मंगलवार का पंचांग, Mangalwar Ka Panchang, 1 अप्रैल 2025 का पंचांग,

मंगलवार का पंचांग, Mangalwar Ka Panchang, 1 अप्रैल 2025 का पंचांग,

आप सभी को चौथे नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें, जय माँ कुष्मांडा


मंगलवार का पंचांग, Mangalwar Ka Panchang,

Panchang, पंचाग, ( Panchang 2025, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)




पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए मंगलवार का पंचांग (Mangalvar Ka Panchang)।

शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
*करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।

आज का पंचांग, Aaj ka Panchangमंगलवार का पंचांग, Mangalvar Ka Panchang,

1 अप्रैल 2025 का पंचांग, 1 April 2025 ka panchang,

हनुमान जी का मंत्र : हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ।

।। आज का दिन मंगलमय हो ।।

*विक्रम संवत् 2081,
*शक संवत – 194
5
*कलि सम्वत 5124
*अयन – 
उत्तरायण
*ऋतु – बसंत
 ऋतु
*मास –
 चैत्र माह,
*पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन,

मौनी अमावस्या के दिन इस उपाय को करने से खुल जायेंगे भाग्य के द्वार, जानिए क्यों मौनी अमावस्या इतनी पुण्यदायक मानी जाती है

मंगलवार को मंगल की होरा :-

प्रात: 6.11 AM से 7.14 AM तक

दोपहर 01.26 PM से 2.28 PM तक

रात्रि 20.34 PM से 9.32 PM तक

मंगलवार को मंगल की होरा में हाथ की निम्न मंगल पर दो बूंद सरसो का तेल लगा कर उसे हल्के हल्के रगड़ते हुए अधिक से अधिक मंगल देव के मन्त्र का जाप करें ।

कृषि, भूमि, भवन, इंजीनियरिंग, खेलो, साहस, आत्मविश्वास

और भाई के लिए मंगल की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

मंगलवार के दिन मंगल की होरा में मंगल देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में मंगल मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

मकर संक्रांति के दिन इन उपायों को करने से खुल जायेंगे भाग्य के दरवाज़े, जानिए मकर संक्रांति के अचूक उपाय,

मंगल देव के मन्त्र

ॐ अं अंगारकाय नम: अथवा

ॐ भौं भौमाय नम:”

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तिथि :- चतुर्थी 2.32 AM, बुधवार 2 अप्रैल तक,

तिथि के स्वामी :- चतुर्थी तिथि के स्वामी विघ्हर्ता गणपति जी है ।

ज विनायक चतुर्थी तिथि है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहते है  । चतुर्थी तिथि के स्वामी देवताओं में प्रथम पूज्य, भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र भगवान गणेश जी माने गए हैं।  

इस दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना से निश्चय ही समस्त मनोवाँछित फलो की प्राप्ति होती है।

अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी तो पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा दोपहर के समय में की जाती है ।

मान्यता है कि किसी भी कार्य के प्रारम्भ में विघ्हर्ता की पूजा आराधना करने से सभी ग्रह दोष शांत होते है ।

चतुर्थी को गणपित जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके, लड्डुओं या गुड़ का भोग लगाकर “ॐ गण गणपतये नम:” मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।

गणेश जी को मोदक / लड्डू, लाल रंग के फूल, दुर्वा (दूब), शमी-पत्र, और केला अति प्रिय है, बुधवार और चतुर्थी को गजानन को यह वस्तुएं अर्पित करने से जीवन में शुभ समय आता है ।

चतुर्थी को गणेश जी की आराधना से किसी भी कार्य में विघ्न नहीं आते है, कार्यो में श्रेष्ठ सफलता मिलती है ।

चतुर्थी को गणेश जी के परिवार के सदस्यों के नामो का स्मरण, उच्चारण करने से भाग्य चमकता है, शुभ समय आता है ।

किसी भी पक्ष की चतुर्थी तिथि में मूली और बैंगन का सेवन करना मना है। चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है, और चतुर्थी को बैगन खाने से रोग बढ़ते है ।

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नवरात्री के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए माँ कुष्मांडा कोआदि शक्ति कहा गया है। 

माता का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार मां कुष्मांडा की पूजा करने से यश, बल, आयु, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। मां कुष्मांडा संसार को अनेक कष्टों और संकटों से मुक्ति दिलाती हैं।

संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं। 

क्योंकि मां कुष्मांडा को लाल रंग के फूल अधिक प्रिय बताए गए हैं इसलिए इस दिन लाल रंग के फूलों से माँ की पूजा करने का विधान है। माँ कुष्मांडा देवी को अष्टभुजा भी कहा जाता है, इनकी आठ भुजाएं हैं।

मां के हाथों में धनुष-बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल, कमंडल सुशोभित है। मां के हाथों में सिद्धियों और निधियों से युक्त जप की माला भी है।माँ कुष्मांडा की सवारी सिंह है।

चौथे नवरात्रि के दिन माता कुष्मांडा को मालपुआ का भोग लगाने से समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है । माँ कूष्माण्डा को फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करने से माँ शीघ ही प्रसन्न होती हैं।

आज माँ के यहाँ पर दिए गए दोनों में इसी भी मन्त्र का जाप अवश्य करें।

ॐ देवी कूष्माण्डायै नम:॥

अथवा

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

  • नक्षत्र (Nakshatra) – भरणी 11.06 AM तक तत्पश्चात कृतिका,
  • नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी –     भरणी नक्षत्र के देवता यमराज जी और नक्षत्र के स्वामी शुक्र जी है ।

भरणी नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से दूसरा नक्षत्र है और त्रिकोण का प्रतीक है। यह नक्षत्र प्रकृति के स्त्री वाले पहलू को इंगित करता है।

भरणी नक्षत्र बलिदान, ईर्ष्या, सहनशीलता और शुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। यह संयम का एक सितारा माना जाता है और गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है। भरणी नक्षत्र सितारा का लिंग मादा है। 

भरणी नक्षत्र का आराध्य वृक्ष आँवला और नक्षत्र स्वभाव क्रूर माना गया है ।

भरणी नक्षत्र में पैदा होने वाले एक बड़े दिल वाले व्यक्ति माने जाते हैं, यह लोगो की बातो का बुरा नहीं मानते है। आपकी ताकत आपकी मुस्कुराहट है आप हमेशा शांत और प्रसन्न रहते हैं। आप ईमानदार है और सकारात्मक रहते है। इनका पारिवारिक जीवन सुखमय रहता है ।

भरणी नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 9, 3 और 12, भाग्यशाली रंग पीला, लाल, और हरा एवं भाग्यशाली दिन मंगलवार तथा गुरुवार माना जाता है । 

भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को तथा सभी मनुष्यों को जिस दिन भारणी नक्षत्र हो उस दिन नक्षत्र देवता नाममंत्र:- “ॐ यमाय् नमः” l  मन्त्र की एक माला का जप करना चाहिए, इससे भारणी नक्षत्र के शुभ फल मिलते है ।  

भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को भगवान शंकर जी की आराधना परम फलदाई है, इन्हे इस नक्षत्र के दिन महा मृत्युंजय मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।

मकर संक्रांति के दिन इस दान से खुल जायेगे सफलता के समस्त द्वार, जानिए क्या है मकर संक्रांति का सर्वश्रेष्ठ दान

नित्य गणेश जी के परिवार के सदस्यों के नामो का स्मरण, उच्चारण करने से भाग्य चमकता है, शुभ समय आता है

  • योग :- विष्वकंभ 9.48 AM तक तत्पश्चात प्रीति
  • योग के स्वामी :-  विष्कम्भ योग के स्वामी यम एवं स्वभाव हानिकारक है ।
  • प्रथम करण : – वणिज 16.04 PM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-  वणिज करण की स्वामी लक्ष्मी देवी और स्वभाव सौम्य है ।
  • द्वितीय करण : – विष्टि 2.32 AM, बुधवार 2 अप्रैल तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-      विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
  • ब्रह्म मुहूर्त : 04.39 AM से 5.25 AM तक
  • विजय मुहूर्त : 14.30 PM से 15.20 PM तक
  • गोधूलि मुहूर्त : 18.38 PM से 19.01 PM तक
  • दिशाशूल (Dishashool)- मंगलवार को उत्तर दिशा का दिकशूल होता है।

    यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से गुड़ खाकर जाएँ ।
  • गुलिक काल : – दोपहर 12:00 से 01:30 तक है ।
  • राहुकाल (Rahukaal) दिन – 3:00 से 4:30 तक।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:11
  • सूर्यास्त – सायं 18:39
  • विशेष – चतुर्थी को मूली का सेवन नहीं करना चाहिए, चतुर्थी को मूली का सेवन करने से धन का नाश होता है   ।
  • पर्व – त्यौहार- चौथा नवरात्र, जय माँ कुष्मांडा

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र (नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

1 अप्रैल 2025 का पंचांग, ! April 2025 ka panchang, mangalwar ka panchang, aaj ka panchang, aaj ka rahu kaal, aaj ka shubh panchang,mangalwar ka rahu kaal, mangalwar ka shubh panchang, panchang, tuesday ka panchang, tuesday ka rahu kaal, आज का पंचांग, मंगलवार का पंचांग, आज का राहुकाल, आज का शुभ पंचांग, ट्यूसडे का पंचांग, ट्यूसडे का राहुकाल, पंचांग, मंगलवार का राहु काल, मंगलवार का शुभ पंचांग,

इस बार नवरात्री में माँ दुर्गा अपने इस वाहन पर सवार होकर आएगी और ऐसा रहेगा उसका फल 

ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 94252 03501
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 7587346995)


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धन्यवाद ।

सोमवार का पंचांग, Somwar Ka Panchang, 31 मार्च 2025 का पंचांग,

सोमवार का पंचांग, Somwar Ka Panchang, 31 मार्च 2025 का पंचांग,

आप सभी नवरात्री के दूसरे दिन की शुभकामनायें, आप पर सदैव माँ ब्रह्मचारिणी की असीम कृपा बनी रहे

सोमवार का पंचांग, Somwar Ka Panchang, 31 मार्च 2025 का पंचांग, 31 March 2025 ka Panchang,

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1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)

पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए, सोमवार का पंचांग, Somvar Ka Panchang।

राशिनुसार इन वृक्षों की करें सेवा, चमकने लगेगा भाग्य ,  

सोमवार का पंचांग, Somvar Ka Panchang,

31 मार्च 2025 का पंचांग, 31 March 2025 ka Panchang,

महा मृत्युंजय मंत्र – ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

  • दिन (वार) – सोमवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से पुत्र का अनिष्ट होता है शिवभक्ति को भी हानि पहुँचती है अत: सोमवार को ना तो बाल और ना ही दाढ़ी कटवाएं ।

    सोमवार के दिन भगवान शंकर की आराधना, अभिषेक करने से चन्द्रमा मजबूत होता है, काल सर्प दोष दूर होता है।

सोमवार का व्रत रखने से मनचाहा जीवन साथी मिलता है, वैवाहिक जीवन में लम्बा और सुखमय होता है।

जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए हर सोमवार को शिवलिंग पर पंचामृत या मीठा कच्चा दूध एवं काले तिल चढ़ाएं, इससे भगवान महादेव की कृपा बनी रहती है परिवार से रोग दूर रहते है।

सोमवार के दिन शिव पुराण के अचूक मन्त्र “श्री शिवाये नमस्तुभ्यम’ का अधिक से अधिक जाप करने से समस्त कष्ट दूर होते है. निश्चित ही मनवाँछित लाभ मिलता है।

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*विक्रम संवत् 2081,
* शक संवत – 1945,
*कलि संवत 5124
* अयन – उत्तारायण,
* ऋतु – बसंत ऋतु,
* मास – चैत्र माह,
* पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – मेष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक,कुम्भ ,

सोमवार को चन्द्रमा की होरा :-

प्रात: 6.13 AM से 7.15 AM तक

दोपहर 01.26 PM से 2.28 PM तक

रात्रि 8.34 PM से 9.32 PM तक

सोमवार को चन्द्रमा की होरा में अधिक से अधिक चन्द्र देव के मन्त्र का जाप करें। यात्रा, प्रेम, प्रसन्नता, कला सम्बन्धी कार्यो के लिए चन्द्रमा की होरा अति उत्तम मानी जाती है।

#मौनी_अमावस्या के दिन इस उपाय से भगवान शंकर जी की मिलेगी कृपा, जानिए #mauni_amavasya के महत्व, मौनी अमावस्या के उपाय,

सोमवार के दिन चन्द्रमा की होरा में चंद्रदेव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में चंद्र देव मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

चन्द्रमा के मन्त्र

ॐ सों सोमाय नम:।

ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम: ।

अवश्य जानिए :- माँ लक्ष्मी की कृपा चाहिए तो अवश्य करें नित्य श्री सूक्त का जाप, करें श्री सूक्त का जाप हिंदी में सिर्फ 5 मिनट में

मकर संक्रांति के दिन इस दान से खुल जायेगे सफलता के समस्त द्वार, जानिए क्या है मकर संक्रांति का सर्वश्रेष्ठ दान

  • तिथि (Tithi) – द्वितीया 9.11 AM तक तत्पश्चात तृतीया
  • तिथि का स्वामी – द्वितीया तिथि के स्वामी भगवान ब्रह्मा जी और तृतीया तिथि की स्वामी माँ गौरी और कुबेर दे जी है । 
  •  
  • आज चैत्र नवरात्री का दूसरा दिन है । नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली।
  • अर्थात ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप, त्याग और वैराग्य का आचरण करने वाली। इन्होंने भगवान भोलेनाथ जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी।
  • इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल सुशोभित है।
  • मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से सभी परेशानियां भी खत्म होती हैं, समस्त रूके हुए कार्य पूरे हो जाते हैं।
  • माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से भक्तो को सर्व सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन शादी ना हुई हो।
  • अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए नवरात्रि के द्वितीय दिन माँ ब्रह्मचारिणी के इस मन्त्र का जाप करना चाहिए।
  • या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

  • माँ ब्रह्मचारिणी अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी मानी गयी है।
  • नवरात्री के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग चढ़ाया जाता है। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाने से दीर्घ आयु का वरदान मिलता है।
  • मां ब्रह्मचारिणी पीला और सफ़ेद रंग बहुत प्रिय है इसलिए माता की पूजा में पीले अथवा सफ़ेद रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। साथ ही पीले, सफ़ेद रंग के फूल भी अर्पित करने चाहिए।
  • तुलसी विवाह का पुण्य लिखने में देवता भी असमर्थ है, जानिए कैसे होता है तुलसी जी और शालिग्राम जी का विवाह,

अवश्य पढ़ें :- चाहते है बेदाग, गोरी त्वचा तो तुरंत करें ये उपाय, आप खुद भी आश्चर्य चकित हो जायेंगे, 

नक्षत्र (Nakshatra) – अश्विनी 13.45 PM तक तत्पश्चात भरणी

नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी-      अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनीकुमार जी,  नक्षत्र का  स्वामी ग्रह मंगल एवं अधिपति ग्रह केतु जी है ।

अश्विन नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से पहला नक्षत्र है और यह नक्षत्र अश्व मुख अर्थात घोड़े के सिर का प्रतीक है। अश्विनी नक्षत्र 3 तारो का समूह है जो अश्विनी नक्षत्र साहस, जीवन, और शक्ति का प्रतीक है।

अश्विनी एक देवता नक्षत्र है जिसे अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह नाम अश्विनी-कुमारों से संबंधित है जो हिंदू देवता माने जाते हैं।

अश्विनी नक्षत्र का लिंग पुरुष है। अश्विन नक्षत्र का आराध्य वृक्ष कुचला और स्वभाव शुभ माना गया है । अश्विन नक्षत्र में जन्मे जातक समान्यता धनवान तथा भाग्यवान होते  है।  
इस नक्षत्र में चन्द्र देव जी  के होने के कारण जातक को आभूषण से प्रेम रहता है एवं जातक सुन्दर, सुखी और सौभाग्यशाली होता है।

मान्यता है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक धन, स्त्री,आभूषण तथा पुत्रादि  का पूर्ण सुख प्राप्त करते है।  ऐसे जातक सक्रिय, उत्साही होते है यह अपने फैसलों पर दृढ़ रहते हैं।  

अश्विनी नक्षत्र के जातको के लिए भाग्यशाली संख्या 2, 7 और 9, भाग्यशाली रंग पीला, मैरून, ऑरेंज, गुलाबी, एवं भाग्यशाली दिन मंगलवार तथा गुरुवार होता है ।

आज अश्विनी नक्षत्र के मंत्र “ॐ अश्विनी कुमाराभ्यां नमः” का 108 बार जाप करें इससे अश्विनी नक्षत्र को बल मिलेगा।  

अगर पश्चिम मुख का है आपका घर तो ऐसा रहना चाहिए आपके घर का वास्तु, जानिए पश्चिम दिशा के अचूक वास्तु टिप्स 
  • योग(Yog) – वैधृति 13.46 PM तक तत्पश्चात विष्वकंभ
  • योग के स्वामी :-   वैधृति योग के स्वामी दिति और स्वभाव हानिकारक है ।
  • प्रथम करण : – कौलव 9.11 AM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-      कौलव करण के स्वामी मित्र और स्वभाव सौम्य है ।

    अवश्य पढ़ें :- कुंडली में केतु अशुभ हो तो आत्मबल की होती है कमी, भय लगना, बुरे सपने आना, डिप्रेशन का होता है शिकार, केतु के शुभ फलो के लिए करे ये उपाय
  • द्वितीय करण : –  तैतिल 19.24 PM तक तत्पश्चात गर
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-  तैतिल करण के स्वामी विश्वकर्मा जी और स्वभाव सौम्य है ।
  • ब्रह्म मुहूर्त : 4.40 AM से 5.26 AM तक
  • विजय मुहूर्त : 14.30 PM से 15.19 PM तक
  • गोधूलि मुहूर्त : 18.37 PM से 19.00 PM तक
  • विशेष – द्वितीया को बैगन, कटहल और नींबू का सेवन नहीं करना चाहिए ।
  • पर्व त्यौहार- नवरात्री का दूसरा दिन, जय माँ ब्रह्मचारिणी
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

अपने धर्म, अपनी संस्कृति अपने नैतिक मूल्यों के प्रचार, प्रसार के लिए तन – मन – धन से अपना बहुमूल्य सहयोग करें । आप हमें अपनी इच्छा – सामर्थ्य के अनुसार सहयोग राशि 9425203501 पर Google Pay कर सकते है ।
आप पर ईश्वर की असीम अनुकम्पा की वर्षा होती रहे ।

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ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501
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रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag, 30 मार्च का पंचांग 2025 का पंचांग,

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आप सभी को चैत्र नवरात्री, हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag,

30 मार्च 2025 का पंचांग30 March 2025 ka Panchang,

अवश्य पढ़ें :-  मनचाही नौकरी चाहते हो, नौकरी मिलने में आती हो परेशानियाँ  तो अवश्य करें ये उपाय 

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1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)



पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे । जानिए रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang।

रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang,
30 मार्च 2024 का पंचांग
30 March 2024 ka Panchang,

जानिए नवरात्री में कन्या पूजन में माता के किन किन स्वरूपों की पूजा की जाती है

इस लक्ष्मी मंदिर में विश्व में सबसे ज्यादा सोना लगा है, जानिए कहाँ और कैसा है माँ लक्ष्मी का यह अद्भुत मंदिर,

भगवान सूर्य जी का मंत्र : ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।
।। आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो ।।

👉🏽दिन (वार) रविवार को की गई सूर्य पूजा से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन उगते हुए सूर्य को देव को एक ताबें के लोटे में जल, चावल, लाल फूल और रोली डालकर अर्ध्य करें।

इस दिन आदित्य ह्रदय स्रोत्र का पाठ करें एवं यथा संभव मीठा भोजन करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य देव को जल देने से पितृ कृपा भी मिलती है।

घर पर कैसा भी हो वास्तु दोष अवश्य करें ये उपाय, जानिए वास्तु दोष निवारण के अचूक उपाय

रविवार के दिन भैरव जी के दर्शन, आराधना से समस्त भय और संकट दूर होते है, साहस एवं बल की प्राप्ति होती है । अत: रविवार के दिन मंदिर में भैरव जी के दर्शन अवश्य करें ।

रविवार के दिन भैरव जी के मन्त्र ” ॐ काल भैरवाय नमः “ या ” ॐ श्री भैरवाय नमः “ की एक माला जाप करने से समस्त संकट, भय दूर होते है, रोगो, अकाल मृत्यु से बचाव होता है, मनवांछित लाभ मिलता है।

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नवरात्री में घर, कारोबार में इस विधि से करें कलश की स्थापना, अवश्य जानिए कलश स्थापना की सही और बहुत ही आसान विधि

*विक्रम संवत् 2081,
* शक संवत – 1945,
*कलि संवत 5124
* अयन – उत्तरायण,
* ऋतु – बसंत ऋतु,
* मास – चैत्र माह
* पक्ष – शुक्ल पक्ष
* चंद्र बल – वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, मीन,

रविवार को सूर्य देव की होरा :-

प्रात: 6.14 AM से 7.16 AM तक

दोपहर 01.27 PM से 02.29 PM तक

रात्रि 20.33 PM से 9.31 PM तक

रविवार को सूर्य की होरा में अधिक से अधिक अनामिका उंगली / रिंग फिंगर पर थोड़ा सा घी लगाकर मसाज करते हुए सूर्य देव के मंत्रो का जाप करें ।

सुख समृद्धि, मान सम्मान, सरकारी कार्यो, नौकरी, साहसिक कार्यो, राजनीती, कोर्ट – कचहरी आदि कार्यो में सफलता के लिए रविवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

रविवार के दिन सूर्य देव की होरा में सूर्य देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

यह है नवरात्री में कलश स्थापना का सर्वोत्तम मुहूर्त, इस समय घर पर कलश की स्थापना तो माँ दुर्गा की मिलेगी असीम कृपा

अवश्य जानिए देव दीपावली किस दिन मनाई जाएगी, देव दीपावली क्यों मनाते है 

सूर्य देव के मन्त्र :-

ॐ भास्कराय नमः।।

अथवा

ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।

  • तिथि (Tithi) – प्रतिपदा 12.49 PM तक तत्पश्चात द्वितीया,
  • तिथि के स्वामी :- प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि देव जी और द्वितीया तिथि के स्वामी भगवान ब्रह्मा जी है ।
  • आज से अति पुण्य दायक चैत्र नवरात्री प्रारम्भ हो रहे है । नवरात्री के इन 9 दिनों में प्रतिदिन माँ दुर्गा जी के अलग अलग शक्ति रूपों की आराधना की जाती है, मान्यता है कि इन 9 दिनों में माता दुर्गा जी के रूपों की आराधना से जीवन के सभी कष्ट दूर होते है, समस्त मनोकामनाएं निश्चित ही पूर्ण होती है ।
  • नवरात्री के पहले दिन माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में माँ दुर्गा का पहला स्वरूप हैं । पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा।
  • नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। मां शैलपूत्री सौभाग्‍य का प्रतीक मानी गयी हैं।
  • माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। देवी का वाहन बैल है। मां शैलपुत्री के मस्तक पर अर्ध चंद्र विराजित है। माता शैलपुत्री मूलाधार चक्र की देवी मानी जाती हैं।
  • अपने पूर्व जन्म में ये सती के रूप में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं, उस जन्म में सती माता का विवाह भगवान शंकर जी से हुआ था।
  • पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी ‘शैलपुत्री’ देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। अर्थात इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं।
  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मां शैलपुत्री चंद्रमा के दोष को दूर करती हैं। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है, उन्हें माता के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना करनी चाहिए।
  • आज माता के दिव्य मन्त्र – ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। की एक माला का जप अवश्य ही करना चाहिए ।
  • पहले नवरात्र के दिन मां शैलपुत्री को गाय के घी भोग लगाने चाहिए, इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है ।

    अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए नवरात्री में अवश्य करें ये उपाय  

अवश्य पढ़ें :- जानिए अपने दिल की कैसे करे देखभाल, दिल की बीमारी के आसान किन्तु बहुत ही अचूक उपाय,

अवश्य पढ़ें :-हर संकट को दूर करने, सर्वत्र सफलता के लिए नित्य जपें हनुमान जी के 12 चमत्कारी नाम,

आज हिंदू नव वर्ष 2082 प्रारम्भ हो रहा है ।चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा के दिन से हिन्दु नव वर्ष अर्थात हिन्दु नव संवत्सर की शुरुआत मानी जाती है । धार्मिक ग्रंथो में इस दिन को बहुत पुण्यदायक , शुभ एवं महत्वपूर्ण माना गया है ।

‘चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति’

 ब्रह्म पुराण में लिखे इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पास के सूर्योदय पर सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी और इसी दिन से नव संवतसर, nav samvatsar, प्रारम्भ होता है ।

इस बार विक्रम संवत्सर 2082 का नाम काल युक्त होगा, रविवार से शुरू होने के कारण इसके राजा और मंत्री दोनों जी सूर्य देव जी होंगे।
आज चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा, 30 मार्च रविवार के दिन विक्रम संवत 2082 का आरंभ हो जाएगा ।

महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष या नव-सवंत्सर के आरंभ के दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में पूर्ण हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है ।

चैत्र प्रतिपदा को बहुत ही शुभ, स्वंय सिद्ध मुहूर्त माना जाता है । मान्यता है कि इस दिन शुभ किये गए शुभ कार्यो में निश्चित ही सफलता मिलती है ।

चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा के दिन ही ब्रह्माण्ड के रचियता भगवान ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का सृजन किया था।

 शास्त्रो के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का राज्याभिषेक भी इसी शुभ दिन किया गया था ।

इसी दिन से माँ दुर्गा के श्रद्धा, भक्ति और शक्ति के नौ दिन के नवरात्रो की शुरुआत होती है।

शास्त्रों के अनुसार सतयुग का आरम्भ भी इसी तिथि से माना जाता है ।

मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही भगवान श्री विष्णु जी का मत्स्य अवतार हुआ था ।

आज के दिन घर की छत पर ऊँचा लाल / केसरीया ध्वज अवश्य लगवाएं । यह ॐ , दुर्गा जी , हनुमान जी किसी का भी हो सकता है ।

शास्त्रो के अनुसार सूर्य जब भी मेष राशी में प्रवेश करें अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रात: काल नीम की ताजी कपोलें मिश्री / गुड़ के साथ चबा अथवा पीस कर खाने से वर्ष भर रोग दूर रहते है ।

इस दिन दुर्गा सप्तशती, हनुमानचलीसा, सुन्दर काण्ड आदि का पाठ अवश्य ही करें ।

आज हिन्दू नव वर्ष के प्रारम्भ होने पर एक दूसरे को बधाई, शुभकामना सन्देश अवश्य भेजें ।

  • नक्षत्र (Nakshatra) – रेवती 16.35 PM तक तत्पश्चात अश्विनी,
  • नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी-       रेवती नक्षत्र का स्वामी बुद्धि के कारक बुध देव जी एवं इस  नक्षत्र के देवता “पूषा” हैं जो सूर्य भगवान का ही एक रूप है।  

रेवती नक्षत्र आकाश मंडल में अंतिम नक्षत्र है। यह मीन राशि में आता है।  रेवती का अर्थ है ‘समृद्ध’ और यह सुख – समृद्धि,  धन और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।

रेवती नक्षत्र की गणना गंडमूल नक्षत्रों में की जाती है । इस नक्षत्र में जन्मे जातको को विष्णु भगवान की पूजा अवश्य करनी चाहिए ।  इन्हे नित्य विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से जीवन में श्रेष्ठ सफलता की प्राप्ति होती है । रेवती नक्षत्र का आराध्य वृक्ष महुआ और स्वभाव  मृदु माना गया है ।

रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले स्त्री और पुरुष दोनों में विपरीत लिंग के व्यक्तियों के प्रति अधिक आकर्षण होता है।  इनके दोस्तों में विपरीत लिंग के व्यक्तियों की अच्छी संख्या होती है।

रेवती नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम कद और गौर वर्ण के व्यक्ति होते हैं। यह छल कपट से दूर रहते है ।

 यह कुशाग्र बुध्दि के, ईश्वर में आस्था रखने वाले, व्यवहार कुशल लेकिन बहुत ही जिद्दी होते है, इन्हे किसी की भी गलत बात सहन नहीं होती है। यह अपने जीवन में काफी सुदूर / विदेश यात्रायें करते है ।

रेवती नक्षत्र के लिए भाग्यशाली अंक 3 और 5,  भाग्यशाली रंग भूरा, और भाग्यशाली दिन  शनिवार और गुरुवार होता है ।

रेवती नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को इस नक्षत्र देवता के नाममंत्र:- “ॐ रेवत्यै नमः”l  मन्त्र की माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।

आज इस तरह से मनाये हिन्दू नव संवत्सर पूरे वर्ष मिलेंगे शुभ समाचार,


घर के बैडरूम में अगर है यह दोष तो दाम्पत्य जीवन में आएगी परेशानियाँ, जानिए बैडरूम के वास्तु टिप्स

  • योग (Yog) – इंद्र 17.54 PM तक तत्पश्चात वैधृति
  • योग के स्वामी :-  इंद्र योग के स्वामी पितृ देव जी एवं स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – बव 12.49 PM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- बव करण के स्वामी इंद्र देव और स्वभाव सौम्य है ।
  • द्वितीय करण : – बालव 22.59 PM तक तत्पश्चात कौलव,
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-   बालव करण के स्वामी ब्रह्म जी और स्वभाव सौम्य है ।
  • ब्रह्म मुहूर्त : 4.41 AM से 5.27 AM तक
  • विजय मुहूर्त : 14.30 PM से 15.19 PM तक
  • गोधूलि मुहूर्त : 18.37 PM से 19.00 PM तक
  • दिशाशूल (Dishashool)- रविवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से पान या घी खाकर जाएँ ।
  • गुलिक काल : – अपराह्न – 3:00 से 4:30 तक ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सायं – 4:30 से 6:00 तक ।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:13
  • सूर्यास्त – सायं 18:38

    आँखों की रौशनी बढ़ाने, आँखों से चश्मा उतारने के लिए अवश्य करें ये उपाय

  • विशेष – रविवार को बिल्ब के वृक्ष / पौधे की पूजा अवश्य करनी चाहिए इससे समस्त पापो का नाश होता है, पुण्य बढ़ते है।

    रविवार के दिन भगवान सूर्य देव को आक का फूल अर्पण करना किसी भी यज्ञ के फल से कम नहीं है, इससे सूर्य देव की सदैव कृपा बनी रहती है ।

    रविवार को अदरक और मसूर की दाल का सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।


    प्रतिपदा के दिन कद्दू  /  पेठे का सेवन नहीं करना चाहिए, प्रतिपदा के दिन इनका सेवन करने से धन की हानि होती है ।
  • पर्व त्यौहार- चैत्र नवरात्री, हिन्दू नव वर्ष प्रारम्भ
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत शुभ फलो वाला हो ।

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आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

30 मार्च 2025 का पंचांग, 30 March 2025 ka panchang, aaj ka panchang, aaj ka rahu kaal, aaj ka shubh panchang, panchang, Ravivar Ka Panchang, ravivar ka rahu kaal, ravivar ka shubh panchang, sunday ka panchang, Sunday ka rahu kaal, आज का पंचांग, आज का राहुकाल, आज का शुभ पंचांग, पंचांग, रविवार का पंचांग, रविवार का राहु काल, रविवार का शुभ पंचांग, संडे का पंचांग, संडे का राहुकाल,

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nav samvatsar, नव संवत्सर 2082,

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शास्त्रों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा हो, उस दिन से नव संवत्सर, nav samvatsar, आरंभ होता है।

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा के दिन से हिन्दु नव वर्ष अर्थात हिन्दु नव संवत्सर Hindi nav samvatsar की शुरुआत मानी जाती है । धार्मिक ग्रंथो में इस दिन को बहुत पुण्यदायक , शुभ एवं महत्वपूर्ण माना गया है ।

‘चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति’

 ब्रह्म पुराण में लिखे इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पास के सूर्योदय पर सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी और इसी दिन से नव संवतसर, nav samvatsar, प्रारम्भ होता है ।

चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा, 30 मार्च रविवार के दिन विक्रम संवत 2082 का आरंभ हो जाएगा ।

नवरात्री में घर, कारोबार में इस विधि से करें कलश की स्थापना, अवश्य जानिए कलश स्थापना की सही और बहुत ही आसान विधि

nav samvatsar 2081, नव संवत्सर 2081,

इस बार विक्रम संवत्सर 2082 का नाम काल युक्त होगा, रविवार से शुरू होने के कारण इसके राजा और मंत्री दोनों जी सूर्य देव जी होंगे।

शास्त्रों के अनुसार नवसंवत्सर का आरंभ जिस वार से होता है, उस वार का अधिपति ग्रह ही उस संवत्सर का राजा कहलाता है।

चूँकि इस बार रविवार के दिन हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ हो रहा है, इसलिए इस संवत्सर के राजा सूर्य देव जी होंगे ।

आज ही के दिन से नवरात्री का भी प्रारम्भ हो जायेगा इस वर्ष माँ दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी और भैसे पर सवार होकर जाएगी |

नवरात्री के दिन बहुत ही सिद्ध और शक्ति संपन्न होते है, नवरात्री के इस उपाय से मिलेगी सभी कार्यों में श्रेष्ठ सफलता, जानिए नवरात्री के अचूक उपाय 

शास्त्रो में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को एक स्वयं सिद्ध अमृत तिथि माना गया है । यह दिन इतना शुभ माना गया है कि शास्त्रो में उल्लेखित है कि यदि  इस दिन किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत की जाए या कोई संकल्प लिया जाए तो उसमें अवश्य ही सफलता मिलती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार साल 2025 में चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 मार्च को सांय 4.29 PM मिनट से प्रारम्भ होगी जो अगले दिन रविवार 30 मार्च को दोपहर 12.51 PM तक रहेगी

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – 29 मार्च, 2025 को 16:29 PM बजे से

प्रतिपदा तिथि समाप्त – 30 मार्च 2025 को दोपहर 12:51 PM बजे तक

महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष या नव-सवंत्सर के आरंभ के दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में पूर्ण हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है।

अवश्य पढ़ें :- इन उपायों से थायरॉइड रहेगा बिलकुल कण्ट्रोल में, यह है थायरॉइड के अचूक उपचार 

नव संवतसर का बहुत ही धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी है।

चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा के दिन ही लगभग एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 123  साल पहले भगवान ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का सृजन किया था।

 शास्त्रो के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का राज्याभिषेक भी इसी शुभ दिन किया गया था ।

इसी दिन से माँ दुर्गा के श्रद्धा, भक्ति और शक्ति के नौ दिन के नवरात्रो की शुरुआत होती है।

# शास्त्रों के अनुसार सतयुग का आरम्भ भी इसी तिथि से माना जाता है ।

# मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही भगवान श्री विष्णु जी का मत्स्य अवतार हुआ था ।

# चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा अर्थात नव संवत्सर के दिन ही सम्राट विक्रमादित्य ने 2081 साल पहले अपना राज्य स्थापित कर विक्रम संवत की शुरुआत की थी।

 # नव संवत्सर के दिन ही विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने भी हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में अपना श्रेष्ठ राज्य स्थापित किया था। इसी दिन से शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ भी माना जाता है ।  

#  सिंध प्रांत के प्रसिद्घ समाज सुधारक और सिंधीयो के पराम् पूजनीय वरुणावतार संत झूलेलाल इसी दिन अवतरित हुए थे ।

# इस शुभ दिन सिख धर्म के द्वितीय गुरु श्री अंगददेव का जन्म दिवस भी माना जाता है।

 # शुभ हिन्दु नव संवत्सर के दिन ही समाज को नयी राह दिखाने के लिए प्रसिद्द समाज सुधारक और विचारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी।

 # 5127 वर्ष पूर्व युगाब्द संवत्सर के प्रथम दिन ही युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी हुआ था।

मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन नीम के नए कोमल पत्तों को काली मिर्च, के साथ खाने से वर्ष भर अरोग्यता रहती है।

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manas pardal
March 25, 2025
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nav samvatsar 2082, नव संवत्सर 2082,
शास्त्रों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा हो, उस दिन से नव संवत्सर, nav samvatsar, आरंभ होता है।

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा के दिन से हिन्दु नव वर्ष अर्थात हिन्दु नव संवत्सर Hindi nav samvatsar की शुरुआत मानी जाती है । धार्मिक ग्रंथो में इस दिन को बहुत पुण्यदायक , शुभ एवं महत्वपूर्ण माना गया है ।

‘चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति’

 ब्रह्म पुराण में लिखे इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पास के सूर्योदय पर सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी और इसी दिन से नव संवतसर, nav samvatsar, प्रारम्भ होता है ।

चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा, 30 मार्च रविवार के दिन विक्रम संवत 2082 का आरंभ हो जाएगा ।

नवरात्री में घर, कारोबार में इस विधि से करें कलश की स्थापना, अवश्य जानिए कलश स्थापना की सही और बहुत ही आसान विधि
nav samvatsar 2081, नव संवत्सर 2081,
इस बार विक्रम संवत्सर 2082 का नाम काल युक्त होगा, रविवार से शुरू होने के कारण इसके राजा और मंत्री दोनों जी सूर्य देव जी होंगे।

शास्त्रों के अनुसार नवसंवत्सर का आरंभ जिस वार से होता है, उस वार का अधिपति ग्रह ही उस संवत्सर का राजा कहलाता है।

चूँकि इस बार रविवार के दिन हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ हो रहा है, इसलिए इस संवत्सर के राजा सूर्य देव जी होंगे ।

आज ही के दिन से नवरात्री का भी प्रारम्भ हो जायेगा इस वर्ष माँ दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी और भैसे पर सवार होकर जाएगी |

नवरात्री के दिन बहुत ही सिद्ध और शक्ति संपन्न होते है, नवरात्री के इस उपाय से मिलेगी सभी कार्यों में श्रेष्ठ सफलता, जानिए नवरात्री के अचूक उपाय 

शास्त्रो में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को एक स्वयं सिद्ध अमृत तिथि माना गया है । यह दिन इतना शुभ माना गया है कि शास्त्रो में उल्लेखित है कि यदि इस दिन किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत की जाए या कोई संकल्प लिया जाए तो उसमें अवश्य ही सफलता मिलती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार साल 2025 में चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 मार्च को सांय 4.29 PM मिनट से प्रारम्भ होगी जो अगले दिन रविवार 30 मार्च को दोपहर 12.51 PM तक रहेगी

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – 29 मार्च, 2025 को 16:29 PM बजे से

प्रतिपदा तिथि समाप्त – 30 मार्च 2025 को दोपहर 12:51 PM बजे तक

महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष या नव-सवंत्सर के आरंभ के दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में पूर्ण हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है।

अवश्य पढ़ें :- इन उपायों से थायरॉइड रहेगा बिलकुल कण्ट्रोल में, यह है थायरॉइड के अचूक उपचार 
नव संवतसर का बहुत ही धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी है।

चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा के दिन ही लगभग एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 123 साल पहले भगवान ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का सृजन किया था।

 शास्त्रो के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का राज्याभिषेक भी इसी शुभ दिन किया गया था ।

इसी दिन से माँ दुर्गा के श्रद्धा, भक्ति और शक्ति के नौ दिन के नवरात्रो की शुरुआत होती है।


# शास्त्रों के अनुसार सतयुग का आरम्भ भी इसी तिथि से माना जाता है ।

# मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही भगवान श्री विष्णु जी का मत्स्य अवतार हुआ था ।

# चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा अर्थात नव संवत्सर के दिन ही सम्राट विक्रमादित्य ने 2081 साल पहले अपना राज्य स्थापित कर विक्रम संवत की शुरुआत की थी।

 # नव संवत्सर के दिन ही विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने भी हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में अपना श्रेष्ठ राज्य स्थापित किया था। इसी दिन से शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ भी माना जाता है ।  

# सिंध प्रांत के प्रसिद्घ समाज सुधारक और सिंधीयो के पराम् पूजनीय वरुणावतार संत झूलेलाल इसी दिन अवतरित हुए थे ।

# इस शुभ दिन सिख धर्म के द्वितीय गुरु श्री अंगददेव का जन्म दिवस भी माना जाता है।

 # शुभ हिन्दु नव संवत्सर के दिन ही समाज को नयी राह दिखाने के लिए प्रसिद्द समाज सुधारक और विचारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी।

 # 5127 वर्ष पूर्व युगाब्द संवत्सर के प्रथम दिन ही युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी हुआ था।


मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन नीम के नए कोमल पत्तों को काली मिर्च, के साथ खाने से वर्ष भर अरोग्यता रहती है।
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कुंडली, कर्मकाण्ड एवं वास्तु विशेषज्ञ

पंडित ज्ञानेंद्र त्रिपाठी जी

कुंडली, कर्मकाण्ड एवं वास्तु विशेषज्ञ

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, kalash sthapna ka shubh muhurat 2025

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 2025, kalash sthapna ka shubh muhurat,

नवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है यह प्रत्येक वर्ष दो बार एक बार चैत्र माह में और दूसरे बार अश्विन माह में आते है।

इसके अतिरिक्त माघ माह और आषाढ़ माह में भी नवरात्री आते है जिन्हे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।

इस वर्ष 2025 में चैत्र नवरात्र रविवार 30 मार्च से शुरू होकर रविवार 6 अप्रैल तक रहेंगे।

नवरात्रि के प्रथम दिन भक्त गण अपने अपने घरो में कलश को स्थापित करके देवी दुर्गा का आह्वाहन करते हैं। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, kalash sthapna ka shubh muhurat, का बहुत ही महत्त्व है ।

मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना, shubh muhurat men kalash ssthapna करने से जीवन के सभी संकट दूर होते है, भक्तो पर माँ की असीम कृपा बनी रहती है ।

हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नौ दिनों तक शरद नवरात्री में माँ दुर्गा की आराधना की जाती है।

ब्रह्मा जी ने देवी दुर्गा को प्रसन्न करने की सर्वोत्तम विधि कन्या पूजन को ही है बताया, इस तरह से करें कन्या पूजन भाग्य हीरे की तरह लगेगा चमकने

शरद नवरात्री 2025

नवरात्रि प्रारंभ – रविवार 30 मार्च 2025 से ,,

नवरात्री समाप्त – रविवार 6 अप्रैल 2025 तक ,

राम नवमी –

राम नवमी – रविवार 6 अप्रैल 2025


नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि पर देवी दुर्गा नौ दिनों तक पृथ्वी पर वास करती हैं, और अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

नवरात्री के यह 9 दिन जिसे दुर्गा पूजा (Durga Puja) के नाम से भी जाना जाता है अति सिद्ध, शक्तिशाली, पुण्यदायक माने जाते है ।

अवश्य पढ़ें :-  अमावस्या पर ऐसे करें अपने पितरो को प्रसन्न, जीवन से सभी अस्थिरताएँ होंगी दूर,  

शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री राम ने भी लंका पति रावण से युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए लंका पर चढ़ाई करने से पहले इन्ही दिनों में देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए माँ की आराधना की थी।

नवरात्रि के पहले दिन माता के भक्त अपने अपने घरो, अपने कारोबार में कलश की स्थापना करते है। शास्त्रों के अनुसार कलश को सदैव शुभ मुहूर्त में ही स्थापित करना चाहिए । प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना के साथ ही नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व आरंभ हो जाता है।

जानिए इस वर्ष कलश की स्थापना किस मुहूर्त में करनी चाहिए ।

नवरात्री में घर, कारोबार में इस विधि से करें कलश की स्थापना, अवश्य जानिए कलश स्थापना की सही और बहुत ही आसान विधि

नवरात्री में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, Navratri me kalash sthapna ka shubh muhurat,

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – शनिवार 29 अप्रैल को शाम 4.29 PM से

प्रतिपदा तिथि समाप्त – रविवार 30 अप्रैल दो दोपहर 12.51 PM तक

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त का समय .

शरद नवरात्री में घटस्थापना के लिए शुभ समय

नवरात्रि में कलश स्थापना का रविवार को सूर्योदय से लेकर दोपहर 12.25 मिनट तक घट स्थापना का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा ।

इसके अतिरिक्त आप दोपहर 2 बजे से दोपहर 3.30 तक भी शुभ की चौघड़ियों में कलश की स्थापना कर सकते है ।

रविवार को राहू काल सुबह 04:30 PM से 6:00 PM बजे तक रहेगा, राहु काल में कलश स्थापना का कार्य नहीं करना चाहिए।

नवरात्रि के पर्व में माँ दुर्गा की सवारी का विशेष महत्व है। नवरात्रि के प्रथम दिन माँ की सवारी से ज्ञात होता है कि अगली नवरात्री तक का समय कैसा रहेगा ।

शास्त्रों के अनुसार, हर नवरात्रि में मां दुर्गा अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर आती हैं और विदाई के समय में भी माता का वाहन अलग होता है।

इस वर्ष 2025 में चैत्र नवरात्री रविवार से शुरू हो रहे हैं, इसलिए माँ दुर्गा जी हाथी पर सवार होकर आएंगी । शास्त्रों में देवी की हाथी की पालकी को बहुत शुभ माना गया है ।

नवरात्रि के प्रत्येक दिन का एक रंग माना गया है। मान्यता है कि नवरात्री में दिन के अनुसार इन रंगों का उपयोग करने, उस रंग के कपडे पहनने से सुख सौभाग्य प्राप्त होता है।

प्रतिपदा- पीला रंग,
द्वितीया- हरा रंग,
तृतीया- भूरा रंग,
 ग्रे रंग,
चतुर्थी- नारंगी रंग,
पंचमी- सफेद रंग,
षष्टी- लाल रंग,
सप्तमी- नीला रंग,
अष्टमी- गुलाबी रंग,
नवमी- बैंगनी रंग,

नवरात्री में करनी है कलश की स्थापना, रखने है ब्रत, करना है माता को प्रसन्न तो ऐसे करें नवरात्री की तैयारी,

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ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 94252 03501
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)

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navratri me kalash sthapna, नवरात्र में कलश स्थापना,

हे माँ आदि शक्ति आप अपने भक्तो पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखते हुए उनकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करे ।

नवरात्री में कलश स्थापना Navratri me kalash sthapna का बहुत महत्व है। नवरात्रि Navratri की प्रतिपदा के दिन सभी भक्त श्रद्धानुसार अपने घर / कारोबार में घट अर्थात कलश स्थापना, Kalash sthapna करते हैं।

शास्त्रो के अनुसार शुभ मुहूर्त Shubh Muhurat एवं विधि विधान से नवरात्र में कलश स्थापना करने, Navratri me kalash sthapna से माँ अति प्रसन्न होती है।

कई बार ऐसा देखा जाता है कि भक्त पूरी श्रद्धा से माँ की आराधना करते है लेकिन उन्हें कलश स्थापना Kalash sthapna की सही विधि नहीं मालूम होती है, यहाँ पर हम आपको कलश स्थापना Kalash sthapna की आसान विधि बता रहे है,

नवरात्र में कलश स्थापना कैसे करें, navratri me kalash sthapna kaise karen,

* नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त Shubh Muhurat में घर के मंदिर में अथवा घर के ईशान कोण या पूर्व दिशा में लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर माँ दुगा की मूर्ती या तसवीर को स्थापित करना चाहिए।

* प्रतिपदा के दिन सुबह शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना, Shubh Muhurat me Kalash Sthapna के लिए सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें, इस पात्र को स्थापित करने से पहले इसके नीचे सप्तधान्य बिखेर दें I

फिर इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाकर फिर एक जौ की परत बिछाएं।
इसके ऊपर फिर मिट्टी की और उसके बाद एक परत जौ की बिछाएं ततपश्चात उसको जल से अच्छी तरह से गीला करके उसके पश्चात उसपर सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक स्थापित करें।

* (इस बात का विशेष ध्यान दे कि जो कलश आप स्थापित कर रहे है वह मिट्टी, पीतल , तांबा, चाँदी या सोने का होना चाहिए। लेकिन लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग बिलकुल भी प्रयोग नहीं करे ।)

कलश को गंगा जल से भरकर उसमें पंचरत्न, रोली, मीठा, चाँदी का सिक्का डालकर उसपर आम के पत्ते लगाकर कलश को ढक्कन से ढक दें।

* फिर उस ढक्कन में अक्षत भरकर उसपर जटा वाला नारियल किसी लाल चुनरी में कलावा से लपेटकर उस पर रख दें । कलश के कंठ पर मोली अवश्य ही बाँध दें।

इस बात का विशेष ध्यान दे की कलश kalash पर रखे नारियल का मुँह किस ओर हो…….

कलश के ऊपर जो नारियल रखा जाता है उसे भगवान गणेश का प्रतीक भी माना जाता है,

नारियल का मुँह उस तरफ होता है, जिस ओर से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है। शास्त्रनुसार नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में बढ़ते है।
नारियल का मुख ऊपर की तरफ रहने से रोग प्रबल होते हैं, नारियल का मुख पूर्व की तरफ रखने से धन की हानि होती है।
लेकिन नारियल का मुख साधक की तरफ रहने से शुभ फलो की प्राप्ति होती है,
इसलिए नारियल का मुँह सदैव भक्त की तरफ ही होना चाहिए।

* इसके पश्चात् सभी देवी देवताओं का कलश में आवाहन करें। “हे माँ दुर्गा और सभी पूज्य देवी देवता आप सभी नवरात्र Navratri के इन नौ दिनों के लिए हमारे यहाँ पर पधारें।” इसके पश्चात् दीपक , धूप, अगरबत्ती जलाकर माँ की तस्वीर एवं कलश का पूजन करें। फिर माँ को फूल, माला, लौंग इलायची, नैवेद्य,पंचमेवा, इत्र, शहद, फल मिठाई आदि भी अवश्य ही अर्पित करें ।

* नवरात्र Navratri के दौरान यदि हो सके तो कलश Kalash के सामने अखंड दीप भी जलाएं।
यदि घी का दीपक लगाएं तो ध्‍यान रखें कि उसे माता की मूर्ति के दायीं ओर रखें और यदि तेल का दीपक जला रहे हैं, तो उसे मूर्ति के बायीं ओर रखें।

दीपक की स्थापना करते समय ध्यान रहे की दीपक के नीचे “चावल” अथवा “सप्तधान्य” रखकर उसके ऊपर दीपक को स्थापित करें ।

दीपक के नीचे “चावल” रखने से माँ लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है तथा दीपक के नीचे “सप्तधान्य” रखने से समस्त प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है। 

नवरात्री Navratri में माँ के आगे जो दीपक जलाएं उसमें रुई की जगह यदि सूती लाल कलावे का प्रयोग किया जाय तो माँ की शीघ्र ही कृपा प्राप्त होती है इसलिए दीपक deepak की बत्ती में सूती लाल कलावे का प्रयोग करें ।

* नवरात्रे Navratre की अष्टमी या नवमी के दिन दस साल से कम उम्र की नौ कन्याओं और एक लडके को भोजन करा कर उन्हें दक्षिणा उपहार देकर उन कंजकों से उगे हुए जौ के बीच स्थापित कलश को अपने स्थान से हिलवा देना चाहिए, उसके बाद कुछ जौं को जड सहित उखाडकर घर की तिजौरी या धन स्थान पर रखना चाहिए इससे घर में स्थाई सुख समृ्द्धि का वास होता है ।

* नवरात्री के अंतिम दिन कलश के पानी को पूरे घर में छिडक देना चाहिए, इससे घर से अशुभ शक्तियां समाप्त होती है।
नारियल को तोड़कर माता दुर्गा के प्रसाद स्वरुप घर के सदस्यों के बीच में बाँट देना चाहिए।

* मिट्टी का बर्तन जिसमें जौ उगाई गयी थी उसे बची हुई जौ की घास के साथ संध्या से पहले किसी नदी में विसर्जित कर देना चहिये।

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<< जानिए नवरात्री में घट स्थापना का शुभ मुहूर्त

पं. आचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय

9425203501
( कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)

Published By : Memory Museum
Updated On : 2025-03-24 11:19:00 PM

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शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchang, 29 मार्च 2025 का पंचांग,

शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchang, 29 मार्च 2025 का पंचांग,


Shaniwar Ka Panchang, शनिवार का पंचांग, 29 March 2025 ka Panchang,

  • Panchang, पंचाग, ( Panchang 2025, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)


पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang), आज का पंचांग, aaj ka panchang,।

  • शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang, )

    29 मार्च
     2025 का पंचांग, 29 March 2025 ka Panchang,
  • दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से आयु का नाश होता है । अत: शनिवार को बाल और दाढ़ी दोनों को ही नहीं कटवाना चाहिए।
  • शनिवार के दिन पीपल के नीचे हनुमान चालीसा पड़ने और गायत्री मन्त्र की àएक माला का जाप करने से किसी भी तरह का भय नहीं रहता है, समस्त बिग़डे कार्य भी बनने लगते है ।

* विक्रम संवत् 2081,
* शक संवत – 1946,
* कलि संवत 5126,
* अयन – उत्त्तरायण,
* ऋतु – बसंत ऋतु,
* मास – 
चैत्र माह,
* पक्ष – 
कृष्ण पक्ष,
*चंद्र बल – 
वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, मीन,

नवरात्री में करनी है कलश की स्थापना, रखने है ब्रत, करना है माता को प्रसन्न तो ऐसे करें नवरात्री की तैयारी,

शनिवार को शनि महाराज की होरा :-

प्रात: 6.15 AM से 7.17 AM तक

दोपहर 01.28 PM से 2.29 PM तक

रात्रि 20.33 PM से 9.31 PM तक

शनिवार को शनि की होरा में अधिक से अधिक शनि देव के मंत्रो का जाप करें । श्रम, तेल, लोहा, नौकरो, जीवन में ऊंचाइयों, त्याग के लिए शनि की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

शनिवार के दिन शनि की होरा में शनि देव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शनि ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

 सूर्य ग्रहण के दिन भूल कर भी ना करें ये  काम वरना बनते कार्यो में रुकावटों, धन हानि, झूठे मुकदमो का करना पड़ सकता है सामना,

शनि देव के मन्त्र :-

ॐ शं शनैश्चराय नमः।

अथवा

ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।।

  • तिथि (Tithi)- अमावस्या 16.27 PM तक तत्पश्चात प्रतिपदा ।
  • तिथि का स्वामी – अमावस्या तिथि के स्वामी पितृ देव जी और प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि देव जी है ।

आज शनि अमावस्या है, शनि अमावस्या का दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है। इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है ।

भविष्यपुराण के अनुसार शनिश्चरी अमावस्या शनिदेव को सबसे अधिक प्रिय रहती है । इस दिन कड़वे तेल में अपना चेहरा देखकर उस तेल को दक्षिणा के साथ किसी शनि मंदिर में चढ़ा दे अथवा शनि का दान लेने वाले को उस तेल का दान करें, इसे छाया दान कहते है ।

इस दिन राजा दशरथ द्वारा रचित दशरथ कृत शनि स्रोत्र का पाठ करने से शनि देव प्रसन्न होते है ।

शनि अमावस्या के दिन शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए शनि देव की पत्नी के 8 नमो ध्वजिनी, धामिनी, कंकाली, कलहप्रिया, कंटकी, तुरंगी, महिषी, अजा, का उच्चारण अवश्य जी करें ।

पीपल के पेड़ पर पितरों का वास माना गया है।  अमावस्या के दिन सुबह के समय लोहे के बर्तन में, दूध, पानी, काले तिल, शहद एवं जौ मिला कर समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित करके पीपल की 7 परिक्रमा करें, तथा इस दौरान “ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः” मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें ।

इस उपाय को करने से पितृ प्रसन्न होते है, उनका आशीर्वाद मिलता है ।

अमावस्या तिथि को पितरों के तर्पण, दान के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है । इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देकर अपने पितरों की शांति के लिए उनका तर्पण करते हैं ।

आज पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए घर पर ब्राह्मण को भोजन कराएं एवं उसे यथा शक्ति दान – दक्षिणा प्रदान करें ।

अमावस्या के दिन घर पर खीर अवश्य बनायें फिर उसमें थोड़ी सी खीर दोने पर निकाल कर पित्रों के निमित पीपल पर रख आएं ।

हर अमावस्या को गहरे गड्ढे या कुएं में एक चम्मच दूध डालें इससे कार्यों में बाधाओं का निवारण होता है ।

इसके अतिरिक्त अमावस्या को आजीवन जौ दूध में धोकर बहाएं, आपका भाग्य सदैव आपका साथ देगा ।

अमावस्या पर तुलसी के पत्ते या बिल्व पत्र बिलकुल भी नहीं तोडऩा चाहिए। अमावस्या पर देवी-देवताओं को तुलसी के पत्ते और शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने के लिए उन्हें एक दिन पहले ही तोड़कर रख लें।

यह है नवरात्री में कलश स्थापना का सर्वोत्तम मुहूर्त, इस समय घर पर कलश की स्थापना तो माँ दुर्गा की मिलेगी असीम कृपा

अवश्य पढ़ें :- जानिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसा रहना चाहिए आपका बाथरूम, अवश्य जानिए बाथरूम के वास्तु टिप्स

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कैसा भी सिर दर्द हो उसे करें तुरंत छूमंतर, जानिए सिर दर्द के अचूक उपाय

पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 का पहला सूर्य ग्रहण आज शनिवार 29 मार्च 2025 को लग रहा है ।

29 मार्च शनि अमावस्या के दिन लगने वाला यह सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार शनिवार दोपहर 2.21 बजे से शुरू होगा, सांय 4.17 PM पर अपने चरम पर होगा तथा सांय 6.14 PM को समाप्त होगा । इस सूर्य ग्रहण की अवधि लगभग 03 घंटे 53 मिनट तक रहेगी ।

शनिअमावस्या के दिन लगने वाला यह सूर्य ग्रहण मीन राशि और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में लगने जा रहा है ।

चैत्र नवरात्री के ठीक एक दिन पहले शनिवार के दिन लगने वाला यह सूर्य ग्रहण एक आंशिक सूर्य ग्रहण होगा जो दुनिया के बहुत से हिस्सों में दिखाई देगा ।

29 मार्च शनि अमावस्या को लगने वाला यह सूर्य ग्रहण भारत वर्ष में नजर नहीं आएगा । यह सूर्य ग्रहण दक्षिण अमेरिका, आंशिक उत्तरी अमेरिका, उत्तरी एशिया, उत्तर-पश्चिम अफ्रीका, यूरोप उत्तरी ध्रुव, आर्कटिक महासागर और अटलांटिक महासागर में दिखाई देने वाला है ।

चूँकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए भारत में इसका कोई भी सूतक मान्य नहीं होगा ।

आज इस तरह से मनाये हिन्दू नव संवत्सर पूरे वर्ष मिलेंगे शुभ समाचार

नक्षत्र (Nakshatra) – मूल नक्षत्र 3.23 AM, रविवार 23 मार्च तक,

नक्षत्र के स्वामी :-       मूल नक्षत्र के देवता निॠति (राक्षस) एवं स्वामी केतु जी है ।

मूल नक्षत्र का नक्षत्र मंडल में 19वां स्थान है। ‘मूल’ का अर्थ ‘जड़’ होता है।  ज्योतिष शास्त्र में गंडमूल नक्षत्र के अंतर्गत अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को रखा गया है।

ज्योतिषियों का मानना है कि अगर बच्चे का जन्म गंडमूल नक्षण में हो तब उस की शांति अवश्य करा लेनी चाहिए अन्यथा इसका अशुभ परिणाम प्राप्त होता है।

गंडमूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो, तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। लेकिन यदि बच्चे का जन्म अगर मंगलवार अथवा शनिवार के दिन हुआ है तो इसके अशुभ प्रभाव बढ़ जाते हैं।

मूल नक्षत्र में जन्मा जातक शांतिप्रिय, आकर्षक, साहसी, राजनीति में निपुण, धनवान, चतुर, वाकपटु, सौभाग्यशाली, ज्ञानवान और धार्मिक स्वभाव का होता है।

मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को रविवार को छोड़कर सदैव या समय समय पर पीपल के वृक्ष में प्रसाद और जल चढ़ाते रहना चाहिए । मूल नक्षत्र सितारे का लिंग तटस्थ है।

मूल नक्षत्र का आराध्य वृक्ष साल और नक्षत्र का स्वभाव तीक्ष्ण माना गया है ।

मूल नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 3 और 7, भाग्यशाली रंग, सुनहरा और क्रीम, भाग्यशाली दिन शनिवार, मंगलवार और बुधवार का माना जाता है ।

मूल नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ निॠतये नमः “। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।

शनि अमावस्या को लगने वाले सूर्य ग्रहण के दिन इन उपायों को करने से सभी बंद दरवाजे खुल जायेंगे, जानिए सूर्य ग्रहण के अचूक उपाय

अगर 50 की जगह 25, 60 की जगह 30 की उम्र चाहते है, जीवन में डाक्टर के पास ना जाना हो तो अवश्य करे ये उपाय   

  • योग (Yog) – ब्रह्म 22.04 PM तक तत्पश्चात इंद्र
  • योग के स्वामी, स्वभाव :-   ब्रह्म योग के स्वामी अश्विनी कुमार जी एवं स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है  ।
  • प्रथम करण : – नाग 16.27 PM तक,
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-     नाग करण के स्वामी नागदेव और स्वभाव क्रूर है ।
  • द्वितीय करण : – किस्तुघ्न 2.39 AM, रविवार 30 मार्च तक,
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-  किस्तुघ्न करण के स्वामी मरुत और स्वभाव क्रूर है ।
  • ब्रह्म मुहूर्त : 4.42 AM से 5.28 AM तक
  • विजय मुहूर्त : 14.30 PM से 15.19 PM तक
  • गोधूलि मुहूर्त : 18.36 PM से 18.59 PM तक
  • गुलिक काल : – शनिवार को शुभ गुलिक प्रातः 6 से 7:30 बजे तक ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- शनिवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है ।

    यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से अदरक खाकर, घी खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सुबह – 9:00 से 10:30 तक।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:15 AM
  • सूर्यास्त – सायं 18:37 PM
  • विशेष – अमावस्या,  श्राद्ध और व्रत के दिन काँसे के बर्तन में भोजन करना, तिल का तेल का सेवन करना,  सहवास करना निषिद्ध है । 
  • अमावस्या के दिन तुलसी के पत्ते, बिल्व पत्र या किसी भी तरफ के फूल पत्तो को बिलकुल भी नहीं तोडऩा चाहिए।


अवश्य पढ़ें :-राशिनुसार इन वृक्षों की करें सेवा, चमकने लगेगा भाग्य,

  • पर्व त्यौहार- शनि अमावस्या, सूर्य ग्रहण
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

29 मार्च 2025 का पंचांग, 29 March 2025 ka panchang, aaj ka panchang, aaj ka rahu kaal, aaj ka shubh panchang, panchang, saturday ka panchang, shanivar ka panchang, Shaniwar Ka Panchag, shanivar ka rahu kaal, shanivar ka shubh panchang, आज का पंचांग, आज का राहुकाल, आज का शुभ पंचांग, पंचांग, शनिवार का पंचांग, शनिवार का राहु काल, शनिवार का शुभ पंचांग, सैटरडे का पंचांग,

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( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)

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मंगलवार का पंचांग, Mangalwar Ka Panchang, 1 अप्रैल 2025 का पंचांग,

मंगलवार का पंचांग, Mangalwar Ka Panchang, 1 अप्रैल 2025 का पंचांग, आप सभी को चौथे नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें, जय माँ कुष्मांडा सोमवार क...