शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchag, 29 जनवरी 2022 का पंचांग,
Shaniwar Ka Panchag, शनिवार का पंचांग,
29 जनवरी 2022 का पंचांग, 29 January 2022 ka Panchang,
- Panchang, पंचाग, ( Panchang 2021, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-
1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang), आज का पंचांग, aaj ka panchang,।
- शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang, )
29 जनवरी 2022 का पंचांग, 29 January 2022 ka Panchang,
- शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र – ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
।। आज का दिन मंगलमय हो ।।
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- दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से आयु का नाश होता है । अत: शनिवार को बाल और दाढ़ी दोनों को ही नहीं कटवाना चाहिए।
- शनिवार के दिन प्रात: पीपल के पेड़ में दूध मिश्रित मीठे जल का अर्ध्य देने और सांय पीपल के नीचे तेल का दीपक जलाने से कुंडली की समस्त ग्रह बाधाओं का निवारण होता है ।
अगर धन की लगातार परेशानी रहती है, धन नहीं रुकता हो, सर पर कर्ज चढ़ा तो अवश्य करें ये उपाय
- शनिवार के दिन पीपल के नीचे हनुमान चालीसा पड़ने और गायत्री मन्त्र की àएक माला का जाप करने से किसी भी तरह का भय नहीं रहता है, समस्त बिग़डे कार्य भी बनने लगते है ।
- शिवपुराण के अनुसार शनि देव पिप्लाद ऋषि का स्मरण करने वाले, उनके भक्तो को कभी भी पीड़ा नहीं देते है इसलिए जिन के ऊपर शनि की दशा चल रही हो उन्हें अवश्य ही ना केवल शनिवार को वरन नित्य पिप्लाद ऋषि का स्मरण करना चाहिए।
शनिवार के दिन पिप्पलाद श्लोक का या पिप्पलाद ऋषि जी के केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि देव की कृपा मिलती है, शनि की पीड़ा निश्चय ही शान्त हो जाती है ।
* विक्रम संवत् 2078,
* शक संवत – 1943,
* कलि संवत 5123
* अयन – उत्तरायण,
* ऋतु –शरद ऋतु,
* मास – माघ माह,
* पक्ष – कृष्ण पक्ष
*चंद्र बल – मिथुन, कर्क, तुला, धनु, कुंभ, मीन।
- तिथि (Tithi)- द्वादशी 20.37 PM तक तत्पश्चात त्रियोदशी
- तिथि का स्वामी – द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री विष्णु जी और त्रियोदशी तिथि के स्वामी कामदेव जी है।
हिंदू पंचाग की बाहरवीं तिथि द्वादशी (Dwadashi) कहलाती है। द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री हरि, श्री विष्णु जी है ।
इस तिथि का नाम यशोबला भी है, क्योंकि इस दिन भगवान श्री विष्णु जी / भगवान श्रीकृष्ण जी का आंवले, इलाइची, पीले फूलो से पूजन करने से यश, बल और साहस की प्राप्ति होती है, समस्त मनोकामनाएं निश्चय ही पूर्ण होती है।
द्वादशी तिथि के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यन्त श्रेयकर होता है। द्वादशी के दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।
भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का जन्म भी द्वादशी तिथि के दिन माना जाता है। इस दिन विष्णु भगवान के पूजन से बुध ग्रह भी मजबूत होता है ।
द्वादशी तिथि में विष्टि करण होने के कारण इस तिथि को भद्रा तिथि भी कहते है।
द्वादशी तिथि के दिन विवाह, तथा अन्य शुभ कार्य किये जाते है लेकिन इस तिथि में नए घर का निर्माण, ग्रह प्रवेश करना मना किया जाता है ।
द्वादशी के दिन तुलसी तोड़ना निषिद्ध है। द्वादशी के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिए, इस दिन यात्रा करने से धन हानि एवं असफलता की सम्भावना रहती है। द्वादशी के दिन मसूर का सेवन वर्जित है।
द्वादशी की दिशा नैऋत्य मानी गई है इस दिन इस दिशा की ओर किए गए कार्य शुभ फल देने वाले माने जाते हैं।
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नक्षत्र (Nakshatra)- मूल
नक्षत्र के स्वामी :- मूल नक्षत्र के देवता निॠति (राक्षस) एवं स्वामी केतु जी है ।।
मूल नक्षत्र का नक्षत्र मंडल में 19वां स्थान है। ‘मूल’ का अर्थ ‘जड़’ होता है। ज्योतिष शास्त्र में गंडमूल नक्षत्र के अंतर्गत अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को रखा गया है।
ज्योतिषियों का मानना है कि अगर बच्चे का जन्म गंडमूल नक्षण में हो तब उस की शांति अवश्य करा लेनी चाहिए अन्यथा इसका अशुभ परिणाम प्राप्त होता है।
गंडमूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो, तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। लेकिन यदि बच्चे का जन्म अगर मंगलवार अथवा शनिवार के दिन हुआ है तो इसके अशुभ प्रभाव बढ़ जाते हैं।
मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक को रविवार को छोड़कर सदैव या समय समय पर पीपल के वृक्ष में प्रसाद और जल चढ़ाते रहना चाहिए । मूल नक्षत्र सितारे का लिंग तटस्थ है।
मूल नक्षत्र का आराध्य वृक्ष साल और नक्षत्र का स्वभाव तीक्ष्ण माना गया है ।
मूल नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 3 और 7, भाग्यशाली रंग, सुनहरा और क्रीम, भाग्यशाली दिन शनिवार, मंगलवार और बुधवार का माना जाता है ।
मूल नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ निॠतये नमः “। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।
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- योग(Yog) – व्याघात 18.03 PM तत्पश्चात हर्षण
- प्रथम करण : – कौलव 10.08 AM तक
- गुलिक काल : – शनिवार को शुभ गुलिक प्रातः 6 से 7:30 बजे तक ।
- दिशाशूल (Dishashool)- शनिवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से अदरक खाकर, घी खाकर जाएँ ।
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- राहुकाल (Rahukaal)-सुबह – 9:00 से 10:30 तक।
- सूर्योदय – प्रातः 06:49
- सूर्यास्त – सायं 18:08
- विशेष :- धर्म शास्त्रों में द्वादशी के दिन तुलसी जी को तोड़ना, यात्रा करना और मसूर की दाल का सेवन करना मना किया गया है।
- पर्व त्यौहार-
- मुहूर्त (Muhurt) –
“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
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