बुधवार का पंचांग, Budhwar Ka Panchang, 17 सितम्बर 2025 का पंचांग,

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पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :- 1:- तिथि (Tithi) 2:- वार (Day) 3:- नक्षत्र (Nakshatra) 4:- योग (Yog) 5:- करण (Karan)

पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए बुधवार का पंचांग, Budhvar Ka Panchang, आज का पंचांग, aaj ka panchang,


बुधवार का पंचांग (Budhwar Ka Panchang)


17 सितम्बर 2025 का पंचांग, ( Panchang ), 17 September 2025 ka Panchang,

गणेश गायत्री मंत्र :
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात ।।

।। आज का दिन मंगलमय हो ।।

* दिन (वार) – बुधवार के दिन तेल का मर्दन करने से अर्थात तेल लगाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है धन लाभ मिलता है।
बुधवार का दिन विघ्नहर्ता गणेश का दिन हैं। बुधवार के दिन गणेश जी के परिवार के सदस्यों का नाम लेने से जीवन में शुभता आती है।

शरद पूर्णिमा के दिन इस उपाय से जीवन भर भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की मिलेगी असीम कृपा,


बुधवार के दिन गणेश जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके लड्डुओं का भोग लगाकर उनकी की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

इस उपाय से शरीर रहेगा निरोगी, शक्ति रहेगी भरपूर, बुढ़ापा पास भी नहीं आएगा, जानिए रोगनाशक दिव्य आहार,

* बुधवार को सभी ग्रहो के राजकुमार बुध देव की आराधना करने से ज्ञान मिलता है, वाकपटुता में प्रवीणता आती है, धन लाभ होता है ।

बुधवार को गाय को हरा चारा खिलाने तथा रात को सोते समय फिटकरी से दाँत साफ करने से आर्थिक पक्ष मजबूत होता है ।

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*विक्रम संवत् 2082,
*शक संवत – 1947
*कलि संवत 5127
*अयन – दक्षिणायण
*ऋतु – वर्षा ऋतु
*मास – अश्विन माह
*पक्ष – कृष्ण पक्ष
*चंद्र बल – मेष, मिथुन, कर्क, तुला , वृश्चिक, कुम्भ,

बुधवार को बुध की होरा :-

प्रात: 5.52 AM से 6.57 AM तक

दोपहर 01.23 PM से 2.24 PM तक

रात्रि 20.26 PM से 9.24 PM तक

बुधवार को बुध की होरा में हाथ की सबसे छोटी उंगली और बुध पर्वत को हल्के हल्के रगड़ते हुए अधिक से अधिक बुध देव के मन्त्र का जाप करें ।

ज्योतिष, पढ़ाई, लिखाई, सीखने, वाकपटुता, अपना प्रभाव डालने और व्यापार में सफलता के लिए बुध की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

बुधवार के दिन बुध की होरा में बुध देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

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बुध देव के मन्त्र

“ॐ बुं बुधाय नमः” अथवा

“ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:।।”

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  • तिथि (Tithi) – एकादशी 23.39 PM तक तत्पश्चात द्वादशी,
  • तिथि के स्वामी – एकादशी तिथि के स्वामी विश्वदेव जी और द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री विष्णु जी है I

आज पितरो की मुक्ति दिलाने वाली उन्हें स्वर्ग में स्थान दिलाने वाली, मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी, इंदिरा एकादशी है । वैसे तो वर्ष की सभी एकादशियां बहुत ही खास मानी जाती है। लेकिन इंदिरा एकादशी का अलग ही स्थान है।

हमारे पितृ चाहे किसी भी योनि में हो वह इस बात की कामना करते है कि उनका कोई वंशज उनके निमित अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी का ब्रत रखे। शास्त्रो के अनुसार इस एकादशी का ब्रत करने से पितरो का उद्दार होता है ।

शास्त्रों के अनुसार जो जातक इस एकादशी को करता है उसके ना केवल पूर्वज, वह स्वयं वरन उसकी आने वाली पीढ़ियाँ भी पुण्य की भागी होती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विधिपर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत करने से ब्रती के समस्त पितरों ददिहाल, ननिहाल, ससुराल के पितरो का उद्धार होता है और स्वयं के लिए स्वर्ग लोक का मार्ग आसान होता है।

इसलिए इस पृथ्वी में हर हिन्दू घर के मुखिया को अपने पितरो के लिए इंदिरा एकादशी का ब्रत अवश्य ही करना चाहिए, तथा इस दिन पितरो के निमित तर्पण, ब्राह्मण भोजन, योग्य ब्राह्मण को दान अवश्य ही करना चाहिए।

इंदिरा एकादशी व्रत को करने से पितृ प्रसन्न होकर अपने वंशजो को आशीर्वाद स्वरूप उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते है।

शास्त्रों के अनुसार इंदिरा एकादशी के दिन सभी स्त्री पुरुषो को इंदिरा एकादशी की कथा को अवश्य ही पढ़ना / सुनना चाहिए , इससे पितरो का उद्दार होता है , मनुष्यो के पापो का नाश होता है,उनके पुण्य बढ़ते है, आरोग्य की प्राप्ति होती है, घर परिवार में प्रेम, सौहार्द, सुख-समृद्धि का वास होता है, अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है, नरक के दर्शन नहीं होते है।

शास्त्रों के अनुसार एकादशी तिथि भगवान श्री विष्णु जी को अति प्रिय है । एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी / श्री कृष्ण जी की आराधना की जाती है।

शास्त्रों के अनुसार एकादशी का ब्रत रखने वाला जातक भगवान विष्णु जी को बहुत प्रिय होता है ।

एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी के मन्त्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” अथवा ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।। का आशिक से अधिक जाप करना चाहिए ।

एकादशी के दिन विष्णु जी की तुलसी जी अर्पित करके पूजा करनी चाहिए, लेकिन तुलसी जी को एकादशी के दिन नहीं वरन एक दिन पूर्व दशमी तिथि को ही तोड़ना चाहिए ।

एकादशी के दिन जल में आँवले का चूर्ण या आँवले का रस डाल कर स्नान करने से समस्त पापो का नाश होता है।

एकादशी के दिन रात्रि में भगवान विष्णु के सामने नौ बत्तियों का दीपक जलाएं और एक दीपक ऐसा जलाएं जो रात भर जलता रहे।

एकादशी के दिन चावल और दूसरे का अन्न खाना मना है । एकादशी के दिन चावल खाने से रोग और पाप बढ़ते है, एकादशी के दिन दूसरे का अन्न खाने से समस्त पुण्यों का नाश हो जाता है ।

आज निर्माण और सर्जन के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती है। प्रत्येक वर्ष 17 सितम्बर को विश्वकर्मा, पूजा श्रम दिवस का पर्व मनाया जाता है । भगवान विश्वकर्मा इस ब्रह्माण्ड के सबसे बड़े अविष्कारक माने जाते है उन्होंने अनेकानेक अद्भुत अविष्कार किये हैं।

उनकी गणना पंचदेवों में की जाती है और वे दिव्य निर्माणों के अधिपति हैं।

वैसे तो किसी भी हिन्दू पर्व की कोई भी तिथि निश्चित नहीं होती है क्योंकि वह चन्द्रमा के गोचर के अनुसार मनाये जाते है लेकिन विश्वकर्मा पूजा का पर्व चन्द्रमा नहीं वरन सूर्य के गोचर के अनुसार मनाया जाता है ।

जब सूर्य ग्रह का कन्या राशि में गोचर होता है तो विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है और सामान्यता : यह हर साल 17 सितंबर को ही होता है । यही वजह है कि  विश्‍वकर्मा जयंती 17 सितंबर को ही मनाई जाती है ।

इस ब्रह्माण्ड के सबसे महान अविष्कारक देवताओं के वास्तुकार, प्रमुख शिल्पी, भगवान विश्वकर्मा ने इंद्रपुरी, स्वर्गलोक, यमपुरी, द्वारका नगरी, कुबेर पुरी, लंका और हस्तिनापुर इत्यादि अनेको अद्वितीय नगरों का निर्माण किया था ।

भगवान विश्वकर्मा जी की प्रतिमा, चित्र सामान्यतः प्रत्येक कारखानों, निर्माण स्थलों, कार्यस्थल में स्थापित किए जाते हैं ।

विश्वकर्मा पूजा पर लोग अपने अपने कल – कारखानों, दफ्तरों को सजाकर, अपनी मशीनों, औजारों और किसी भी तरह के निर्माण कार्यों में काम आने वाले उपकरणों, वाहनों की विधिवत पूजा करके अपने कार्य में श्रेष्ठ तरक्की के लिए प्रार्थना करते हैं।

मान्यता हैं कि भगवान ब्रह्मा जी के मानस पुत्र और महान वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा करने, इस दिन अपनी मशीन, औजार और वाहन आदि की पूजा करने से वे काम की बीच में कभी भी धोखा नहीं देते, सारे कार्य निर्विघ्न पूरे हो जाते हैं।

इस तरह से मनाएं जन्माष्टमी का पर्व जीवन में लग जायेगा सुखो का अम्बार 

नक्षत्र (Nakshatra) – पुनर्वसु 06.26 AM तक तत्पश्चात पुष्य नक्षत्र ।

नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी-          पुनर्वसु नक्षत्र के देवता अदिति (पृथ्वी देवी), बृहस्पति, एवं नक्षत्र के स्वामी गुरु बृहस्पति जी है ।

पुनर्वसु अर्थ पुन: शुभ या पुन: बसना होता है। पुनर्वसु नक्षत्र आकाश मंडल में  7वां नक्षत्र है ।
ज्योतिषशास्त्र में पुनर्वसु नक्षत्र को सबसे बड़ा और बहुत ही शुभ माना जाता है । यह मर्यादा पुरषोतम भगवान श्री राम जी का जन्म नक्षत्र है। मान्यता है कि पुनर्वसु जातक के यहा केवल पुत्र ही होता है।

माना जाता है कि जिसका जन्म इस नक्षत्र में होता है, वे दूसरों की सेवा करने, भलाई करने के लिए सदैव तैयार रहते हैं  । पुनर्वसु प्रत्येक कार्य के शुभारम्भ के लिए, नयी शुरुआत के लिए श्रेष्ठ होता है। 

पुनर्वसु नक्षत्र का आराध्य वृक्ष: बांस / बांबू और नक्षत्र का स्वभाव चर माना गया है ।

पुनर्वसु नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 3, भाग्यशाली रंग, सुनहरा, भाग्यशाली दिन गुरुवार का माना जाता है ।

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ आदित्याय नम:”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।

आज सुबह 06.26 के बाद पुष्य नक्षत्र लोग जायेगा ।

पुष्य नक्षत्र के देवता देव गुरु बृहस्पति और स्वामी शनि देव जी है,  इस दिन चंद्र देव कर्क राशि में गोचर करते हैं । 

  पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रो का राजा भी कहते है, उसमें भी रवि पुष्य नक्षत्र एवं गुरु पुष्य नक्षत्र बहुत ही शुभ माने जाते है। इस अवसर पर किया गया शुभ कार्य अति लाभ दायक और चिरस्थाई होता है।

पुष्य नक्षत्र का नक्षत्र आराध्य वृक्ष: पीपलं तथा नक्षत्र का स्वाभाव शुभ माना जाता है।

शास्त्रों में लिखा है कि पुष्य नक्षत्र में शुरू किये गए सभी कार्य पुष्टिदायक, सर्वथा सिद्ध होते ही हैं, निश्चय ही फलीभूत होते हैं ।

पुष्य नक्षत्र माँ लक्ष्मी जी को अत्यंत प्रिय है  ।  पुष्य नक्षत्र के दिन माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्त, श्री महा लक्ष्मी अष्टकम का पाठ करना अत्यंत पुण्य दायक माना जाता है।

पुष्य नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 8 और 2, भाग्यशाली रंग लाल, नीला, भाग्यशाली दिन शनिवार, सोमवार और बुधवार होता है ।

पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ बृहस्पतये नम: “। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।

  पुष्य नक्षत्र किसी भी तरह के वस्त्र, वाहन, सोना, चांदी, आभूषण, भूमि और भवन की खरीदारी के लिए उत्तम समय माना गया है ।  

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  • योग (Yog) – वृद्धि 20.31 PM तक तत्पश्चात ध्रुव
  • योग के स्वामी, स्वभाव :-  वृद्धि  योग के स्वामी सूर्य देव एवं स्वभाव शुभ माना जाता है । 
  • प्रथम करण : – विष्टि 03.37 PM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-   विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- बुधवार को उत्तर दिशा में दिशा शूल होता है ।

    इस दिन कार्यों में सफलता के लिए घर से सुखा / हरा धनिया या तिल खाकर जाएँ ।
  • गुलिक काल : – बुधवार का गुलिक काल 10:30 AM से 12 PM बजे तक ।
  • राहुकाल (Rahukaal) : – बुधवार का राहुकाल दिन 12:00 PM से 1:30 PM तक ।
  • सूर्योदय – प्रातः 6.04 AM
  • सूर्यास्त – सायं 18.32 PM
  • विशेष – तृतीया तिथि को परवल का सेवन नहीं करना चाहिए, तृतीया तिथि को परवल का सेवन करने से शत्रुओं में वृद्धि होती है।
  •  चतुर्थी को मूली का सेवन नहीं करना चाहिए, चतुर्थी को मूली का सेवन करने से धन का नाश होता है  ।  
     
  • मुहूर्त :- संकष्टी चतुर्थीतृतीया तिथि और चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
  • पर्व त्यौहार-

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हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र (नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

मित्रो हम इस साईट के माध्यम से वर्ष 2010 से निरंतर आप लोगो के साथ जुड़े है। आप भारत या विश्व के किसी भी स्थान पर रहते है, अपने धर्म अपनी संस्कृति को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए आचार्य मुक्ति नारायण पांडेय अध्यात्म ज्योतिष परामर्श केन्द्र श्याम नगर रायपुर  www.memorymuseum.net के साथ अवश्य जुड़ें, हमारा सहयोग करें ।

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