बुधवार का पंचांग, Budhwar Ka Panchang, 2 अक्टूबर 2024 का पंचांग,


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पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :- 1:- तिथि (Tithi) 2:- वार (Day) 3:- नक्षत्र (Nakshatra) 4:- योग (Yog) 5:- करण (Karan)

पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
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बुधवार का पंचांग (Budhwar Ka Panchang)


2 अक्टूबर 2024 का पंचांग, ( Panchang ), 2 October 2024 ka Panchang,

गणेश गायत्री मंत्र :
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात ।।

।। आज का दिन मंगलमय हो ।।

* दिन (वार) – बुधवार के दिन तेल का मर्दन करने से अर्थात तेल लगाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है धन लाभ मिलता है।
बुधवार का दिन विघ्नहर्ता गणेश का दिन हैं। बुधवार के दिन गणेश जी के परिवार के सदस्यों का नाम लेने से जीवन में शुभता आती है।

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बुधवार के दिन गणेश जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके लड्डुओं का भोग लगाकर उनकी की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

इस उपाय से शरीर रहेगा निरोगी, शक्ति रहेगी भरपूर, बुढ़ापा पास भी नहीं आएगा, जानिए रोगनाशक दिव्य आहार,

* बुधवार को सभी ग्रहो के राजकुमार बुध देव की आराधना करने से ज्ञान मिलता है, वाकपटुता में प्रवीणता आती है, धन लाभ होता है ।

बुधवार को गाय को हरा चारा खिलाने तथा रात को सोते समय फिटकरी से दाँत साफ करने से आर्थिक पक्ष मजबूत होता है ।

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*विक्रम संवत् 2081,
*शक संवत – 1945
*कलि संवत 5124
*अयन – दक्षिणायन
*ऋतु – वर्षा ऋतु
*मास – अश्विन माह
*पक्ष – कृष्ण पक्ष
*चंद्र बल – मेष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, धनु, मीन,

बुधवार को बुध की होरा :-

प्रात: 6.14 AM से 7.13 AM तक

दोपहर 01.09 PM से 2.08 PM तक

रात्रि 20.07 PM से 9.07 PM तक

बुधवार को बुध की होरा में हाथ की सबसे छोटी उंगली और बुध पर्वत को हल्के हल्के रगड़ते हुए अधिक से अधिक बुध देव के मन्त्र का जाप करें ।

ज्योतिष, पढ़ाई, लिखाई, सीखने, वाकपटुता, अपना प्रभाव डालने और व्यापार में सफलता के लिए बुध की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

बुधवार के दिन बुध की होरा में बुध देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

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बुध देव के मन्त्र

“ॐ बुं बुधाय नमः” अथवा

“ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:।।”

अक्षय तृतीया के दिन इस वस्तु का दान करने, सेवन करने से समस्त पापो का होता है नाश,

  • तिथि (Tithi) – अमावस्या 12.18 AM, 3 अक्टूबर तक I
  • तिथि के स्वामी – अमावस्या तिथि के स्वामी पितृ देव जी है।

आज अश्विन माह की अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या और सूर्य ग्रहण का संयोग है । मान्यता है कि यदि कोई जातक किसी भी कारण वश पितृ पक्ष में पितरो का श्राद्ध, उनका तर्पण, उनके निमित दान, ब्राह्मण भोजन आदि ना करा पाए तो भी वह यदि वह सर्व पितृदोष अमावस्या, के दिन यह कर लें, कुछ उपाय करे तो भी उसको पूरे पितृ पक्ष का फल प्राप्त हो जाता है, उसके पितृ संतुष्ट, प्रसन्न हो जाते है ।

सर्वपितृ अमावस्या के दिन अमावस्या तिथि वाले पितरों और जिन पितरो की तिथि ज्ञात नहीं होती है, उनका तर्पण, श्राद्ध और निमित दान आदि करते हैं ।

शास्त्रों के अनुसार यदपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्य तिथि होती है मगर आश्विन मास की अमावस्या पितरों के लिए परम फलदायी कही गई है ।

अश्विन की अमावस्या सर्व पितृ दोष अमावस्या को महालया कहते है जो पितरों के लिए उत्सव का दिन कहलाता है ।

पीपल के पेड़ पर पितरों का वास माना गया है। सर्व पितृ दोष अमावस्या के दिन सुबह के समय लोहे के बर्तन में, दूध, पानी, काले तिल, शहद एवं जौ मिला कर समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित करके पीपल की 7 परिक्रमा करें, तथा इस दौरान “ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः” मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें ।
इस उपाय को करने से पितृ प्रसन्न होते है, उनका आशीर्वाद मिलता है ।

सर्वपितृ दोष अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने के लिए, उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ अवश्य ही करें और उसका पूरा फल पितरों को समर्पित करें।

पितृदोष अमावस्या के दिन हर श्राद्धकर्ता को पितरो का श्राद्ध, तर्पण अवश्य ही करना चाहिए । अपने घर में दोपहर में प्रेम और श्रद्धा से ब्राह्मण भोजन अवश्य ही कराना चाहिए, भोजन के पश्चात ब्राह्मण देवता को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान और नकद दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद भी जरूर लें ।

सर्वपितृ दोष अमावस्या के दिन किये गए दान का मनुष्यो को अनंत गुना फल मिलता है, इस दिन किये गए दान पितरों के लिए स्वर्ग के द्वार खुलते है और वह प्रसन्न होकर अपने वंशज की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते है ।

इस दिन घर में जो भोजन बने उसमें गाय, कुत्ते, कोए और चीटियों का भोजन भी अवश्य ही निकल दें ।

सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितरो के श्राद्ध का समय: दोपहर में 11:00 बजे से 12.20 PM तक फिर 1.32 से 3:30 बजे तक रहेगा ।

बुधवार को राहु काल दोपहर 12 से 1.30 PM तक रहेगा, राहु काल के समय पितरो का श्राद्ध, ब्राह्मण भोजन से परहेज करना चाहिए ।

सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितृ पक्ष का समापन हो जाता है और पितृ पक्ष के इस अंतिम दिन पितर अपने पितृ लोक वापस चले जाते हैं ।

सर्व पितृ दोष अमावस्या को संध्या के समय घर के बाहर दक्षिण दिशा की तरफ बाती का मुँह रखकर पितरो का स्मरण करते हुए उनके निमित तेल दीपक अवश्य ही जलाएं ।

पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन सांय काल प्रदोष काल में पितरो के निमित किसी नदी, तालाब के किनारे या पीपल के नीचे घी का दीपक अवश्य जलाएं इसकी बत्ती का मुख दक्षिण की तरफ होना चाहिए।

मान्यता है कि इस अमावस्या के दिन पितृ सांय काल जल के किनारे जल ग्रहण करने आते है, यदि जल स्थान ना हो तो सांय काल पीपल के नीचे यह घी का दीपक जला देना चाहिए ।

तत्पश्चात अपने पितरो से श्राद्ध पक्ष में हुई अपनी भूलों की क्षमा माँगते हुए, उनसे अपने घर में सुख – समृद्धि का आशीर्वाद माँगे और उनको प्रसन्नता पूर्वक पितृ लोक की ओर जाने का आग्रह करके उनकी विदाई करें।

इस तरह से मनाएं जन्माष्टमी का पर्व जीवन में लग जायेगा सुखो का अम्बार 

आज बुधवार 2 अक्टूबर 2024 को सर्व पितृ अमावस्या के दिन इस वर्ष का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण लग रहा है जो तड़के 3 अक्टूबर तक रहेगा । यह एक वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा जो दुनिया के बहुत से हिस्सों में दिखाई देगा ।

इस सूर्य ग्रहण के समय आकाश में Ring Of Fire का बहुत जी अद्भुत नज़ारा दिखाई देता है ।

भारतीय समय के अनुसार यह सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर की रात्रि 9.13 पर प्रारम्भ होगा जो 3 अक्टूबर को तड़के 3.17 मिनट पर समाप्त हो जायेगा । सूर्य ग्रहण के समय भारत में रात का समय होगा इसलिए यह ग्रहण भारत के किसी भी हिस्से से दिखाई नहीं देगा ।

चूँकि यह सूर्य ग्रहण भारत के किसी भी हिस्से से नज़र नहीं आएगा इसलिए इस ग्रहण का सूतक भी मान्य नहीं होगा एवं इस ग्रहण के कारण भारत में मंदिरो के कपाट भी नहीं बंद होंगे ।

सर्व पितृ दोष अमावस्या के दिन लगने वाला यह सूर्य ग्रहण कन्या राशि और हस्त नक्षत्र में लगने जा रहा है ।

ग्रहण काल में जप तप, पूजा पाठ अवश्य ही करना चाहिए । सूर्य ग्रहण के समय में किये गए जाप तप, दान का करोडो गुना फल प्राप्त होता है ।

नक्षत्र (Nakshatra) – उत्तरफाल्गुनी 12.23 PM तक तत्पश्चात हस्त

नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी-      उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के देवता आर्यमन और स्वामी सूर्य, बुध देव जी है । 

आकाश मंडल में उत्तरा फाल्गुनी को 12 वां नक्षत्र माना जाता है। ‘उत्तरा फाल्गुनी’ का अर्थ है ‘बाद का लाल नक्षत्र’। यह एक बिस्तर या बिस्तर के पिछले दो पाए को दर्शाता है जो आराम और विलासिता के जीवन का प्रतीक है।  

यह नक्षत्र रोमांस, कामुक, ऐश्वर्य, रोमांच और अनैतिक आचरण को प्रदर्शित करता है। इस नक्षत्र काआराध्य वृक्ष : पाकड़ तथा स्वाभाव शुभ माना गया है।

उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र सितारे का लिंग महिला है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक पर जीवन भर सूर्य और बुध का प्रभाव बना रहता है।

इस नक्ष‍त्र में जन्मे व्यक्ति दानी, दयालु, साहसी, विद्वान, चतुर, उग्र स्वभाव, सही निर्णय लेने वाले होते है।  इन्हे पूर्ण संतान, भूमि का सुख मिलता है।

लेकिन यदि सूर्य और बुध की स्थिति जन्म कुंडली में खराब है तो जातक का रुझान गलत कार्यों में रहने लगता है, उसका झुकाव विपरीत लिंगी की तरफ बहुत आसानी से हो जाता है।

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुई स्त्री, सरल, शांत लेकिन खुशमिज़ाज़ होती हैं। यह आसानी से सबको प्रभावित कर लेती है ।इनका पारिवारिक दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है ।

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 12, भाग्यशाली रंग, चमकदार नीला, भाग्यशाली दिन  बुधवार, शुक्रवार, और रविवार  माना जाता है ।

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ अर्यमणे नम: “। मन्त्र माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।

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  • योग (Yog) – ब्रह्म 3.22 AM, 3 अक्टूबर तक
  • योग के स्वामी, स्वभाव :- ब्रह्म योग के स्वामी अश्विनी कुमार जी एवं स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है  ।
  • प्रथम करण : – चतुष्पाद 10.58 AM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-    कौलव करण के स्वामी मित्र और स्वभाव सौम्य है ।
  • द्वितीय करण : – नाग 12.18 AM, 3 अक्टूबर तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-  तैतिल करण के स्वामी विश्वकर्मा जी और स्वभाव सौम्य है ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- बुधवार को उत्तर दिशा में दिशा शूल होता है ।

    इस दिन कार्यों में सफलता के लिए घर से सुखा / हरा धनिया या तिल खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal) : – बुधवार को राहुकाल दिन 12:00 से 1:30 तक ।
  • सूर्योदय – प्रातः 6.15 AM
  • सूर्यास्त – सायं 18.06 PM
  • विशेष – अमावस्या,  श्राद्ध और व्रत के दिन काँसे के बर्तन में भोजन करना, तिल का तेल का सेवन करना, तुलसी जी, किसी भी तरह के फूल पत्ती को तोड़ना, सहवास करना निषिद्ध है। । 
  • मुहूर्त :- सर्व पितृ अमावस्या, सूर्य ग्रहण,
  • पर्व त्यौहार-

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“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र (नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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