शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।
* विक्रम संवत् – 2082 वर्ष
* शक संवत – 1947 वर्ष * कलि संवत – 5127 वर्ष * कलयुग – 5127 वर्ष * अयन – दक्षिणायन, * ऋतु – वर्षा ऋतु, * मास – अश्विन माह * पक्ष – कृष्ण पक्ष * चंद्र बल – मिथुन, सिंह, तुला, वृश्चिक, कुम्भ, मीन,
दाहिने हाथ के अंगूठे से नीचे के हिस्से ( शुक्र का स्थान ) और अंगूठे पर थोड़ा सा इत्र लगाकर, ( इत्र ना मिले तो उसके बिना भी कर सकते है) बाएं हाथ के अंगूठे से उस हिस्से को शुक्र की होरा में “ॐ शुक्राये नम:” या
‘ॐ द्रांम द्रींम द्रौंम स: शुक्राय नम:।’ मंत्र का अधिक से अधिक जाप करते हुए अधिक से अधिक रगड़ते / मसाज करते रहे ( कम से कम 10 मिनट अवश्य )I
यह उपाय आप कोई भी काम करते हुए चुपचाप कर सकते है इसके लिए किसी भी विधि विधान की कोई आवश्यकता नहीं है I
सुख समृद्धि, ऐश्वर्य, बड़ा भवन, विदेश यात्रा, प्रेम, रोमांस, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए शुक्रवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा में शुक्रदेव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शुक ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
अपने रूप और आकर्षण शक्ति को बढ़ाने के लिए त्रियोदशी को कामदेव जी का मन्त्र ‘ॐ कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्’ की एक माला जाप अवश्य करें ।
इस तिथि का खास नाम जयकारा भी है। समान्यता त्रयोदशी तिथि यात्रा एवं शुभ कार्यो के लिए श्रेष्ठ होती है।
त्रियोदशी को बैगन नहीं खाना चाहिए , त्रियोदशी को बैगन खाने से पुत्र को कष्ट मिलता है।
आज प्रदोष ब्रत है, शुक्रवार को होने के कारण इसे शुक्र प्रदोष ब्रत कहा जायेगा । पितृ पक्ष में आने के कारण इस प्रदोष ब्रत का और भी अधिक महत्व हो गया है ।
प्रदोष तिथि को भगवान भोलेनाथ जी का ब्रत रखा जाता है। मान्यता है कि जो जातक प्रदोष का व्रत रख कर संध्या के समय शंकर जी की आराधना करते हैं उन्हें योग्य जीवन साथी मिलता है, दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सहयोग बना रहता है ।
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती का पूजन करने से जीवन में सुख – सौभाग्य की वर्षा होती है, साथ ही जातक के सभी संकट दूर हो जाते हैं । ।
प्रदोष व्रत में सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक पूजा करने का विशेष महत्त्व है । इस दिन सम्पूर्ण शिव परिवार का पूजन करने से भगवान शिव अपने भक्त पर बहुत प्रसन्न होते है ।
प्रदोष व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं।प्रदोष ब्रत रखने वाले जातक के पूरे परिवार पर भगवान भोलनाथ और माँ पार्वती की सदैव असीम कृपा बनी रहती है ।
प्रदोष ब्रत के दिन शिव पंचाक्षर मन्त्र ॐ नम: शिवाय तथा
महामृत्युंजय मन्त्र :- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ का जाप करने से सहस्त्र गुना पुण्य की प्राप्ति होती है ।
प्रदोष को प्रदोष कहने के शास्त्रों में एक मिलती है। माना जाता है कि एक बार चंद्र देव को क्षय रोग हो गया, जिसके कारण उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था।
अपने रोग के निवारण के लिए चंद्र देव जी भगवान शिव के पास गए, प्रभु ने चंद्र देव के क्षय रोग का निवारण त्रयो करके उन्हें त्रियोदशी के दिन ही पुन:जीवन प्रदान किया था तभी से इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा है ।
प्रदोष व्रत में फलाहार किया जाता है इस व्रत में अन्न, चावल, लाल मिर्च, सादा नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
नक्षत्र ( Nakshatra ) : अश्लेषा 07.05 AM तक तत्पश्चात मघा,
नक्षत्र के स्वामी :– अश्लेषा नक्षत्र के देवता सर्प देव एवं नक्षत्र के स्वामी बुध देव जी है। ।
अश्लेषा नक्षत्र का स्थान आकाश मंडल के नक्षत्रो में 9 वां है। यह कर्क राशि के अंतर्गत आता है। अश्लेशा नक्षत्र के देवता सर्प देव एवं नक्षत्र के स्वामी बुध देव जी है।
अश्लेषा नक्षत्र को गण्ड मूल नक्षत्र कहते है। अश्लेषा नक्षत्र में चंद्रमा की ऊर्जा और सर्प देवता की ताकत है। यह एक कुंडलित सर्प जैसा दिखता है जो कुंडलिनी ऊर्जा का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वालों पर जीवनभर बुध व चन्द्र का प्रभाव पड़ता है।
अश्लेषा नक्षत्र सितारा का लिंग महिला है। अश्लेषा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष: नागकेसर, तथा स्वाभाव तीक्ष्ण, शोक वाला होता है ।
अश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक हंसमुख, वाकपटु, साहित्य तथा संगीत प्रेमी, नेतृत्वशील, यशवान और सफल व्यापारी होते है इन्हे पूर्ण पारिवारिक सुख प्राप्त होता है।
लेकिन कुंडली में बुध और चन्द्र खराब स्थिति में होने पर जातक चालाक, क्रोधी- क्रूर स्वभाव, बेकार के कामो में धन को गंवाने वाला, कामुक विचारो वाला,आलसी, स्वार्थी, निराशवादी, कभी-कभार चोरी करने वाला भी होता है ।
अश्लेशा नक्षत्र गंड नक्षत्र है अतः व्यक्ति की आयु कम होती है, इसलिए अश्लेशा नक्षत्र का पूर्ण विधि विधान से शांति करवाना आवश्यक होता है. ।
अश्लेषा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 5 और 9, भाग्यशाली रंग काला – लाल, भाग्यशाली दिन बुधवार होता है । इन्हे नागकेसर के पौधे की सेवा करनी चाहिए तथा घर पर नाग केसर को रखना चाहिए ।
अश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातको को नित्य तथा अन्य सभी को आज “ॐ सर्पेभ्यो नमःl “ मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए।
“हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “। आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
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