महाशिवरात्रि विशेषशिव पुराण के अनुसार इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव विवाह बंधन में बंधे थे।महाशिवरात्रि के पावन अवसर भगवान शिव को प्रसन्न एवं संतुष्ट करना सब पापों को नाश करने वाला तथा परम गुणकारी है,जो भी जीव उनके चरणों में प्रणाम करता है भगवान शिव अपने भक्तजनों को मृत्यु आदि विकारों से रहित कर देते हैं इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा का विधान है।

महाशिवरात्रि विशेष
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शिव पुराण के अनुसार इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव विवाह बंधन में बंधे थे।
महाशिवरात्रि के पावन अवसर भगवान शिव को प्रसन्न एवं संतुष्ट करना सब पापों को नाश करने वाला तथा परम गुणकारी है,जो भी जीव उनके चरणों में प्रणाम करता है भगवान शिव अपने भक्तजनों को मृत्यु आदि विकारों से रहित कर देते हैं इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा का विधान है।
बता दें कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के देव महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए ये दिन बेहद ही खास होता है।जो व्यक्ति पूरे साल सोमवार के व्रत न रख कर ये व्रत रख लेता है उसका जीवन जन्म-जन्मांतर के लिए सुखी हो जाता है।वहीं इसी के साथ जो लोगअपनी खास मनोकामना को जल्द पूर्ण करवाना चाहते हैं तो उन्हें इस दिन भगवान शिव की पूजा जरूर करनी चाहिए।भगवान शिव हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परम सुख शान्ति और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
महाशिवरात्रि भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए बेहद खास दिन होता है।इस दिन जो भी भक्त भगवान भोलेनाथ की उपासना करता है वह परम भाग्यशाली होता है।भगवान शिव के लिंग और मूर्ति, दोनों की पूजा की जाती है।यह पूजा इसलिए की जाती है कि शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निराकार और रूपवान होने के कारण साकार कहे गए हैं।माना जाता है कि जो भक्त शिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेन्द्रिय होकर अपनी पूर्ण शक्ति एवं सामर्थ्य द्वारा निश्छल भाव से शिवजी की यथोचित पूजा करता है वह वर्ष-पर्यन्त शिव पूजन करने का सम्पूर्ण फल तत्काल प्राप्त कर लेता है।
‘स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में महाशिवरात्रि के उपवास, पूजा,जप तथा जागरण की महिमा का वर्णन है।‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है।उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और भी दुर्लभ है।लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वशिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है।
शिवलिंग का प्राकट्य-
पुराणों में आता है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं।ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा ‘संसार का स्वामी कौन ?’ इस बात पर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई तो देवताओं ने इसकी जानकारी देवाधिदेव भगवान शंकर को दी।
भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए।दोनों ने उस शिवलिंग की पूजा की।यह विराट शिवलिंग ब्रह्मा जी की विनती पर बारह ज्योतिर्लिंगों में विभक्त हुआ।फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य दिवस महाशिवरात्रि कहलाया।
दूसरी पुराणों में ये कथा आती है कि सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था उस समय भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिये स्वयं ही सारा विषपान कर लिया था।विष पीने से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से पुकारे जाने लगे।पुराणों के अनुसार विषपान के दिन को ही महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।
पुराणों अनुसार ये भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था।प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि-
प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है,लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी महाशिवरात्रि कही गई है।इस दिन शिवोपासना भुक्ति एवं मुक्ति दोनों देने वाली मानी गई है, क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा विष्णु ने शिवलिंग की पूजा सृष्टि में पहली बार की थी और महाशिवरात्रि के ही दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी। इसलिए भगवान शिव ने इस दिन को वरदान दिया था और यह दिन भगवान शिव का बहुत ही प्रिय दिन है।
मफाल्गुनकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। ॥ शिवलिंगतयोद्रूत: कोटिसूर्यसमप्रभ॥
भगवान शिव अर्धरात्रि में शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए शिवरात्रि व्रत में अर्धरात्रि में रहने वाली चतुर्दशी ग्रहण करनी चाहिए।कुछ विद्वान प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी विद्धा चतुर्दशी शिवरात्रि व्रत में ग्रहण करते हैं।नारद संहिता में आया है कि जिस तिथि को अर्धरात्रि में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी हो, उस दिन शिवरात्रि करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। जिस दिन प्रदोष व अर्धरात्रि में चतुर्दशी हो, वह अति पुण्यदायिनी कही गई है।
ईशान संहिता के अनुसार इस दिन ज्योतिर्लिग का प्रादुर्भाव हुआ, जिससे शक्तिस्वरूपा पार्वती ने मानवी सृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कारण है कि इस दिन क्षीण चंद्रमा के माध्यम से पृथ्वी पर अलौकिक लयात्मक शक्तियां आती हैं,जो जीवनीशक्ति में वृद्धि करती हैं।यद्यपि चतुर्दशी का चंद्रमा क्षीण रहता है,लेकिन शिवस्वरूप महामृत्युंजय दिव्यपुंज महाकाल आसुरी शक्तियों का नाश कर देते हैं। मारक या अनिष्ट की आशंका में महामृत्युंजय शिव की आराधना ग्रहयोगों के आधार पर बताई जाती है।बारह राशियां,बारह ज्योतिर्लिंगों की आराधना या दर्शन मात्र से सकारात्मक फलदायिनी हो जाती है।
यह काल वसंत ऋतु के वैभव के प्रकाशन का काल है। ऋतु परिवर्तन के साथ मन भी उल्लास व उमंगों से भरा होता है। यही काल कामदेव के विकास का है और कामजनित भावनाओं पर अंकुश भगवद् आराधना से ही संभव हो सकता है। भगवान शिव तो स्वयं काम निहंता हैं, अत: इस समय उनकी आराधना ही सर्वश्रेष्ठ है।
महाशिवरात्रि-
महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है।भगवान शिव का यह प्रमुख पर्व फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माता पार्वती की पति रूप के महादेव शिव को पाने के लिये की गई तपस्या का फल महाशिवरात्रि है। यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है।इसी दिन माता पार्वती और शिव विवाह के पवित्र सूत्र में बंधे।शादी में जिन 7 वचनों का वादा वर-वधु आपस में करते है उसका कारण शिव पार्वती विवाह है।महादेव शिव का जन्म उलेखन कुछ ही ग्रंथों में मिलता है।परंतु शिव अजन्मा है उनका जन्म या अवतार नहीं हुआ। महाशिवरात्रि पर्व भारत वर्ष में काफी धूम-धाम से मनाया जाता है।
हर हर महादेव।

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