंतर आप लोगो के साथ जुड़े है। आप भारत या विश्व के किसी भी स्थान पर रहते है, अपने धर्म अपनी संस्कृति को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए www.memorymuseum.net के साथ अवश्य जुड़ें, हमारा सहयोग करें ।
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आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
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