ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501 ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)
जानिए, कैसे करें नवरात्री की तैयारी, kaise karen navratri ki taiyari, नवरात्री की तैयारी, navratri ki taiyari, नवरात्री में क्या करें, navratri men kya karen, नवरात्री 2024, navratri 2024,
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे । जानिए मंगलवार का पंचांग (Mangalvar Ka Panchang)।
शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है । वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है। नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है। योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है । *करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।
आज का पंचांग, Aaj ka Panchang, मंगलवार का पंचांग, Mangalvar Ka Panchang,
1 अक्टूबर 2024 का पंचांग, 1 October 2024 ka panchang,
हनुमान जी का मंत्र : हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् । ।। आज का दिन मंगलमय हो ।।
दिन (वार) – मंगलवार Mangalwar के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से उम्र कम होती है। अत: इस दिन बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए ।
मंगलवार Mangalwar को हनुमान जी की पूजा और व्रत करने से हनुमान जी प्रसन्न होते है। मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा एवं सुन्दर काण्ड का पाठ करना चाहिए।
मंगलवार को यथासंभव मंदिर में हनुमान जी के दर्शन करके उन्हें लाल गुलाब, इत्र अर्पित करके बूंदी / लाल पेड़े या गुड़ चने का प्रशाद चढ़ाएं । हनुमान जी की पूजा से भूत-प्रेत, नज़र की बाधा से बचाव होता है, शत्रु परास्त होते है।
तिथि के स्वामी :- चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ जी और अमावस्या तिथि के स्वामी पितृ देव जी है ।
चतुर्दशी को चौदस भी कहते हैं। चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव हैं।
अतः प्रत्येक मास की चतुर्दशी विशेषकर कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन शिव जी की पूजा, अर्चना एवं रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, भक्तो के सभी संकट दूर होते है ।
प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी मासिक शिवरात्रि कहलाती है । चतुर्दशी तिथि / मासिक शिवरात्रि में रात्रि में शिव मंत्र या जागरण करना बहुत उत्तम रहता है ।
किसी भी पक्ष की चतुर्दशी में शुभ कार्य करना वर्जित हैं क्योंकि इसे क्रूरा कहा जाता है, चतुर्दशी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है।
चतुर्दशी तिथि में जन्मा जातक समान्यता धर्मात्मा, धनवान, यशस्वी, साहसी, परिश्रमी तथा बड़ो का आदर सत्कार करने वाला होता है।
चतुर्दशी तिथि में जन्मे लोगों को क्रोध बहुत आता है। इस तिथि में जन्मे जातक साहसी और परिश्रमी होते हैं। इन लोगों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है तभी इन्हे सफलता हाथ लगती है।
चतुर्दशी तिथि में जन्मे जातकों को नित्य भगवान शंकर की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
चतुर्दशी तिथि को समस्त संकटो से मुक्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र – ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्” का जाप करना अत्यंत फलदाई रहता है ।
शास्त्रों में चतुर्दशी को हिंसा, अनैतिक कार्य, मांस-मदिरा का सेवन, तिल का तेल, लाल रंग का साग, काँसे के बर्तन में भोजन एवं शारीरिक संबंध बनाना मना किया गया है ।
शास्त्रों में 3 चतुर्दशी तिथियों का बहुत महत्त्व बताया गया है । ये है अनंत चतुर्दशी, नरक चतुर्दशी और बैकुंठ चतुर्दशी ।
नक्षत्र (Nakshatra) – पूर्वाफाल्गुनी 9.16 AM तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी
नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी – पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के देवता भग (धन व ऐश्वर्य के देवता) और स्वामी शुक्र देव जी है ।
आकाश मंडल में पूर्वा फाल्गुनी को 11वां नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र का प्रतीक बिस्तर के सामने के दो पैर हैं जो आराम, अच्छे भाग्य का भी प्रतीक है।
यह नक्षत्र सुख, धन, कामुक प्रसन्नता, प्रेम और मनोरंजन को दर्शाता हैं। इस नक्षत्र काआराध्य वृक्ष : पलाश तथा स्वाभाव शुभ माना गया है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र सितारे का लिंग महिला है।
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक पर जीवनभर सूर्य और शुक्र का प्रभाव बना रहता है।
पूर्वा फाल्गुनी में जन्मा जातक सुन्दर, विलासी, स्त्रियों का प्रिय, साहसी, चतुर, वाकपटु, खुले दिल वाला और घूमने फिरने का शौक़ीन होता है, इन्हे स्त्री और धन-संपत्ति का पूर्ण सुख मिलता है।
लेकिन यदि सूर्य और शुक्र शुभ नहीं है तो जातक बहुत कामुक, विलासी, धूर्त, घमंडी, जुए – सट्टे का लती और क्रोधी हो सकता है।
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाली स्रियाँ धार्मिक, दयालु, आकर्षक, मिलनसार, आसानी से दूसरो को प्रभावित करने वाली, वैसी प्रवर्ति की होती है। यह आसानी से जीवन में सफलता प्राप्त कर लेती हैं।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 9, भाग्यशाली रंग, चाकलेटी, हल्का भूरा, भाग्यशाली दिन शुक्रवार और रविवार माना जाता है ।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ भगाय नमः”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।
संकटो से रक्षा के लिए इस नक्षत्र के जातको को नित्य भगवान शंकर की आराधना करनी चाहिए । पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे जातको को नित्य तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन माँ लक्ष्मी जी की आराधना से कभी भी धन की कमी नहीं होती है ।
“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र (नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
1 अक्टूबर 2024 का पंचांग, 1 October 2024 ka panchang, mangalwar ka panchang, aaj ka panchang, aaj ka rahu kaal, aaj ka shubh panchang,mangalwar ka rahu kaal, mangalwar ka shubh panchang, panchang, tuesday ka panchang, tuesday ka rahu kaal, आज का पंचांग, मंगलवार का पंचांग, आज का राहुकाल, आज का शुभ पंचांग, ट्यूसडे का पंचांग, ट्यूसडे का राहुकाल, पंचांग, मंगलवार का राहु काल, मंगलवार का शुभ पंचांग,
ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501 ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)
दोस्तों यह साईट बिलकुल निशुल्क है। यदि आपको इस साईट से कुछ भी लाभ प्राप्त हुआ हो, आपको इस साईट के कंटेंट पसंद आते हो तो मदद स्वरुप आप इस साईट को प्रति दिन ना केवल खुद ज्यादा से ज्यादा विजिट करे वरन अपने सम्पर्कियों को भी इस साईट के बारे में अवश्य बताएं ….. धन्यवाद ।
sarv pitra dosh amawasya ka upay, सर्व पितृदोष अमावस्या का उपाय, सर्व पितृदोष अमावस्या 2024,
sarv pitra dosh amawasya ka upay, सर्व पितृदोष अमावस्या का उपाय,
पितृ पक्ष मे sarv pitra dosh amawasya, सर्व पितृदोष अमावस्या, जिसे पितरों की अमावस्या, Pitron ki amawasya, भी कहते है इसका बहुत ही ज्यादा महत्त्व है।
मान्यता है कि यदि कोई जातक किसी भी कारण वश पितृ पक्ष में पितरो का श्राद्ध, उनका तर्पण, उनके निमित दान, ब्राह्मण भोजन आदि ना करा पाए तो भी वह यदि sarv pitra dosh amawasya, सर्व पितृदोष अमावस्या, के दिन कुछ उपाय करे तो भी उसको पूरे पितृ पक्ष का फल प्राप्त हो जाता है, उसके पितृ संतुष्ट, प्रसन्न हो जाते है।
इस मनुष्य जीवन में मनुष्य से पाप और पुण्य दोनों ही कर्म होते है। और इन्ही कर्मो के आधार पर मृत्यु के पश्चात जीव को स्वर्ग या नरक भोगना पड़ता है ।
शास्त्र कहते है कि पुत्र-पौत्रादि का यह कर्तव्य होता है कि वे अपने पूर्वजों के निमित्त शास्त्रों के अनुसार कुछ ऐसे कर्म करें जिससे उनके पूर्वजो को नरक से मुक्ति मिले अथवा वे जिस भी योनियों में हो उन्हें वहाँ पर सुख की प्राप्ति हो सके।
इसलिए सनातन धर्म में पितृऋण से मुक्त होने के लिए तर्पण Tarpan, श्राद्ध Shradh, दान Daan आदि करने का बहुत ही महत्व बताया गया है।
लेकिन बहुत खेद का विषय है कि वर्तमान समय में अधिकांश मनुष्य शास्त्रोक्त विधि को ना जानने के कारण, या जानते हुए भी लापरवाही के कारण केवल रस्मी तौर पर ही पितरों pitron के प्रति अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हैं, इससे पितरो को कष्ट होता है वह रुष्ट हो जाते है जिसके फलस्वरूप जातक को पूरे वर्ष भर अनेको कठनाइयों, अस्थिरताओं का सामना करना पड़ता है।
सूर्य की अनन्त किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम ‘अमा’ है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से ही भगवान सूर्य तीनो लोको को प्रकाशित करते हैं।
उसी अमा किरण में तिथि विशेष को भगवान चन्द्रदेव निवास (वस्य) करते हैं, इसलिए उसका नाम अमावस्या है। अमावस्या प्रत्येक धर्म सम्बन्धी कार्यों के लिए अक्षय फल देने वाली बताई गयी है।
sarv pitra dosh amawasya ka upay, सर्व पितृदोष अमावस्या का उपाय, sarv pitra dosh amawasya, सर्व पितृदोष अमावस्या, pitron ki amavasya, पितरों की अमावस्या,
sarv pitra dosh amawasya ka upay, सर्व पितृदोष अमावस्या का उपाय,
शास्त्रों के अनुसार यदपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्य तिथि होती है मगर आश्विन मास की अमावस्या पितरों के लिए परम फलदायी कही गई है। इस अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा सर्व पितृ दोष अमावस्या Pitradosh Amavasya अथवा महालया के नाम से भी जाना जाता है।
महा का अर्थ होता है ‘उत्सव का दिन’ और आलय से अर्थ है ‘घर’ चूँकि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का पृथ्वी पर निवास माना गया है, इस समय में वे अपने घर अपने सम्बन्धियों के आस पास मंडराते रहते है, अत: अश्विन की अमावस्या ashwin amavasya / सर्व पितृ दोष अमावस्या Pitradosh Amavasyaपितरों के लिए उत्सव का दिन कहलाता है ।
पितृ अमावस्या को पितृ दोष Pitradosh, काल सर्प दोष Kaalsarp Dosh और जीवन के सभी प्रकार के संकटो को दूर करने के लिये अति उत्तम कहा गया है और इस दिन वह उपाय अवश्य ही करें जिससे पितृ प्रसन्न हो और अपना आशीर्वाद प्रदान करें।
सर्वपितृ दोष अमावस्या Sarv Pitra Dosh Amavasya के दिन पितरों को शांति देने के लिए, उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ अवश्य ही करें और उसका पूरा फल पितरों को समर्पित करें।
पीपल के पेड़ पर पितरों का वास माना गया है। सर्व पितृ दोष अमावस्या के दिन सुबह के समय लोहे के बर्तन में, दूध, पानी, काले तिल, शहद एवं जौ मिला कर समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित करके पीपल की 7 परिक्रमा करें, तथा इस दौरान “ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः” मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें । इस उपाय को करने से पितृ प्रसन्न होते है, उनका आशीर्वाद मिलता है ।
पितृदोष अमावस्या Pitradosh Amavasya के दिन हर श्राद्धकर्ता को अपने घर में दोपहर में प्रेम और श्रद्धा से ब्राह्मण भोजन अवश्य ही कराना चाहिए, भोजन के पश्चात ब्राह्मण देवता को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान और नकद दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद भी जरूर लें।
इस दिन श्राद्धकर्ता की बहन, बहनोई और भान्जा जो भी उसी शहर में रहते है तो उन्हें भी आदर से बुलवाकर ब्राह्मण भोजन के बाद भोजन अवश्य ही कराना चाहिए, इससे पितृ अत्यंत प्रसन्न होते है और जातक के जीवन में हर्ष की वर्षा करते हुए उसके सभी संकटो को दूर करके विदा होते है।
इस दिन गाय को 5 फल भी अवश्य खिलाएं ।
इस दिन घर में जो भोजन बने उसमें गाय, कुत्ते, कोए और चीटियों का भोजन भी अवश्य ही निकल दें।
पितृ अमावस्या ( pitr amavasya ) के दिन क्रोध, हिंसा, अनैतिक कार्य, माँस, मदिरा का सेवन एवं स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध, मैथुन कार्य आदि का निषेध बताया गया है, जीवन में स्थाई सफलता हेतु इस दिन इन सभी कार्यों से दूर रहना चाहिए ।
पितृ अमावस्या के दिन खीर बनाकर उसे दो दोने या पत्तल पर निकाल कर मंदिर जाएँ । एक जगह खीर शिवलिंग पर चढ़ाएं, फिर दूसरे खीर के दोने को पीपल के पेड़ के नीचे रखकर पीपल पर हाथ जोड़कर वापस आ जाएँ। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते है , पितरो का भी आशीर्वाद मिलता है।
सर्व पितृ दोष अमावस्या को संध्या के समय घर के बाहर दक्षिण दिशा की तरफ बाती का मुँह रखकर पितरो का स्मरण करते हुए उनके निमित तेल दीपक अवश्य ही जलाएं ।
पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन सांय काल प्रदोष काल में पितरो के निमित किसी नदी, तालाब के किनारे या पीपल के नीचे घी का दीपक अवश्य जलाएं इसकी बत्ती का मुख दक्षिण की तरफ होना चाहिए। मान्यता है कि इस अमावस्या के दिन पितृ सांय काल जल के किनारे जल ग्रहण करने आते है, यदि जल स्थान ना हो तो सांय काल पीपल के नीचे यह घी का दीपक जला देना चाहिए ।
इससे पितरो का मार्ग प्रशस्त होता है, पितृ तृप्त होकर जातक को आशीर्वाद देकर अपने स्थान पर वापस जाते है।
सोमवार का पंचांग, Somwar Ka Panchang, 30 सितम्बर 2024 का पंचांग, 30 September 2024 ka Panchang,
Panchang, पंचाग, आज का पंचांग, aaj ka panchang, ( Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे । जानिए, सोमवार का पंचांग, Somvar Ka Panchang।
दिन (वार) – सोमवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से पुत्र का अनिष्ट होता है शिवभक्ति को भी हानि पहुँचती है अत: सोमवार को ना तो बाल और ना ही दाढ़ी कटवाएं ।
सोमवार के दिन भगवान शंकर की आराधना, अभिषेक करने से चन्द्रमा मजबूत होता है, काल सर्प दोष दूर होता है।
सोमवार का व्रत रखने से मनचाहा जीवन साथी मिलता है, वैवाहिक जीवन में लम्बा और सुखमय होता है।
जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए हर सोमवार को शिवलिंग पर पंचामृत या मीठा कच्चा दूध एवं काले तिल चढ़ाएं, इससे भगवान महादेव की कृपा बनी रहती है परिवार से रोग दूर रहते है।
सोमवार के दिन शिव पुराण के अचूक मन्त्र “श्री शिवाये नमस्तुभ्यम’का अधिक से अधिक जाप करने से समस्त कष्ट दूर होते है. निश्चित ही मनवाँछित लाभ मिलता है।
*विक्रम संवत् 2081, * शक संवत – 1945, *कलि संवत 5124 * अयन – दक्षिणायन, * ऋतु – वर्षा ऋतु, * मास – अश्विन माह, * पक्ष – कृष्ण पक्ष *चंद्र बल – वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन,
सोमवार को चन्द्रमा की होरा :-
प्रात: 6.13 AM से 7.13 AM तक
दोपहर 01.10 PM से 2.09 PM तक
रात्रि 8.08 PM से 9.09 PM तक
सोमवार को चन्द्रमा की होरा में अधिक से अधिक चन्द्र देव के मन्त्र का जाप करें। यात्रा, प्रेम,प्रसन्नता, कला सम्बन्धी कार्यो के लिए चन्द्रमा की होरा अति उत्तम मानी जाती है।
सोमवार के दिन चन्द्रमा की होरा में चंद्रदेव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में चंद्र देव मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
तिथि (Tithi) –त्रियोदशी 19.06 PM तक तत्पश्चात चतुर्दशी
तिथि का स्वामी – त्रियोदशी तिथि के स्वामी कामदेव जी और चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ जी है ।
त्रयोदशी तिथि के स्वामी कामदेव जी हैं। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते है । उन्हें सदैव युवा और आकर्षक रहने का वरदान है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र माने गए हैं। उनका विवाह प्रेम और आकर्षण की देवी रति से हुआ है।
कामदेव के हाथ में धनुष है जिसका एक कोना स्थिरता और दूसरा कोना चंचलता का प्रतीक है। कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। कामदेव जब कमान से अपना तीर छोड़ते हैं, तो उसमें कोई आवाज नहीं होती है।
कामदेव के बाण की यह विशेष बात है कि इनसे घायल होने के बाद भी व्यक्ति आनंद का सुखद अहसास महसूस करता है।
कामदेव का सम्बन्ध शुभ, प्रेम, सुख, सौंदर्य, यौवन, आनंद और कामेच्छा से है ।
कामदेव का वाहन हाथी को माना गया है। शास्त्रों में कुछ जगह कामदेव का वाहन तोते को भी बताया गया है ।
त्रियोदशी के दिन मीठे वचन बोलने, प्रसन्न रहने से जातक रूपवान होता है, उसे अपने प्रेम में सफलता एवं इच्छित एवं योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है।
त्रियोदशी को कामदेव जी का स्मरण करने से वैवाहिक सुख भी पूर्णरूप से मिलता है।
अपने रूप और आकर्षण शक्ति को बढ़ाने के लिए त्रियोदशी को कामदेव जी का मन्त्र ‘ॐ कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्’ की एक माला जाप अवश्य करें ।
इस तिथि का खास नाम जयकारा भी है। समान्यता त्रयोदशी तिथि यात्रा एवं शुभ कार्यो के लिए श्रेष्ठ होती है।
त्रियोदशी को बैगन नहीं खाना चाहिए , त्रियोदशी को बैगन खाने से पुत्र को कष्ट मिलता है।
आज मासिक शिवरात्रि है । प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है । यह दिन भगवान भोलनाथ जी को समर्पित है ।
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का 30 सितंबर की सांय 07:06 मिनट से शुरू होगी जो कि अगले दिन 1 अक्टूबर 2024 को रात्रि 09:39 मिनट पर समाप्त होगी ।
चूंकि शिवरात्रि की पूजा रात में की जाती है इसलिए आश्विन माह की शिवरात्रि का व्रत सोमवार 30 सितंबर 2024 को रखा जाएगा ।
मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान भोलनाथ जी की विधि पूर्वक पूजा आराधना की जाती है, इस दिन भगवान शंकर जी के साथ माता पार्वती जी की भी पूजा की जाती है ।
मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान महादेव जी के शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करके उन्हें शमी पत्र, बेलपत्र, सफ़ेद पुष्प, सफ़ेद चन्दन, भस्म, शक्कर / मिश्री या सफ़ेद मिठाई चढ़ाकर धूप-दीप दिखाकर उनकी कपूर से आरती की जाती है ।
शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक माह की शिवरात्रि के दिन व्रत रखकर भगवान भोलनाथ जी की पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं उनपर अपनी असीम कृपा बनाते है ।
मासिक शिवरात्रि के पुण्य से भक्तो की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है, और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
नक्षत्र (Nakshatra) – मघा 6.19 AM तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी- मघा नक्षत्र के देवता पितर देव और नक्षत्र स्वामी केतु जी है ।
मघा का अर्थ होता है महान। मघा नक्षत्र का आकाश में 10वां स्थान है। मघा नक्षत्र के चारों चरण सिंह राशि में हीआते हैं।
मघा नक्षत्र को सिंहासन द्वारा दर्शाया गया है जो शक्ति, उच्च प्रतिष्ठा, गुणों का प्रतीक है। मघा नक्षत्र के जातको पर जीवन भर केतु और सूर्य का प्रभाव रहता है।
मघा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष: बरगद एवं नक्षत्र का स्वभाव उग्र, क्रूर माना गया है।
मघा नक्षत्र में जन्मे जातक बुद्धिमान, स्पष्टवादी, दयालु, भरोसेमंद, साहसी, धीरे बोलने वाले, बड़ो का सम्मान करने वाले और अपनी स्त्री के वश में रहने वाले होते है। इन्हे भूमि, भवन और माता का पूर्ण सुख मिलता है।
लेकिन यदि चन्द्रमा, केतु और सूर्य खराब स्थिति में हैं तो जातक क्रोधी, शक्की, भावुक, बहुत अधिक चिंता करने वाला होता है।
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाली स्रियाँ मददगार, परोपकारी, विलासी जीवन पर खर्च करने वाली लेकिन विवादों में शामिल होने वाली जल्द ही आवेश में आ जाने वाली होती है ।
मघा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 7 और 10, भाग्यशाली रंग, क्रीम, लाल , भाग्यशाली दिन शनिवार और मंगलवार का माना जाता है ।
मघा नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ पितृभ्यो नमः”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।
मघा नक्षत्र के जातको को हर अमावस्या को पितरो के निमित ब्राह्मण भोजन और दान पुण्य करना चाहिए इससे पितरो के आशीर्वाद से जीवन से अस्थिरताएँ दूर होती है ।
इस नक्षत्र के जातको को भगवान शिव और माँ काली की आराधना भी श्रेष्ठ फलदाई कही गयी है ।
मघा नक्षत्र का पेड़ बरगद है, अतः मघा नक्षत्र में बरगद के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। इस नक्षत्र के जातको को बरगद के पेड़ के एक पत्ते पर हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसे अपने घर के मंदिर में रखकर अगले दिन उस पत्ते को बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए ।
विशेष – त्रियोदशी को बैगन नहीं खाना चाहिए , त्रियोदशी को बैगन खाने से पुत्र को कष्ट मिलता है ।
पर्व त्यौहार-
मुहूर्त (Muhurt) –
“हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
अपने धर्म, अपनी संस्कृति अपने नैतिक मूल्यों के प्रचार, प्रसार के लिए तन – मन – धन से अपना बहुमूल्य सहयोग करें । आप हमें अपनी इच्छा – सामर्थ्य के अनुसार सहयोग राशि 9425203501 पर Google Pay कर सकते है । आप पर ईश्वर की असीम अनुकम्पा की वर्षा होती रहे ।
30 सितम्बर 2024 का पंचांग, 30 September 2024 ka Panchang, aaj ka panchang, aaj ka rahu kaal, aaj ka shubh panchang, monday ka panchang, monday ka rahu kaal, panchang, somvar ka panchang, somvar ka rahu kaal, somvar ka shubh panchang,
आज का पंचांग, आज का राहुकाल, आज का शुभ पंचांग, पंचांग, मंडे का पंचांग, मंडे का राहुकाल, सोमवार का पंचांग, सोमवार का राहु काल, सोमवार का शुभ पंचांग
ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय9425203501 ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)
दोस्तों यह साईट बिलकुल निशुल्क है। यदि आपको इस साईट से कुछ भी लाभ प्राप्त हुआ हो, आपको इस साईट के कंटेंट पसंद आते हो तो मदद स्वरुप आप इस साईट को प्रति दिन ना केवल खुद ज्यादा से ज्यादा विजिट करे वरन अपने सम्पर्कियों को भी इस साईट के बारे में अवश्य बताएं …..धन्यवाद ।
Panchang, पंचाग, आज का पंचांग, aaj ka panchang, Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे । जानिए रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang।
रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang, 29 सितम्बर 2024 का पंचांग, 29 September 2024 ka Panchang,
भगवान सूर्य जी का मंत्र : ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।। ।। आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो ।।
👉🏽दिन (वार) रविवार को की गई सूर्य पूजा से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन उगते हुए सूर्य को देव को एक ताबें के लोटे मेंरविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag, 29 सितम्बर 2024 का पंचांग, जल, चावल, लाल फूल और रोली डालकर अर्ध्य करें।
इस दिन आदित्य ह्रदय स्रोत्र का पाठ करें एवं यथा संभव मीठा भोजन करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य देव को जल देने से पितृ कृपा भी मिलती है।
रविवार के दिन भैरव जी के दर्शन, आराधना से समस्त भय और संकट दूर होते है, साहस एवं बल की प्राप्ति होती है । अत: रविवार के दिन मंदिर में भैरव जी के दर्शन अवश्य करें ।
*विक्रम संवत् 2081, * शक संवत – 1945, *कलि संवत 5124 * अयन – दक्षिणायन, * ऋतु – वर्षा ऋतु, * मास – अश्विनी माह * पक्ष – कृष्ण पक्ष * चंद्र बल – मिथुन, सिंह, तुला, वृश्चिक, कुम्भ, मीन,
रविवार को सूर्य देव की होरा :-
प्रात: 6.13 AM से 7.12 AM तक
दोपहर 01.10 PM से 2.10 PM तक
रात्रि 20.09 PM से 9.15 PM तक
रविवार को सूर्य की होरा में अधिक से अधिक अनामिका उंगली / रिंग फिंगर पर थोड़ा सा घी लगाकर मसाज करते हुए सूर्य देव के मंत्रो का जाप करें । सुख समृद्धि, मान सम्मान, सरकारी कार्यो, नौकरी, साहसिक कार्यो, राजनीती, कोर्ट – कचहरी आदि कार्यो में सफलता के लिए रविवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
रविवार के दिन सूर्य देव की होरा में सूर्य देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
तिथि (Tithi) – द्वादशी 16.50 PM तक तत्पश्चात् त्रयोदशी
तिथि के स्वामी :- द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री विष्णु जी और त्रयोदशी तिथि के स्वामी कामदेव जी है ।
हिंदू पंचाग की बाहरवीं तिथि द्वादशी (Dwadashi) कहलाती है। द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री हरि, श्री विष्णु जी है ।
इस तिथि का नाम यशोबला भी है, क्योंकि इस दिन भगवान श्री विष्णु जी / भगवान श्रीकृष्ण जी का आंवले, इलाइची, पीले फूलो से पूजन करने से यश, बल और साहस की प्राप्ति होती है।
द्वादशी को श्री विष्णु जी की पूजा , अर्चना करने से मनुष्य को समस्त भौतिक सुखो और ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है, उसे समाज में सर्वत्र आदर मिलता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं निश्चय ही पूर्ण होती है।
द्वादशी तिथि के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यन्त श्रेयकर होता है। द्वादशी के दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।
भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का जन्म भी द्वादशी तिथि के दिन माना जाता है। इस दिन विष्णु भगवान के पूजन से बुध ग्रह भी मजबूत होता है ।
यदि द्वादशी तिथि सोमवार और शुक्रवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। द्वादशी यदि रविवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है, यह अशुभ माना जाता है, इसमें भी शुभ कार्य करना मना किया गया हैं।
लेकिन द्वादशी तिथि जब बुधवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है, ऐसे समय में किये गए कार्य कार्य सिद्ध होते है।
द्वादशी तिथि में विष्टि करण होने के कारण इस तिथि को भद्रा तिथि भी कहते है।
द्वादशी तिथि के दिन विवाह, तथा अन्य शुभ कार्य किये जाते है लेकिन इस तिथि में नए घर का निर्माण, ग्रह प्रवेश करना मना किया जाता है ।
द्वादशी के दिन तुलसी तोड़ना निषिद्ध है।
द्वादशी के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिए, इस दिन यात्रा करने से धन हानि एवं असफलता की सम्भावना रहती है। द्वादशी के दिन मसूर का सेवन वर्जित है।
द्वादशी की दिशा नैऋत्य मानी गई है इस दिन इस दिशा की ओर किए गए कार्य शुभ फल देने वाले माने जाते हैं।
आज भगवन शंकर को प्रिय, अति शुभ प्रदोष का ब्रत है ।
मान्यता है कि जो जातक प्रदोष का व्रत रख कर संध्या के समय शंकर जी की आराधना करते हैं उन्हें योग्य जीवन साथी मिलता है, दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सहयोग बना रहता है ।
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती का पूजन करने से जीवन में सुख – सौभाग्य की वर्षा होती है, साथ ही जातक के सभी संकट दूर हो जाते हैं । ।
प्रदोष व्रत में सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक पूजा करने का विशेष महत्त्व है । इस दिन सम्पूर्ण शिव परिवार का पूजन करने से भगवान शिव अपने भक्त पर बहुत प्रसन्न होते है ।
प्रदोष व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं।प्रदोष ब्रत रखने वाले जातक के पूरे परिवार पर भगवान भोलनाथ और माँ पार्वती की सदैव असीम कृपा बनी रहती है ।
प्रदोष को प्रदोष कहने के शास्त्रों में एक मिलती है। माना जाता है कि एक बार चंद्र देव को क्षय रोग हो गया, जिसके कारण उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था।
अपने रोग के निवारण के लिए चंद्र देव जी भगवान शिव के पास गए, प्रभु ने चंद्र देव के क्षय रोग का निवारण त्रयो करके उन्हें त्रियोदशी के दिन ही पुन:जीवन प्रदान किया था तभी से इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा है ।
प्रदोष व्रत में फलाहार किया जाता है इस व्रत में अन्न, चावल, लाल मिर्च, सादा नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
नक्षत्र (Nakshatra) – मघा नक्षत्र पूर्ण रात्री तक
नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी- मघा नक्षत्र के देवता पितर देव और नक्षत्र स्वामी केतु जी है। ।
मघा का अर्थ होता है महान। मघा नक्षत्र का आकाश में 10वां स्थान है। मघा नक्षत्र के चारों चरण सिंह राशि में हीआते हैं।
मघा नक्षत्र को सिंहासन द्वारा दर्शाया गया है जो शक्ति, उच्च प्रतिष्ठा, गुणों का प्रतीक है। मघा नक्षत्र के जातको पर जीवन भर केतु और सूर्य का प्रभाव रहता है।
मघा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष: बरगद एवं नक्षत्र का स्वभाव उग्र, क्रूर माना गया है।
मघा नक्षत्र में जन्मे जातक बुद्धिमान, स्पष्टवादी, दयालु, भरोसेमंद, साहसी, धीरे बोलने वाले, बड़ो का सम्मान करने वाले और अपनी स्त्री के वश में रहने वाले होते है। इन्हे भूमि, भवन और माता का पूर्ण सुख मिलता है।
लेकिन यदि चन्द्रमा, केतु और सूर्य खराब स्थिति में हैं तो जातक क्रोधी, शक्की, भावुक, बहुत अधिक चिंता करने वाला होता है।
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाली स्रियाँ मददगार, परोपकारी, विलासी जीवन पर खर्च करने वाली लेकिन विवादों में शामिल होने वाली जल्द ही आवेश में आ जाने वाली होती है ।
मघा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 7 और 10, भाग्यशाली रंग, क्रीम, लाल , भाग्यशाली दिन शनिवार और मंगलवार का माना जाता है ।
मघा नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ पितृभ्यो नमः”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।
मघा नक्षत्र के जातको को हर अमावस्या को पितरो के निमित ब्राह्मण भोजन और दान पुण्य करना चाहिए इससे पितरो के आशीर्वाद से जीवन से अस्थिरताएँ दूर होती है ।
इस नक्षत्र के जातको को भगवान शिव और माँ काली की आराधना भी श्रेष्ठ फलदाई कही गयी है ।
मघा नक्षत्र का पेड़ बरगद है, अतः मघा नक्षत्र में बरगद के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। इस नक्षत्र के जातको को बरगद के पेड़ के एक पत्ते पर हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसे अपने घर के मंदिर में रखकर अगले दिन उस पत्ते को बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए ।
विशेष – रविवार को बिल्ब के वृक्ष / पौधे की पूजा अवश्य करनी चाहिए इससे समस्त पापो का नाश होता है, पुण्य बढ़ते है। रविवार के दिन भगवान सूर्य देव को आक का फूल अर्पण करना किसी भी यज्ञ के फल से कम नहीं है, इससे सूर्य देव की सदैव कृपा बनी रहती है ।
रविवार को अदरक और मसूर की दाल का सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।
द्वादशी के दिन तुलसी तोड़ना, मसूर का सेवन करना वर्जित है।
द्वादशी के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिए, इस दिन यात्रा करने से धन हानि एवं असफलता की सम्भावना रहती है।
पर्व त्यौहार-
मुहूर्त (Muhurt) –
“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत शुभ फलो वाला हो ।
मित्रो हम इस साईट के माध्यम से वर्ष 2010 से निरंतर आप लोगो के साथ जुड़े है। आप भारत या विश्व के किसी भी स्थान पर रहते है, अपने धर्म अपनी संस्कृति को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए www.memorymuseum.net के साथ अवश्य जुड़ें, हमारा सहयोग करें ।
अगर नित्य पंचाग पढ़ने से आपको लाभ मिल रहा है, आपका आत्मविश्वास बढ़ रहा है, आपका समय आपके अनुकूल हो रहा है तो आप हमें अपनी इच्छा – सामर्थ्य के अनुसार कोई भी सहयोग राशि 9425203501 पर Google Pay कर सकते है । आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे । आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
29 सितम्बर 2024 का पंचांग, 29 September 2024 ka panchang, aaj ka panchang, aaj ka rahu kaal, aaj ka shubh panchang, panchang, Ravivar Ka Panchang, ravivar ka rahu kaal, ravivar ka shubh panchang, sunday ka panchang, Sunday ka rahu kaal, आज का पंचांग, आज का राहुकाल, आज का शुभ पंचांग, पंचांग, रविवार का पंचांग, रविवार का राहु काल, रविवार का शुभ पंचांग, संडे का पंचांग, संडे का राहुकाल,
ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501 ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)
दोस्तों यह साईट बिलकुल निशुल्क है। यदि आपको इस साईट से कुछ भी लाभ प्राप्त हुआ हो, आपको इस साईट के कंटेंट पसंद आते हो तो मदद स्वरुप आप इस साईट को प्रति दिन ना केवल खुद ज्यादा से ज्यादा विजिट करे वरन अपने सम्पर्कियों को भी इस साईट के बारे में अवश्य बताएं …..धन्यवाद ।
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे । जानिए शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang), आज का पंचांग, aaj ka panchang,।
शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang, ) 28 सितम्बर2024 का पंचांग, 28 September 2024 ka Panchang,
शनिवार के दिन पीपल के नीचे हनुमान चालीसा पड़ने और गायत्री मन्त्र की àएक माला का जाप करने से किसी भी तरह का भय नहीं रहता है, समस्त बिग़डे कार्य भी बनने लगते है ।
शिवपुराण के अनुसार शनि देव पिप्लाद ऋषि का स्मरण करने वाले, उनके भक्तो को कभी भी पीड़ा नहीं देते है इसलिए जिन के ऊपर शनि की दशा चल रही हो उन्हें अवश्य ही ना केवल शनिवार को वरन नित्य पिप्लाद ऋषि का स्मरण करना चाहिए।
शनिवार के दिन पिप्पलाद श्लोक का या पिप्पलाद ऋषि जी के केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि देव की कृपा मिलती है, शनि की पीड़ा निश्चय हीशान्त हो जाती है ।
शनिवार को शनि की होरा में अधिक से अधिक शनि देव के मंत्रो का जाप करें । श्रम, तेल, लोहा, नौकरो, जीवन में ऊंचाइयों, त्याग के लिए शनि की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
शनिवार के दिन शनि की होरा में शनि देव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शनि ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
तिथि (Tithi)- एकादशी 14.49 PM तक तत्पश्चात द्वादशी ।
तिथि का स्वामी – एकादशी तिथि के स्वामी विश्व देव जी और द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री विष्णु जी है ।
आज पितृ पक्ष की एकादशी, अति शुभ इंदिरा एकादशी है । वैसे तो वर्ष की सभी एकादशियां बहुत ही खास मानी जाती है, लेकिन इंदिरा एकादशी का अलग ही स्थान है ।
शास्त्रो के अनुसार इस एकादशी का ब्रत करने से जातक के पितरो का उद्दार होता है, नीच से नीच योनियां छूट जाती है, पितरो को स्वर्ग में स्थान मिलता है । इसलिए इस एकादशी को मोक्ष प्रदान करने वाला भी कहा गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विधिपर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत करने, इसकी कथा पढ़ने से ब्रती के समस्त पितरों ददिहाल, ननिहाल, ससुराल के पितरो का उद्धार होता है और स्वयं के लिए स्वर्ग लोक का मार्ग आसान होता है।
इस लिए अपने पितरो की कृपा प्राप्ति के लिए, उनको प्रसन्न करने के लिए, स्वयं अपने और अपने परिजनों के कल्याण के लिए सभी बुद्दिमान जातको को यह ब्रत अवश्य ही रहना चाहिए ।
इस एकादशी ekadashi को चाँदी, चावल, दही, दूध, चीनी, गुड़, आटा, ताँबा आदि का दान करना श्रेष्ठ माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार एकादशी तिथि भगवान श्री विष्णु जी को अति प्रिय है । एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी / श्री कृष्ण जी की आराधना की जाती है।
शास्त्रों के अनुसार एकादशी का ब्रत रखने वाला जातक भगवान विष्णु जी को बहुत प्रिय होता है ।
एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी के मन्त्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” अथवा ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।। का आशिक से अधिक जाप करना चाहिए ।
एकादशी के दिन जल में आँवले का चूर्ण या आँवले का रस डाल कर स्नान करने से समस्त पापो का नाश होता है।
एकादशी के दिन रात्रि में भगवान विष्णु के सामने नौ बत्तियों का दीपक जलाएं और एक दीपक ऐसा जलाएं जो रात भर जलता रहे।
एकादशी के दिन चावल और दूसरे का अन्न खाना मना है । एकादशी के दिन चावल खाने से रोग और पाप बढ़ते है, एकादशी के दिन दूसरे का अन्न खाने से समस्त पुण्यों का नाश हो जाता है ।
नक्षत्र (Nakshatra) – अश्लेषा 3.38 AM, 29 सितम्बर तक
नक्षत्र के स्वामी :- अश्लेषा नक्षत्र के देवता सर्प देव एवं नक्षत्र के स्वामी बुध देव जी है ।
अश्लेषा नक्षत्र का स्थान आकाश मंडल के नक्षत्रो में 9 वां है। यह कर्क राशि के अंतर्गत आता है। अश्लेशा नक्षत्र के देवता सर्प देव एवं नक्षत्र के स्वामी बुध देव जी है।
अश्लेषा नक्षत्र को गण्ड मूल नक्षत्र कहते है। अश्लेषा नक्षत्र में चंद्रमा की ऊर्जा और सर्प देवता की ताकत है। यह एक कुंडलित सर्प जैसा दिखता है जो कुंडलिनी ऊर्जा का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वालों पर जीवनभर बुध व चन्द्र का प्रभाव पड़ता है।
अश्लेषा नक्षत्र सितारा का लिंग महिला है। अश्लेषा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष: नागकेसर, तथा स्वाभाव तीक्ष्ण, शोक वाला होता है ।
अश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक हंसमुख, वाकपटु, साहित्य तथा संगीत प्रेमी, नेतृत्वशील, यशवान और सफल व्यापारी होते है इन्हे पूर्ण पारिवारिक सुख प्राप्त होता है।
लेकिन कुंडली में बुध और चन्द्र खराब स्थिति में होने पर जातक चालाक, क्रोधी- क्रूर स्वभाव, बेकार के कामो में धन को गंवाने वाला, कामुक विचारो वाला,आलसी, स्वार्थी, निराशवादी, कभी-कभार चोरी करने वाला भी होता है ।
अश्लेशा नक्षत्र गंड नक्षत्र है अतः व्यक्ति की आयु कम होती है, इसलिए अश्लेशा नक्षत्र का पूर्ण विधि विधान से शांति करवाना आवश्यक होता है. ।
अश्लेषा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 5 और 9, भाग्यशाली रंग काला – लाल, भाग्यशाली दिन बुधवार होता है । इन्हे नागकेसर के पौधे की सेवा करनी चाहिए तथा घर पर नाग केसर को रखना चाहिए ।
अश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातको को नित्य तथा अन्य सभी को आज “ॐ सर्पेभ्यो नमःl “ मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए।
“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
मित्रो हम इस साईट के माध्यम से वर्ष 2010 से निरंतर आप लोगो के साथ जुड़े है। आप भारत या विश्व के किसी भी स्थान पर रहते है, अपने धर्म अपनी संस्कृति को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए www.memorymuseum.net के साथ अवश्य जुड़ें, हमारा सहयोग करें ।
अगर नित्य पंचाग पढ़ने से आपको लाभ मिल रहा है, आपका आत्मविश्वास बढ़ रहा है, आपका समय आपके अनुकूल हो रहा है तो आप हमें अपनी इच्छा – सामर्थ्य के अनुसार कोई भी सहयोग राशि 9425203501 पर Google Pay कर सकते है । आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे । आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
28 सितम्बर 2024 का पंचांग, 28 September 2024 ka panchang, aaj ka panchang, aaj ka rahu kaal, aaj ka shubh panchang, panchang, saturday ka panchang, shanivar ka panchang, Shaniwar Ka Panchag, shanivar ka rahu kaal, shanivar ka shubh panchang, आज का पंचांग, आज का राहुकाल, आज का शुभ पंचांग, पंचांग, शनिवार का पंचांग, शनिवार का राहु काल, शनिवार का शुभ पंचांग, सैटरडे का पंचांग,
ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501 ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)
दोस्तों यह साईट बिलकुल निशुल्क है। यदि आपको इस साईट से कुछ भी लाभ प्राप्त हुआ हो, आपको इस साईट के कंटेंट पसंद आते हो तो मदद स्वरुप आप इस साईट को प्रति दिन ना केवल खुद ज्यादा से ज्यादा विजिट करे वरन अपने सम्पर्कियों को भी इस साईट के बारे में अवश्य बताएं …..धन्यवाद ।
पितृ पक्ष में श्राद्ध, Pitrapaksha me Shradh, Shradh 2024,
पितृ पक्ष में श्राद्ध, Pitrapaksha me Shradh,
पितृ पक्ष Pitra Paksh का हिन्दू धर्म तथा हिन्दू संस्कृति में बड़ा महत्व है। पितृ पक्ष में श्राद्ध, Pitra Paksha me Shradh, अर्थात श्रद्धापूर्वक पित्तरों के लिये किया गया कर्म श्राद्ध कर्म कहलाता है।
शास्त्रों के अनुसार जो पितृ पक्ष Pitra Paksh पित्तरों के नाम पर श्राद्ध तथा पिण्डदान नहीं करता है वह हिन्दु नहीं माना जा सकता है।
हिन्दु शास्त्रों के अनुसार मृत्यु होने पर जीवात्मा चन्द्रलोक की तरफ जाती है तथा ऊँची उठकर पितृलोक में पहुँचती है इन मृतात्मओं को शक्ति प्रदान करने के लिये, उन्हें मोक्ष प्रदान करवाने के लिए उन्हें तृप्त, संतुष्ट करने के लिए तर्पण, पिण्डदान और श्राद्ध किया जाता है।
पितृ पक्ष के प्रत्येक दिन के श्राद्ध, Pitr paksh ke pratyek din ka shradh,
अश्विन कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष शुरू माना जाता है हालाँकि कुछ लोग इसके अगले दिन से भी श्राद्ध पक्ष Shradh Paksh मानते है । इस पूर्णिमा को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा कहा जाता हैं। मान्यताओं के अनुसार जिस भी व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन होती हैं उनका श्राद्ध पूर्ण श्रद्धा से इसी दिन किया जाना चाहिए ।
पूर्णिमा Purnima के बाद की पहली तिथि अर्थात प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध पुराणो के अनुसार नाना-नानी और ननिहाल पक्ष के पितरों का श्राद्ध Pitron ka Shradh करने के लिए सबसे उत्तम माना गया है। अगर नाना पक्ष के कुल में कोई न हो और आपको मृत्यु तिथी ज्ञात ना हो तो भी इस दिन ननिहाल पक्ष के लोगो का श्राद्ध करना चाहिए ।
पितृ पक्ष /श्राद्ध का दूसरा दिन अर्थात द्वितीय तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिन लोगो की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की द्वितीय तिथि के दिन हुई हो, उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है।
पितृ पक्ष /श्राद्ध के तीसरे दिन अर्थात तृतीय तिथि को उन व्यक्तियों का श्राद्ध किया जाता है जिन लोगो की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की तृतीय तिथि को होती है। इस दिन को महाभरणी भी कहते हैं।
भरणी श्राद्ध का बहुत ही महत्व है । भरणी श्राद्ध गया श्राद्ध के तुल्य माना जाता है क्योंकि भरणी नक्षत्र का स्वामी मृत्यु के देवता यमराज होते है। इसलिए इस दिन के श्राद्ध का महत्व पुराणों में अधिक मिलता है।
पितृ पक्ष /श्राद्ध के चौथे दिन अर्थात चतुर्थी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन होती है ।
पितृ पक्ष /श्राद्ध का पाँचवा दिन अर्थात पंचमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिनकी मृत्यु विवाह से पूर्व ही हो गयी हो। इसीलिए इसे कुंवारा श्राद्ध भी कहते हैं।
इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की पँचमी तिथि के दिन होती है उनका भी श्राद्ध इसी दिन किया जाता है ।
पितृ पक्ष / श्राद्ध के छठवें दिन अर्थात षष्टी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की षष्टी तिथि के दिन हुई हो ।
पितृ पक्ष /श्राद्ध के सातवें दिन अर्थात सप्तमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन हुई हो ।
पितृ पक्ष /श्राद्ध के आठवें दिन अर्थात अष्टमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन हुई हो ।
पितृ पक्ष / श्राद्ध के नवें दिन अर्थात नवमी तिथि को उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि के दिन हुई हो ।
इस दिन को बुढ़िया नवमी या मातृ नवमी भी कहते हैं।
इस दिन माता का श्राद्ध किया जाता है। सुहागिनों का श्राद्ध भी नवमी को ही करना चाहिए । इस दिन दादी या परिवार की किसी अन्य महिलाओं का श्राद्ध भी किया जाता है।
पितृ पक्ष / श्राद्ध के दसवें दिन अर्थात दशमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन हुई हो ।
पितृ पक्ष / श्राद्ध के ग्यारवहें दिन अर्थात एकादशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन हुई हो । इस दिन परिवार के वह पूर्वज जो सन्यास ले चुके हो उनका श्राद्ध भी किया जाता है । इसे ग्यारस या एकदशी का श्राद्ध भी कहते है ।
पितृ पक्ष / श्राद्ध के बारहवें दिन अर्थात द्वादशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन हुई हो । इस दिन परिवार के वह पूर्वज जो सन्यास ले चुके हो उनका श्राद्ध करने का सबसे उत्तम दिन माना जाता है ।
पितृ पक्ष / श्राद्ध के तेरहवें दिन अर्थात त्रयोदशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन हुई हो । यदि परिवार में किसी भी बच्चे का आकस्मिक देहांत हुआ हो तो उसका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है ।
पितृ पक्ष / श्राद्ध के चौदहवें दिन अर्थात चतुर्दशी तिथि में शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों की अकाल-मृत्यु (दुर्घटना, हत्या, सर्पदंश, आत्महत्या आदि) हुई हो या जिनकी मृत्यु अस्त्र-शास्त्र के लगने से हुई हो ऐसे पितरों का श्राद्ध किया जाता है । इसे घात चतुर्दशी भी कहा जाता हैं।
पितृ पक्ष / अमावस्या Amavasya तिथि में श्राद्ध करने से सभी पितृ शांत होते है। यदि श्राद्ध पक्ष में किसी का श्राद्ध करने से आप चूक गए हों, अथवा गलती से भूल गए हों तो इस दिन श्राद्ध किया जा सकता है।
अमावस्या तिथि में पुण्य आत्मा प्राप्त करने वाले पूर्वजों की आत्मा के लिए श्राद्ध भी इसी तिथि में किया जाता है। यदि हमें अपने किसी परिजन की मृत्यु तिथि का ज्ञान नहीं है तो उनका श्राद्ध भी इसी दिन किया जा सकता है ।
इस अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा सर्व पितृ दोष अमावस्या अथवा महालया के नाम से भी जाना जाता है। अश्विन की अमावस्या पितरों के लिए उत्सव का दिन कहलाता है ।