शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchang, 5 नवम्बर 2022 का पंचांग,

शनिवार का पंचांग

Shaniwar Ka Panchang, शनिवार का पंचांग5 November 2022 ka Panchang,

  • Panchang, पंचाग, ( Panchang 2022, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)


पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang), आज का पंचांग, aaj ka panchang,।

  • शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang, )
    5 नवम्बर 2022
     का पंचांग, 5 November 2022 ka Panchang,
  • शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र – ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
    ।। आज का दिन मंगलमय हो ।।
  • दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से आयु का नाश होता है । अत: शनिवार को बाल और दाढ़ी दोनों को ही नहीं कटवाना चाहिए।
  • शनिवार के दिन पीपल के नीचे हनुमान चालीसा पड़ने और गायत्री मन्त्र की àएक माला का जाप करने से किसी भी तरह का भय नहीं रहता है, समस्त बिग़डे कार्य भी बनने लगते है ।
  • शिवपुराण के अनुसार शनि देव पिप्लाद ऋषि का स्मरण करने वाले, उनके भक्तो को कभी भी पीड़ा नहीं देते है इसलिए जिन के ऊपर शनि की दशा चल रही हो उन्हें अवश्य ही ना केवल शनिवार को वरन नित्य पिप्लाद ऋषि का स्मरण करना चाहिए

    शनिवार के दिन पिप्पलाद श्लोक का या पिप्पलाद ऋषि जी के केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि देव की कृपा मिलती हैशनि की पीड़ा निश्चय ही शान्त हो जाती है ।

* विक्रम संवत् 2079,
* शक संवत – 1944,
* कलि संवत 5124,
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – 
कार्तिक माह,
* पक्ष – 
शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – मिथुन, कर्क. तुला, धनु, कुम्भ, मीन,।

  • तिथि (Tithi)- द्वादशी 17.06 PM तक तत्पश्चात त्रियोदशी
  • तिथि का स्वामी – द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री विष्णु जी और त्रियोदशी तिथि के स्वामी कामदेव जी है।

हिंदू पंचाग की बाहरवीं तिथि द्वादशी (Dwadashi) कहलाती है। द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री हरि, श्री विष्णु जी है ।

इस तिथि का नाम यशोबला भी है, क्योंकि इस दिन भगवान श्री विष्णु जी / भगवान श्रीकृष्ण जी का आंवले, इलाइची, पीले फूलो से पूजन करने से यश, बल, साहस समस्त भौतिक सुखो और ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है।

द्वादशी तिथि के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यन्त श्रेयकर होता है। द्वादशी के दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।

भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का जन्म भी द्वादशी तिथि के दिन माना जाता है। इस दिन विष्णु भगवान के पूजन से बुध ग्रह भी मजबूत होता है ।

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तुलसी जी को “विष्णु प्रिया” कहा गया है, बिना तुलसी जी के विष्णु जी की पूजा पूर्ण नहीं होती है, तुलसी विवाह के महत्त्व जानने से समस्त पापो का नाश होता है,

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आज तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह का पर्व है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ( बहुत से लोग देव प्रबोधिनी एकादशी को ) तुलसी विवाह Tulsi vivah, भगवान श्री विष्णु जी और तुलसी जी का विवाह कराया जाता है।

शास्त्रो में तुलसी जी को “विष्णु प्रिया” कहा गया है। विष्णु जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग अनिवार्य है।

शास्त्रो के अनुसार तुलसी विवाह Tulsi Vivah में तुलसी के पौधे और भगवान श्री विष्णु जी की मूर्ति अथवा शालिग्राम पत्थर का वैदिक रीति से, पूर्ण विधि विधान से विवाह कराने से अतुलनीय पुण्य प्राप्त होता है।

तुलसी विवाह के दिन तुलसी जी के पौधे पर लाल चुनरी, वस्त्र, श्रृंगार की समस्त सामग्री अर्पित की जाती है।

शास्त्रों के अनुसार श्री शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह करने से सारे कष्ट, कलह, दुःख, समस्त पाप और रोगो का निवारण हो जाता हैं।

जिन जातको की कन्या नहीं है उन्हें विधिपूर्वक तुलसी विवाह ( Tulsi vivah ) / तुलसी पूजा अवश्य ही करनी चाहिए इससे उन्हें कन्यादान का पूर्ण फल प्राप्त होता है ।

आज शनि प्रदोष ब्रत है । प्रदोष तिथि को भगवान भोलेनाथ जी का ब्रत रखा जाता है। मान्यता है कि जो जातक प्रदोष का व्रत रख कर संध्या के समय शंकर जी की आराधना करते हैं उन्हें योग्य जीवन साथी मिलता है, दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सहयोग बना रहता है ।

प्रदोष ब्रत रखने से सुख-समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है, साथ ही जातक के सभी संकट दूर हो जाते हैं ।

प्रदोष ब्रत रखने वाले जातक के पूरे परिवार पर भगवान भोलनाथ और माँ पार्वती की सदैव असीम कृपा बनी रहती है ।

प्रदोष को प्रदोष कहने के शास्त्रों में एक मिलती है। माना जाता है कि एक बार चंद्र देव को क्षय रोग हो गया, जिसके कारण उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था।

अपने रोग के निवारण के लिए चंद्र देव जी भगवान शिव के पास गए, प्रभु ने चंद्र देव के क्षय रोग का निवारण त्रयो करके उन्हें त्रियोदशी के दिन ही पुन:जीवन प्रदान किया था तभी से इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा है । 

प्रदोष व्रत में फलाहार किया जाता है इस व्रत में अन्न, चावल, लाल मिर्च, सादा नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी 4 माह की योग निद्रा से जागते है, इस दिन इस उपाय से समस्त मनोकामनाएँ होती है पूर्ण 

तुलसी विवाह का पुण्य लिखने में देवता भी असमर्थ है, जानिए कैसे होता है तुलसी जी और शालिग्राम जी का विवाह,

नक्षत्र (Nakshatra)- उत्तर भाद्रपद

नक्षत्र के स्वामी :-   उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के देवता अहिर्बुंधन्य देव, स्वामी शनि देव जी एवं वहीं राशि स्वामी गुरु है।

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र 27 नक्षत्रों में 26वां नक्षत्र है। उत्तर भाद्रपद नक्षत्र वैवाहिक आनंद, सुख समृद्धि और शक्ति का प्रतीक है। यह प्रकाश की किरण, संसार को खुशियों का आशीर्वाद देता है।

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का आराध्य वृक्ष : नीम तथा स्वाभाव शुभ माना गया है। उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र सितारे का लिंग पुरुष है।

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक पर जीवन भर शुक्र एवं राहु ग्रह का प्रभाव बना रहता है।

इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति को हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए, इनको पीपल की सदैव / विशेषकर शनिवार को तो अवश्य ही सेवा करनी चाहिए ।

उत्तर भाद्रपद नक्षत्र के लिए भाग्यशाली अंक क्या हैं 6 और 8, भाग्यशाली रंग बैगनी तथा भाग्यशाली दिन गुरुवार, मंगलवार और शुक्रवार होता है ।

उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को इस नक्षत्र देवता के नाममंत्र:- ॐ अहिर्बुंधन्याय नमःl मन्त्र की माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।

अगर 50 की जगह 25, 60 की जगह 30 की उम्र चाहते है, जीवन में डाक्टर के पास ना जाना हो तो अवश्य करे ये उपाय   

  • योग (Yog) – हर्षण
  • योग के स्वामी, स्वभाव :- हर्षण योग के स्वामी भग देव जी और स्वभाव श्रेष्ठ है।
  • प्रथम करण : – बालव 17.06 PM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- बालव करण के स्वामी ब्रह्म जी और स्वभाव सौम्य है।
  • द्वितीय करण : – कौलव
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- कौलव करण के स्वामी मित्र और स्वभाव सौम्य है।
  • गुलिक काल : – शनिवार को शुभ गुलिक प्रातः 6 से 7:30 बजे तक ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- शनिवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है ।
    यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से अदरक खाकर, घी खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सुबह – 9:00 से 10:30 तक।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:36
  • सूर्यास्त – सायं 17:33
  • विशेष :- द्वादशी के दिन तुलसी तोड़ना निषिद्ध है। द्वादशी के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिए, इस दिन यात्रा करने से धन हानि एवं असफलता की सम्भावना रहती है। द्वादशी के दिन मसूर का सेवन वर्जित है।। 


नरक चतुर्दशी के दिन ऐसा करने से अंत में नर्क के दर्शन नहीं होते है

  • पर्व त्यौहार-
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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