बिना संकल्प लिए किसी प्रकार की पूजा कभी भी पूर्ण नहीं मानी जाती है।
बिना संकल्प लिए किसी प्रकार की पूजा कभी भी पूर्ण नहीं मानी जाती है।
अगर विधि-विधान और सच्चे मन से किसी भगवान की पूजा की जाए तो मनोकामनाओं की पूर्ति जरूर होती है। किसी भी देवी-देवता या विशेष प्रयोजन में की जाने वाले पूजा आरंभ करने से पहले संकल्प लिया जाता है। बिना संकल्प के पूजा सफल नहीं मानी जाती। आइए जानते हैं पूजा में संकल्प लेने की उपयोगिता क्या है।
संकल्प का सामान्य मतलब किसी कार्य को करने का द्दढ निश्चय करना होता है। हिंदू धर्म में परंपरा होती है कि किसी भी तरह के पूजा-पाठ, अनुष्ठान या शुभ कार्य करने से पहले संकल्प करना अति आवश्यक होता है। बिना संकल्प के कोई भी पूजा या शुभ कार्य अधूरा माना जाता है। पूजा में बिना संकल्प के पूजा करने से सारा फल इंद्रदेव को प्राप्त हो जाता है। इसलिए किसी भी तरह के पूजा में पंडित संकल्प करनावा नहीं भूलता है।
- बिना संकल्प लिए किसी प्रकार की पूजा कभी भी पूर्ण नहीं मानी जाती है। साथ ही पूजा का पूरा फल भी प्राप्त नहीं होता है। पूजा में संकल्प लेने का मतलब होता है कि अपने इष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर पूजन कर्म को संपन्न करना।
- मान्यता है कि जिस पूजा में बिना संकल्प लिए पूजा कर्म किया जाता है उसका सारा फल देवराज इंद्र को चला जाता है। इसलिए पूजा में संकल्प जरूर लेना चाहिए।
- संकल्प भगवान गणेश के सामने लिया जाता है ताकि पूजा में किसी किसी प्रकार की कोई रुकावट न हो और पूजा संपन्न हो जाए। संकल्प लेते समय हाथ में जल लेकर पांच तत्वों अग्नि, पृथ्वी, आकाश, वायु और जल को साक्षी माना जाता है। एक बार संकल्प लेने पर पूजा करना आवश्यक होता है।
संकल्प लेने के बाद पूजा
- किसी भी पूजा, अनुष्ठान या शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश को पूजा स्थल पर बैठाते है।
- हमेशा पूजन पूर्व की दिशा में मुंह करके करना चाहिए। पूर्व की दिशा में भगवान का वास होता है।
-पूजन कार्य संपन्न करने से पहले पूजन साम्रगी को अलग कर रखें। ताकि पूजन कार्य आरंभ होने में अनावश्यक व्यवधान उत्पन्न ना हो सके।
- अगर किसी कारण से भगवान गणेश की प्रतिमा उपलब्ध ना हो सके हो तो ऐसी दशा में एक सुपारी को पर कलावा लपेटकर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उन्हें स्थापित कर देना चाहिए।
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