Shukrwar ka panchag, शुक्रवार का पंचांग, 22 मार्च 2024 का पंचांग,

गुरुवार का पंचांग शनिवार का पंचांग

शुक्रवार का पंचांग, Shukrwar ka panchag, 22 मार्च 2024 का पंचांग,

शुक्रवार का पंचांग, shukrwar ka panchang,

  • Panchang, पंचाग, Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang, पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-

    1:- तिथि (Tithi)
    2:- वार (Day)
    3:- नक्षत्र (Nakshatra)
    4:- योग (Yog)
    5:- करण (Karan)


    पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी नित्य पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।

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    22 मार्च 2024 का पंचांग22 March 2024 ka Panchang,

  • महालक्ष्मी मन्त्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
  •  
  • ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥


आज का पंचांग, aaj ka panchang,

  • *विक्रम संवत् 2080,
  • * शक संवत – 1945,
    *कलि संवत – 5124
    * अयन – उत्तरायण,
    * ऋतु – बसंत ऋतु,
    * मास – फाल्गुन माह
    * पक्ष – शुक्ल पक्ष
    *चंद्र बल – मिथुन, सिंह, तुला, वृश्चिक, कुम्भ, मीन,

शुक्रवार को शुक्र देव की होरा :-

प्रात: 6.22 AM से 7.33 AM तक

दोपहर 1.29 PM से 2.30 PM तक

रात्रि 20.31 PM से 9.30 PM तक

दाहिने हाथ के अंगूठे से नीचे के हिस्से ( शुक्र का स्थान ) और अंगूठे पर थोड़ा सा इत्र लगाकर, ( इत्र ना मिले तो उसके बिना भी कर सकते है) बाएं हाथ के अंगूठे से उस हिस्से को शुक्र की होरा में “ॐ शुक्राये नम:” या

‘ॐ द्रांम द्रींम द्रौंम स: शुक्राय नम:।’ मंत्र का अधिक से अधिक जाप करते हुए अधिक से अधिक रगड़ते / मसाज करते रहे ( कम से कम 10 मिनट अवश्य )I

यह उपाय आप कोई भी काम करते हुए चुपचाप कर सकते है इसके लिए किसी भी विधि विधान की कोई आवश्यकता नहीं है I

सुख समृद्धि, ऐश्वर्य, बड़ा भवन, विदेश यात्रा, प्रेम, रोमांस, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए शुक्रवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा में शुक्रदेव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शुक ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

शुक्र देव के मन्त्र :-

ॐ शुं शुक्राय नमः।। अथवा

” ॐ द्राम द्रीम द्रौम सः शुक्राय नमः “।।

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  • नक्षत्र ( Nakshatra ) : मघा

    नक्षत्र के स्वामी :–    मघा नक्षत्र के देवता पितर देव और नक्षत्र स्वामी केतु जी है ।

    मघा नक्षत्र के देवता पितर देव और नक्षत्र स्वामी केतु जी है। 

     मघा का अर्थ होता है महान। मघा नक्षत्र का आकाश में 10वां स्थान है। मघा नक्षत्र के चारों चरण सिंह राशि में हीआते हैं।  

    मघा नक्षत्र को सिंहासन द्वारा दर्शाया गया है जो शक्ति, उच्च प्रतिष्ठा, गुणों का प्रतीक है। मघा नक्षत्र के जातको पर जीवन भर केतु और सूर्य का प्रभाव रहता है।  

    मघा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष: बरगद एवं नक्षत्र का स्वभाव उग्र, क्रूर माना गया है।

    मघा नक्षत्र में जन्मे जातक बुद्धिमान, स्पष्टवादी, दयालु, भरोसेमंद, साहसी, धीरे बोलने वाले, बड़ो का सम्मान करने वाले और अपनी स्त्री के वश में रहने वाले होते है। इन्हे भूमि, भवन और माता का पूर्ण सुख मिलता है।

    लेकिन यदि चन्द्रमा, केतु और सूर्य खराब स्थिति में हैं तो जातक क्रोधी, शक्की, भावुक, बहुत अधिक चिंता करने वाला होता है।

    इस नक्षत्र में जन्म लेने वाली स्रियाँ मददगार, परोपकारी, विलासी जीवन पर खर्च करने वाली लेकिन विवादों में शामिल होने वाली जल्द ही आवेश में आ जाने वाली होती है ।

    मघा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 7 और 10, भाग्यशाली रंग, क्रीम, लाल , भाग्यशाली दिन शनिवार और मंगलवार का माना जाता है ।

    मघा नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ पितृभ्यो नमः”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।

    मघा नक्षत्र के जातको को हर अमावस्या को पितरो के निमित ब्राह्मण भोजन और दान पुण्य करना चाहिए इससे पितरो के आशीर्वाद से जीवन से अस्थिरताएँ दूर होती है ।

    इस नक्षत्र के जातको को भगवान शिव और माँ काली की आराधना भी श्रेष्ठ फलदाई कही गयी है ।

    मघा नक्षत्र का पेड़ बरगद है, अतः मघा नक्षत्र में बरगद के पेड़ की पूजा करनी चाहिए।

    इस नक्षत्र के जातको को बरगद के पेड़ के एक पत्ते पर हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसे अपने घर के मंदिर में रखकर अगले दिन उस पत्ते को बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए ।

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    योग(Yog) :- धृति 18.36 PM तक तत्पश्चात शूल

    योग के स्वामी, स्वभाव :-  विष्कम्भ योग के स्वामी यम एवं स्वभाव हानिकारक है ।

    प्रथम करण : – कौलव 17.59 AM तक

    करण के स्वामी, स्वभाव :- कौलव करण के स्वामी मित्र और स्वभाव सौम्य है ।

    द्वितीय करण :- तैतिल पूर्ण रात्रि तक

    करण के स्वामी, स्वभाव :-  तैतिल करण के स्वामी विश्वकर्मा जी और स्वभाव सौम्य है ।

    • गुलिक काल : – शुक्रवार को शुभ गुलिक प्रात: 7:30 से 9:00 तक ।
    • दिशाशूल (Dishashool)- शुक्रवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है ।

      यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से दही में चीनी या मिश्री डालकर उसे खाकर जाएँ ।
    • राहुकाल (Rahukaal)-दिन – 10:30 से 12:00 तक।
    • सूर्योदय -प्रातः 06:22
    • सूर्यास्त – सायं : 18:34
    • विशेष – त्रियोदशी को बैगन नहीं खाना चाहिए , त्रियोदशी को बैगन खाने से पुत्र को कष्ट मिलता है ।
    • पर्व त्यौहार-
    • मुहूर्त (Muhurt) –

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  • “हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

    आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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    ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501
    ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)


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