बुधवार का पंचांग, Budhwar Ka Panchang, 13 नवम्बर 2024 का पंचांग,
आप सभी को तुलसी – भगवान शलिग्राम के विवाह की हार्दिक शुभकामनायें
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पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :- 1:- तिथि (Tithi) 2:- वार (Day) 3:- नक्षत्र (Nakshatra) 4:- योग (Yog) 5:- करण (Karan)
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए बुधवार का पंचांग, Budhvar Ka Panchang, आज का पंचांग, aaj ka panchang,
बुधवार का पंचांग (Budhwar Ka Panchang)
13 नवम्बर 2024 का पंचांग, ( Panchang ), 13 November 2024 ka Panchang,
गणेश गायत्री मंत्र :
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात ।।
।। आज का दिन मंगलमय हो ।।
* दिन (वार) – बुधवार के दिन तेल का मर्दन करने से अर्थात तेल लगाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है धन लाभ मिलता है।
बुधवार का दिन विघ्नहर्ता गणेश का दिन हैं। बुधवार के दिन गणेश जी के परिवार के सदस्यों का नाम लेने से जीवन में शुभता आती है।
शरद पूर्णिमा के दिन इस उपाय से जीवन भर भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की मिलेगी असीम कृपा,
बुधवार के दिन गणेश जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके लड्डुओं का भोग लगाकर उनकी की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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* बुधवार को सभी ग्रहो के राजकुमार बुध देव की आराधना करने से ज्ञान मिलता है, वाकपटुता में प्रवीणता आती है, धन लाभ होता है ।
बुधवार को गाय को हरा चारा खिलाने तथा रात को सोते समय फिटकरी से दाँत साफ करने से आर्थिक पक्ष मजबूत होता है ।
नवरात्री में इस तरह से करें कन्या पूजन, सभी तरह के वास्तु दोष, विघ्न, भय और शत्रुओं का होगा नाश
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*विक्रम संवत् 2081,
*शक संवत – 1945
*कलि संवत 5124
*अयन – दक्षिणायन
*ऋतु – शरद ऋतु
*मास – कार्तिक माह
*पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – मेष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, कुम्भ,
बुधवार को बुध की होरा :-
प्रात: 6.42 AM से 7.36 AM तक
दोपहर 12.59 PM से 1.52 PM तक
रात्रि 19.40 PM से 8.46 PM तक
बुधवार को बुध की होरा में हाथ की सबसे छोटी उंगली और बुध पर्वत को हल्के हल्के रगड़ते हुए अधिक से अधिक बुध देव के मन्त्र का जाप करें ।
ज्योतिष, पढ़ाई, लिखाई, सीखने, वाकपटुता, अपना प्रभाव डालने और व्यापार में सफलता के लिए बुध की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
बुधवार के दिन बुध की होरा में बुध देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
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बुध देव के मन्त्र
“ॐ बुं बुधाय नमः” अथवा
“ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:।।”
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- तिथि (Tithi) – द्वादशी दोपहर 13.01 PM तक तत्पश्चात त्रियोदशी I
- तिथि के स्वामी – द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री विष्णु जी और त्रियोदशी तिथि के स्वामी कामदेव जी है ।
हिंदू पंचाग की बाहरवीं तिथि द्वादशी (Dwadashi) कहलाती है। द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री हरि, श्री विष्णु जी है ।
इस तिथि का नाम यशोबला भी है, क्योंकि इस दिन भगवान श्री विष्णु जी / भगवान श्रीकृष्ण जी का आंवले, इलाइची, पीले फूलो से पूजन करने से यश, बल और साहस की प्राप्ति होती है।
द्वादशी को श्री विष्णु जी की पूजा , अर्चना करने से मनुष्य को समस्त भौतिक सुखो और ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है, उसे समाज में सर्वत्र आदर मिलता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं निश्चय ही पूर्ण होती है।
द्वादशी तिथि के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यन्त श्रेयकर होता है। द्वादशी के दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।
भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का जन्म भी द्वादशी तिथि के दिन माना जाता है। इस दिन विष्णु भगवान के पूजन से बुध ग्रह भी मजबूत होता है ।
द्वादशी तिथि में विष्टि करण होने के कारण इस तिथि को भद्रा तिथि भी कहते है।
द्वादशी तिथि के दिन विवाह, तथा अन्य शुभ कार्य किये जाते है लेकिन इस तिथि में नए घर का निर्माण, ग्रह प्रवेश करना मना किया जाता है ।
द्वादशी के दिन तुलसी तोड़ना निषिद्ध है। द्वादशी के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिए, इस दिन यात्रा करने से धन हानि एवं असफलता की सम्भावना रहती है। द्वादशी के दिन मसूर का सेवन वर्जित है।
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तुलसी विवाह का पुण्य लिखने में देवता भी असमर्थ है, जानिए कैसे होता है तुलसी जी और शालिग्राम जी का विवाह,
तुलसी हर घर में होती है, तुलसी की सेवा, पूजा करना महान पुण्यदायक माना जाता है। शास्त्रो के अनुसार हर जातक को जीवन में एक बार तुलसी विवाह Tulsi Vivah तो अवश्य ही करना चाहिए।
तुलसा जी व शालिग्राम जी का विवाह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को ( कहीं कहीं देवोत्थान / देवप्रबोधिनी एकादशी को ) किया जाता है।
शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही अवतार माना गया हैं। शालिग्राम नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले चिकने, अंडाकार, काले रंग के पत्थर को कहते हैं।
स्वयंभू अर्थात स्वयं प्रकट होने के कारण शालिग्राम जी की प्राण प्रतिष्ठा की कोई आवश्यकता नहीं होती है, इसे घर पर लाकर सीधे ही पूजा जा सकता हैं ।
तुलसी को विष्णु प्रिया कहते है। शास्त्रो में तुलसी और विष्णु को पति पत्नी के रूप में माना जाता है। तुलसी के पत्ते के बिना विष्णु भगवान की पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है पूजा अधूरी समझी जाती है।
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि मंगलवार 12 नवबर, 2024 को शाम 4 बजकर 2 मिनट से प्रारम्भ होगी जो बुधवार 13 नवंबर, 2024 को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट तक रहेगी ।
उदया तिथि के अनुसार तुलसी विवाह का पर्व बुधवार 13 नवम्बर को मनाया जायेगा ।
देवोत्थान एकदशी के दिन तुलसी विवाह कराने अथवा तुलसी जी की पूर्ण श्रद्धा से पूजा आने से परिवार में यदि किसी की शादी में विलम्ब होता है तो वह समाप्त होता है विवाह योग्य जातक का शीघ्र एवं उत्तम विवाह होता है ।
तुलसी विवाह / तुलसी पूजा से जातक को वियोग नहीं होता है, बिछुड़े / नाराज सगे संबंधी भी करीब आ जाते हैं।
जिन जातको की कन्या नहीं है उन्हें विधिपूर्वक तुलसी विवाह / तुलसी पूजा अवश्य ही करनी चाहिए इससे उन्हें कन्यादान का पूर्ण फल प्राप्त होता है ।
तुलसी विवाह / तुलसी पूजा से जातक को इस पृथ्वी में सभी सुख प्राप्त होते है , उसके जीवन में कोई भी संकट नहीं आता है, उसे भगवान श्री विष्णु एवं तुलसी माँ की पूर्ण कृपा मिलती है।
तुलसी विवाह के दिन तुलसी जी की धूप, दीप से विधिवत पूजा करके उन्हें लाल चुनरी पहनाएं, और अपनी मनोकामना कहते हुए उनके चारो ओर कलावा लपेट दें ।
आज तुलसी जी को भूलकर भी नहीं तोड़ें ।
आज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष ब्रत, बुध प्रदोष ब्रत है । प्रदोष तिथि को भगवान भोलेनाथ जी का ब्रत रखा जाता है ।
मान्यता है कि जो जातक प्रदोष का व्रत रख कर संध्या के समय शंकर जी की आराधना करते हैं उन्हें योग्य जीवन साथी मिलता है, दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सहयोग बना रहता है ।
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती का पूजन करने से जीवन में सुख – सौभाग्य की वर्षा होती है, साथ ही जातक के सभी संकट दूर हो जाते हैं । ।
प्रदोष व्रत में सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक पूजा करने का विशेष महत्त्व है । इस दिन सम्पूर्ण शिव परिवार का पूजन करने से भगवान शिव अपने भक्त पर बहुत प्रसन्न होते है ।
प्रदोष व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं। प्रदोष ब्रत रखने वाले जातक के पूरे परिवार पर भगवान भोलनाथ और माँ पार्वती की सदैव असीम कृपा बनी रहती है ।
प्रदोष को प्रदोष कहने के शास्त्रों में एक मिलती है। माना जाता है कि एक बार चंद्र देव को क्षय रोग हो गया, जिसके कारण उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था।
अपने रोग के निवारण के लिए चंद्र देव जी भगवान शिव के पास गए, प्रभु ने चंद्र देव के क्षय रोग का निवारण त्रयो करके उन्हें त्रियोदशी के दिन ही पुन:जीवन प्रदान किया था तभी से इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा है ।
प्रदोष व्रत में फलाहार किया जाता है इस व्रत में अन्न, चावल, लाल मिर्च, सादा नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
तुलसी जी को “विष्णु प्रिया” कहा गया है, तुलसी विवाह के महत्त्व जानने से समस्त पापो का नाश होता है,
नक्षत्र (Nakshatra) – रेवती 3.11 AM, 14 नवम्बर तक
नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी- रेवती नक्षत्र का स्वामी बुद्धि के कारक बुध देव जी एवं इस नक्षत्र के देवता “पूषा” हैं जो सूर्य भगवान का ही एक रूप है ।
रेवती नक्षत्र आकाश मंडल में अंतिम नक्षत्र है। यह मीन राशि में आता है। रेवती का अर्थ है ‘समृद्ध’ और यह सुख – समृद्धि, धन और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।
रेवती नक्षत्र की गणना गंडमूल नक्षत्रों में की जाती है । इस नक्षत्र में जन्मे जातको को विष्णु भगवान की पूजा अवश्य करनी चाहिए । इन्हे नित्य विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से जीवन में श्रेष्ठ सफलता की प्राप्ति होती है । रेवती नक्षत्र का आराध्य वृक्ष महुआ और स्वभाव मृदु माना गया है ।
रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले स्त्री और पुरुष दोनों में विपरीत लिंग के व्यक्तियों के प्रति अधिक आकर्षण होता है। इनके दोस्तों में विपरीत लिंग के व्यक्तियों की अच्छी संख्या होती है।
रेवती नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम कद और गौर वर्ण के व्यक्ति होते हैं। यह छल कपट से दूर रहते है ।
यह कुशाग्र बुध्दि के, ईश्वर में आस्था रखने वाले, व्यवहार कुशल लेकिन बहुत ही जिद्दी होते है, इन्हे किसी की भी गलत बात सहन नहीं होती है। यह अपने जीवन में काफी सुदूर / विदेश यात्रायें करते है ।
रेवती नक्षत्र के लिए भाग्यशाली अंक 3 और 5, भाग्यशाली रंग भूरा, और भाग्यशाली दिन शनिवार और गुरुवार होता है ।
रेवती नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को इस नक्षत्र देवता के नाममंत्र:- “ॐ रेवत्यै नमः”l मन्त्र की माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।
दीपावली के दिन इस तरह से करें पूजा, मां लक्ष्मी, गणेश जी की मिलेगी असीम कृपा, अवश्य जानिए दीपावली की आसान पूजन विधि
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- योग (Yog) – वज्र 15.26 PM तक तत्पश्चात सिद्धि
- योग के स्वामी, स्वभाव :- वज्र योग के स्वामी वरुण जी और स्वभाव हानिकारक माना जाता है ।
- प्रथम करण : – बालव 13.01 PM तक
- करण के स्वामी, स्वभाव :- बालव करण के स्वामी ब्रह्म जी और स्वभाव सौम्य है ।
- द्वितीय करण : – कौलव 23.23 PM तक तत्पश्चात तैतिल
- करण के स्वामी, स्वभाव :- कौलव करण के स्वामी मित्र और स्वभाव सौम्य है ।
- गुलिक काल : – बुधवार को शुभ गुलिक 10:30 से 12 बजे तक ।
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- दिशाशूल (Dishashool)- बुधवार को उत्तर दिशा में दिशा शूल होता है ।
इस दिन कार्यों में सफलता के लिए घर से सुखा / हरा धनिया या तिल खाकर जाएँ ।
- राहुकाल (Rahukaal) : – बुधवार को राहुकाल दिन 12:00 से 1:30 तक ।
- सूर्योदय – प्रातः 6.42 AM
- सूर्यास्त – सायं 17.28 PM
- विशेष – द्वादशी के दिन तुलसी तोड़ना, मसूर का सेवन करना वर्जित है।
- द्वादशी के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिए, इस दिन यात्रा करने से धन हानि एवं असफलता की सम्भावना रहती है।
- मुहूर्त :- तुलसी – भगवान शलिग्राम विवाह, बुध, प्रदोष ब्रत
- पर्व त्यौहार-
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“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र (नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
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