सूर्य ग्रहण के उपाय, Sury Grahan Ke Upay,
सूर्य ग्रहण के उपाय, sury grahan ke upay बहुत ही सिद्ध माने गए है । ज्योतिष गणना के अनुसार यह ग्रहण देश व दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
ग्रहण के बारे में हमारे ऋषि मुनियों को वैदिक काल से ही जानकारी थी ऋग्वेद के अनुसार महर्षि अत्रिमुनि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य थे।
वैदिक काल से ही ग्रहण पर अध्ययन और परीक्षण होते चले आए हैं। ग्रहण के विषय में हमारे धार्मिक एवं ज्योतिषीय ग्रन्थों में बहुत सी जगह उल्लेख्य मिलता है ।
कुण्डली, हस्त रेखा, वास्तु एवं प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पांडेय जी से
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30 अप्रैल शनि अमावस्या के दिन साल 2022 का पहला सूर्य ग्रहण लगा था।
वर्ष 2022 का दूसरा सूर्य ग्रहण कार्तिक अमावस्या के दिन 25 अक्टूबर मंगलवार को लगेगा ॥
मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण से वातावरण अशांत और दूषित होता है। जिसका मनुष्यों, जीव जंतुओ और प्रकृति पर नकारात्मक असर दिखाई पड़ता है।
चूँकि यह ग्रहण मार्गशीर्ष की अमावस्या पर पड़ रहा है और इस अमावस्या के दिन दान और पूर्वजों की शांति के लिए तर्पण और गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
सूर्य ग्रहण के उपाय, Sury Grahan Ke Upay,
सूर्य ग्रहण के समय मानसिक पूजा करनी चाहिए। ग्रहण के दौरान आप भगवान को, धार्मिक पुस्तक को बिना स्पर्श किए ही मंत्रो और चालीसा का पाठ करें।
बस ध्यान रखें कि मंत्रों का जाप मन में ही करें। इससे सूर्य ग्रहण का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है, मन्त्र सिद्ध हो जाते है, अक्षय पुण्य मिलता है ।
सूर्य ग्रहण के बाद स्नान करना बिलकुल भी ना भूलें। स्नान करने के बाद सबसे पहले मंदिर में भगवान की मूर्तियां, अन्न और पुरे घर को गंगा जल छिड़क कर शुद्ध कर लें। इससे परिवार पर ग्रहण बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।
ग्रहण के समय पवित्र नदियों, सरोवरों में स्नान करना से बहुत पुण्य मिलता है लेकिन ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार ग्रहण ( grahan ) के समय गायों को हरा चारा या घास, चींटियों को पंजीरी या चीनी मिला हुआ आटा, पक्षियों को अनाज एवं निर्धन, असहायों को वस्त्रदान से बहुत ज्यादा पुण्य प्राप्त होता है।
सूर्यग्रहण (Surya Grahan) के सूतक और ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, तप, पूजा पाठ, मन्त्र, तीर्थ स्नान, ध्यान, हवनादि शुभ कार्यो का करना बहुत लाभकारी रहता है। ज्ञानी लोग इस समय का अवश्य ही लाभ उठाते है ।
वेदव्यास जी ने कहा है कि –
सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया जप , तप, ध्यान, दान आदि एक लाख गुना और
सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। और
यदि यह गंगा नदी / या किसी पवित्र नदी के किनारे किया जाय तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और
सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।
सूर्य ग्रहण ( surya grahan ) के दिन जलाशयों, नदियों व मन्दिरों में राहू, केतु व सुर्य के मंत्र का जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है और ग्रहों का दुष्प्रभाव भी खत्म हो जाता है ।
ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पांडेय जी के अनुसार सूर्य ग्रहण के समय सूर्य देव का मन्त्र
“ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ “॥ और
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मन्त्र का जाप अवश्य ही करना चाहिए ।
यदि कोई श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी के रस / पाक का स्पर्श करके ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहण की समाप्ति के बाद शुद्ध होकर उस रस को पी ले तो उसकी बुद्धि अत्यंत प्रखर हो जाती है वह भाषा, कविता, लेखन और वाक् पटुता में अत्यंत प्रवीण हो जाता है ।
सूर्य ग्रहण के समय महामृत्युंजय मन्त्र का जाप परम फलदाई है । मान्यता है कि ग्रहण के समय भगवान भोलेनाथ के महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से घोर से घोर कष्ट भी टल जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र- “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्”॥
सूर्य ग्रहण के दिन ग्रहण के पूर्ण होने पर सूर्य देव का शुद्ध बिम्ब देखकर ही भोजन करना श्रेष्ठ और पुण्यदायक माना जाता है ।
शास्त्रों के अनुसार सूर्यग्रहण ( Surya grahan ) में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। लेकिन बालक, बूढ़े, और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक भोजन कर सकते हैं।
ग्रहण के समय एक उपाय को करें जीवन में हर क्षेत्र में आशातीत सफलता मिलेगी,भाग्य साथ देने लगेगा ।
ग्रहण प्रारम्भ होने से पहले स्नान करके अपने को शुद्ध कर लें फिर ग्रहण के समय भगवान सूर्य देव के 21 नामो,
विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड ,भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु , गृहेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्ता, तमिस्त्रहा, तपन, तापन, शुचि , सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेवनमस्कृत का
अधिक से अधिक जाप करें ।
आचार्य मुक्ति नारायण पांडेय जी कहते है ग्रहण की अवधि में गर्भवती का ‘संतान गोपाल मंत्र’ का जाप करना अति उत्तम माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र के जाप से गर्भवती को गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
देवकीसुत गोविंद, वासुदेव जगत्पते,
देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं भजे।
देव देव जगन्नाथ गोत्रवृद्धिकरं प्रभो,
देहि में तनयं शीघ्रं, आयुष्मन्तं यशस्विनम्।।
इसका अर्थ है, जगत्पति हे भगवान कृष्ण! मैं आपकी ही शरण में हूं। हे जगन्नाथ, मुझे मेरे गोत्र की वृद्धि करने वाला और यशस्वी पुत्र प्रदान कीजिए।
शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के स्पर्श के समय में स्नान, मध्य के समय में देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।
ग्रहण के समय लक्ष्मी माँ के प्रिय मन्त्र का अधिक से अधिक जप करने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, जीवन में किसी भी चीज़ का आभाव नहीं रहता है।
महा लक्ष्मी जी का मन्त्र :- “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:”॥
चूँकि सूर्यग्रहण में 12 घंटे पहले सूतक लग जाता है और सूतक काल में देव दर्शन वर्जित माने गये हैं इसीलिए सूर्यग्रहण ( Surya grahan ) में मन्दिरों के कपाट भी बन्द कर दिये जाते हैं ।
सूर्यग्रहण ( Surya grahan ) या चन्द्रग्रहण के समय तो भोजन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए । शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के समय मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक उसे नरक में वास करता है। फिर वह मनुष्य उदर रोग से पीड़ित होता है फिर काना, दंतहीन होकर उसे अनेक रोगो से पीड़ा मिलती है।
किसी भी ग्रहण पर चाहे वह चन्द्रग्रहण हो या सूर्यग्रहण ( Surya grahan ) पर किसी भी दूसरे व्यक्ति का अन्न नहीं खाना चाहिए ।
स्कन्द पुराण के अनुसार अनुसार यदि ग्रहण के दिन किसी दूसरे का अन्न खाये तो बारह वर्षों से एकत्र किया हुआ सम्पूर्ण पुण्य नष्ट हो जाता है।
ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पांडेय जी का कहना है कि ग्रहण ( grahan ) के दौरान भगवान की मूर्ति को छूना, धूप बत्ती जलाकर पूजा करना, भोजन पकाना, खाना – पीना, खरीददारी करना, सोना, कामवासना आदि का त्याग करना चाहिए।
ग्रहण के समय भोजन व पानी में दूर्वा या तुलसी के पत्ते डाल कर रखना चाहिए। ग्रहण के पश्चात पूरे घर की शुद्धि एवं स्नान कर दान देना चाहिए।
शास्त्रो के अनुसार ग्रहण लगने से जिन पदार्थों में तुलसी या कुश की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं माना जाते है ।
लेकिन पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना ही धर्म और स्वास्थ्य की दृष्टि से श्रेष्ठ होता है ।
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