शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchag, 2 अप्रैल 2022 का पंचांग,


शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchag, 2 अप्रैल 2022 का पंचांग,

शनिवार का पंचांग

आप सभी को चैत्र नवरात्री और नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें


Shaniwar Ka Panchag, शनिवार का पंचांग,

2 अप्रैल 2022 का पंचांग, 2 April 2022 ka Panchang,

  • Panchang, पंचाग, ( Panchang 2021, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)


पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang), आज का पंचांग, aaj ka panchang,।

  • शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang, )
    2 अप्रैल 2022
     का पंचांग2 April 2022 ka Panchang,
  • दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से आयु का नाश होता है । अत: शनिवार को बाल और दाढ़ी दोनों को ही नहीं कटवाना चाहिए।
  • शनिवार के दिन पीपल के नीचे हनुमान चालीसा पड़ने और गायत्री मन्त्र की àएक माला का जाप करने से किसी भी तरह का भय नहीं रहता है, समस्त बिग़डे कार्य भी बनने लगते है ।
  • शिवपुराण के अनुसार शनि देव पिप्लाद ऋषि का स्मरण करने वाले, उनके भक्तो को कभी भी पीड़ा नहीं देते है इसलिए जिन के ऊपर शनि की दशा चल रही हो उन्हें अवश्य ही ना केवल शनिवार को वरन नित्य पिप्लाद ऋषि का स्मरण करना चाहिए

    शनिवार के दिन पिप्पलाद श्लोक का या पिप्पलाद ऋषि जी के केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि देव की कृपा मिलती हैशनि की पीड़ा निश्चय ही शान्त हो जाती है ।

यह है नवरात्री में कलश स्थापना का सर्वोत्तम मुहूर्त, इस समय घर पर कलश की स्थापना तो माँ दुर्गा की मिलेगी असीम कृपा

* विक्रम संवत् 2078,
* शक संवत – 1943,
* कलि संवत 5123
* अयन – उत्तरायण,
* ऋतु – बसंत ऋतु,
* मास – 
चैत्र माह,
* पक्ष –शुक्ल
 पक्ष
*चंद्र बल – मिथुन, कर्क, तुला, धनु, कुंभ, मीन।

  • तिथि (Tithi)- प्रतिपदा 11.58 AM तक तत्पश्चात द्वितीया
  • तिथि का स्वामी – प्रतिपदा तिथि के स्वामी भगवान अग्नि देव जी और द्वितीया तिथि के स्वामी सृष्टि के रचयिता भगवन ब्रह्मा जी है।

आज शनिवार 02 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि प्रारम्भ हो रहे है जो 11 अप्रैल को व्रत पारण कर समाप्त होंगे। नवरात्रि के नौ दिनों में दुर्गा मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस वर्ष माँ दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी।

नवरात्री के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना की जाती है।

“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”॥

नवरात्रि के प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप पर्वतराज हिमालय की पुत्री मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री की श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

माँ शैलपुत्री का अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में जन्म हुआ था तब इनका नाम ‘सती’ था और इनका विवाह भगवान भोलेनाथ जी के साथ हुआ था।

माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प है, माँ अपने वाहन वृषभ (बैल) पर विराजमान होतीं हैं। माँ शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र’ जागृत होता है।

माता शैलपुत्री को सफेद पुष्प बेहद प्रिय है, इसलिए माता की सफ़ेद फूलो से पूजा करनी चाहिए। माँ को सफेद रंग की, दूध की मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

नवरात्री में घर, कारोबार में इस विधि से करें कलश की स्थापना, अवश्य जानिए कलश स्थापना की सही और बहुत ही आसान विधि

अवश्य पढ़ें :- ऐसा होगा हिंदू नव संवत्सर, हिन्दू नव वर्ष के राजा और मंत्री होंगे यह देवता,

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आज हिन्दू नव वर्ष का प्रारम्भ है अर्थात नव संवतर है । ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पास के सूर्योदय पर सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी और इसी दिन से नव संवतसर, nav samvatsar, प्रारम्भ होता है ।

चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा, 2 अप्रैल शनिवार के दिन विक्रम संवत 2079 का आरंभ हो जाएगा । धार्मिक ग्रंथो में इस दिन को बहुत पुण्यदायक, शुभ एवं महत्वपूर्ण माना गया है। आज के दिन किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने से उसके शुभ फल प्राप्त होते है ।

इस बार संवत्सर 2079 में का नाम संवत्सर नल रहेगा। नवसंवत्सर के राजा शनि देव महाराज और मंत्री गुरुदेव बृहस्पति होंगे।

चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा अर्थात नव संवत्सर के दिन ही सम्राट विक्रमादित्य ने 2077 साल पहले अपना राज्य स्थापित कर विक्रम संवत की शुरुआत की थी।

आज के दिन मंदिर जाएँ और अपने घर पर लाल या केसरिया ध्वज अवश्य लगाएं ।

आज नव संवत्सर को अवश्य करें ये उपाय, भाग्य लगेगा चमकने

नक्षत्र (Nakshatra)- रेवती 11.21 AM तक तत्पश्चात अश्विनी

नक्षत्र के स्वामी :-     रेवती नक्षत्र का स्वामी बुद्धि के कारक बुध देव जी एवं इस  नक्षत्र के देवता “पूषा” हैं जो सूर्य भगवान का ही एक रूप है।

रेवती नक्षत्र आकाश मंडल में अंतिम नक्षत्र है। यह मीन राशि में आता है। रेवती का अर्थ है ‘समृद्ध’ और यह सुख – समृद्धि, धन और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।

रेवती नक्षत्र की गणना गंडमूल नक्षत्रों में की जाती है । इस नक्षत्र में जन्मे जातको को विष्णु भगवान की पूजा अवश्य करनी चाहिए । इन्हे नित्य विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से जीवन में श्रेष्ठ सफलता की प्राप्ति होती है ।

रेवती नक्षत्र का आराध्य वृक्ष महुआ और स्वभाव मृदु माना गया है ।

रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले स्त्री और पुरुष दोनों में विपरीत लिंग के व्यक्तियों के प्रति अधिक आकर्षण होता है। इनके दोस्तों में विपरीत लिंग के व्यक्तियों की अच्छी संख्या होती है।

रेवती नक्षत्र के लिए भाग्यशाली अंक 3 और 5, भाग्यशाली रंग भूरा, और भाग्यशाली दिन शनिवार और गुरुवार होता है ।

रेवती नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को इस नक्षत्र देवता के नाममंत्र:- “ॐ रेवत्यै नमः”l मन्त्र की माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।

  • योग(Yog) – इंद्र 8.31 AM तक तत्पश्चात वैधृति
  • प्रथम करण : – बव 11.58 AM तक
  • द्वितीय करण : – बालव
  • गुलिक काल : – शनिवार को शुभ गुलिक प्रातः 6 से 7:30 बजे तक ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सुबह – 9:00 से 10:30 तक।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:10
  • पर्व त्यौहार- पहला नवरात्र, नव संवंतर 2079
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )

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