प्राचीन धर्म ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के रुद्राक्षों के महत्व को बताया गया है। अतः आपके लिए कौनसा रुद्राक्ष उचित होगा? इसके लिए ज्योतिषीय परामर्श अावश्यक है। ताकि आपको उसका पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके। क्योंकि एक विद्वान ज्योतिषी ही आपकी जन्म कुंडली का अध्ययन कर आपको उचित रूप से यह बता सकता है। ध्यान रहे, रुद्राक्ष का अधिक से अधिक लाभ पाने के लिए इसे पूर्ण विधि विधान से धारण करना आवश्यक है। अतः हम आपको इस रिपोर्ट में रुद्राक्ष के प्रकार और रुद्राक्ष धारण की विधि बताने जा रहे हैं।
रुद्राक्ष सुझाव रिपोर्ट
रुद्राक्ष सुझाव रिपोर्ट की मदद से आप अपने लिए सही रुद्राक्ष का चुनाव कर सकेंगे। सही रुद्राक्ष को धारण करने के बाद आपको प्रत्येक क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। क्योंकि रुद्राक्ष नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है।
रुद्राक्ष का महत्व
रुद्राक्ष मुख्य रूप से एक बीज होता है, जो रुद्राक्ष वृक्ष से प्राप्त होता है। यह मूल रूप से संस्कृत का शब्द है जो दो ""रुद्र"" और ""अक्ष"" को मिलाकर बना है। इसमें रुद्र का अर्थ भगवान शिव है, जबकि अक्ष का मतलब भगवान शिव के अश्रु (आंसू) हैं। अर्थात रुद्राक्ष का संयुक्त अर्थ ""भगवान शिव की आँख"" से है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रुद्राक्ष उत्पत्ति भगवान शिव के आँसुओं की बूँदों से हुई हैं।
एक मुखी रुद्राक्ष
एक मुखी रुद्राक्ष आपके कर्म को सकारात्मक रूप में परिवर्तित करता है। भगवान शिव का प्रतीक होने के कारण एक मुखी रुद्राक्ष को बहुत ही पवित्र माना जाता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति बुरी ताक़तों से सुरक्षित रहता है और यह वह सदैव सन्मार्ग के पथ पर चलता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की आंतरिक शक्तियाँ जागृत होती हैं। इसलिए यदि आप आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करना चाहते हैं तो यह रुद्राक्ष आपके लिए उपयोगी रहेगा। एक मुखी रुद्राक्ष का स्वामी सूर्य ग्रह होता है इसलिए यह हमारी आत्म चेतना को जागृत करता है। ध्यान क्रिया के लिए यह बहुत ही कारगर रुद्राक्ष है। एक मुखी रुद्राक्ष में चमत्कारिक गुण विद्यमान हैं। यह उच्च ताप और ब्लड प्रेशर जैसी समस्याओं को दूर करता है। एकमुखी रुद्राक्ष सूर्य की भांति आपकी नेतृत्व क्षमता को निखारता है और यह राह में आने वाली चुनौतियों को दूर करता है।
एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि
एक मुखी रुद्राक्ष को सोने अथवा चाँदी में मढ़वाकर अथवा बिना मढ़वाए भी धारण किया जा सकता है। इस रुद्राक्ष को केवल लाल अथवा काले या फिर सोने अथवा चाँदी की चेन के साथ धारण करने का विधान है। रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व इसे शुद्ध करने के लिए इस पर गंगाजल अथवा कच्चे दूध का छिड़काव करें। उसके बाद भगवान शिव या भगवान विष्णु जी की सफेद अथवा लाल पुष्प, धूप, अगरबत्ती के साथ आराधना करें और सूर्य के बीज मंत्र ""ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"" का 108 बार जाप करें। उपरोक्त विधान को करने के बाद रुद्राक्ष को रविवार की प्राप्त अथवा कृतिका, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में धारण कर सकते हैं।
प्राकृतिक रुद्राक्ष का महत्व
आजकल बाज़ार में बिरले ही प्राकृतिक रुद्राक्ष मिलते हैं। क्योंकि मार्केट में प्लास्टिक और फाइबर से बने कृत्रिम रुद्राक्षों की भरमार है। इन्हें बहुत बड़ी मात्रा में चीन द्वारा फैक्ट्री में तैयार किया जा रहा है और वैश्विक बाज़ार में बेचा जा रहा है। असली रुद्राक्ष बहुत ही सीमित मात्रा में होते हैं। इनके उत्पादन पर मौसम का भी असर पड़ता है। ध्यान रहे, आर्टिफिशियल रुद्राक्ष देखने में हू-ब-हू वास्तविक रुद्राक्ष की तरह होते हैं इसलिए आम इंसान के लिए इनके बीच के अंतर को पहचान पाना मुश्किल होता है और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से कृत्रिम रुद्राक्ष का कोई महत्व नहीं है। लेकिन हमारे पास 100 फीसदी प्राकृतिक रुद्राक्ष उपलब्ध हैं जिसे धारण कर आप इसके ज्योतिषीय लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हमारे रुद्राक्ष की वास्तविकता को लैब द्वारा प्रमाणित किया जाता है।
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