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हिन्दू धर्म शास्त्रों में गुरु पूर्णिमा का महत्व, Guru purnima ka mahtv, बहुत अधिक बताया गया है । आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) कहते हैं। इस दिन अपने गुरु की पूजा का विधान है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व, Guru purnima ka mahtv, इसलिए भी बहुत अधिक है क्योंकि इस दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म हुआ था। इनकी माता मछुआरे की पुत्री सत्यवती और पिता ऋषि पराशर थे।

वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे, जिन्होंने महाभारत की रचना की थी साथ ही उन्होंने 6 शास्त्रों18 पुराणों की भी रचना की। उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी वेदों को विभाजित किया। इसी कारण इनका नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ।

व्यासजी द्वापर युग के अंतिम भाग में प्रकट हुए थे। उन्होंने अपनी सर्वज्ञ दृष्टि से समझ लिया कि कलियुग में मनुष्यों की शारीरिक एवं बौद्धिक शक्ति बहुत कम हो जाएगी। इसलिए कलियुग में मनुष्यों को वेदों का अध्ययन करना उनका ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं रहेगा। इसी कारण व्यासजी ने वेदों के चार विभाग कर दिए।

वह आदिगुरु कहलाते है मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि व्यासजी ने सबसे पहले अपने शिष्यों एवं ऋषि मुनियों को शास्त्रों का ज्ञान प्रदान किया थाऔर उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) को व्यास पूर्णिमा (Vyas Purnima) नाम से भी जाना जाता है।

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) से चार महीने तक ऋषि-मुनि एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं, इस समय मौसम भी अनुकूल होता है अत: उनके अनुयायी उनके शिष्य, भक्त जन अपने गुरु के चरणों में उपस्थित रहकर ज्ञान, भक्ति, शान्ति, योग एवं अपने कर्तव्यों के पालन आदि की शिक्षा प्राप्त करते है, उनके सत्संग का लाभ उठाते है । Guru purnima ka mahtv, गुरु पूर्णिमा का महत्व

हिन्दु धर्म शास्त्रों में गुरू को अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश देने वाला कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार गुरु की कृपा से ही धर्म, ज्ञान, सांसारिक कर्तव्यों का पालन एवं ईश्वर की भक्ति संभव है ।

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपके जिन गोविंद दियो बताय”॥
इस श्लोक में गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया गया है क्योंकि वह ही हमें अज्ञान रूप अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर लेकर जाता है और उसी के दिखाए हुए मार्ग पर चलकर ही ईश्वर की प्राप्ति होती है ।


“गुरु” दो अक्षरों से मिलकर बना है, ‘गुरु’ शब्द का अर्थ – ‘गु का अर्थ- ‘अंधकार’ है और ‘रु’ का अर्थ- ‘उसको हटाने वाला’ होता है।
अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले, जीवन को ज्ञान से प्रकाशित करने वाले को ‘गुरु’ कहते है।


गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है, गुरु अपने शिष्य की ना केवल समस्त जिज्ञासाएं ही शान्त करता है वरन वह उसको जीवन के सभी संकटो से बाहर निकलने का मार्ग भी बतलाता है । गुरु ही शिष्य को सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन करता है, अपने शिष्य को नयी ऊँचाइयों पर ले जाता है।

गुरु वह होता है जिसमें दूसरो का उद्दार करने की क्षमता होती है, वह स्वयं का उद्दार तो नहीं करता है लेकिन गुरु की कृपा प्राप्त करने वाले उनके निकट आने वाले का कल्याण निश्चित है ।

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शास्त्रों के अनुसार जीवन में ज्ञान, प्रभु भक्ति, सुख-शान्ति और देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए, अपने समस्त कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए सच्चे गुरु की नितान्त आवश्यकता होती है। वास्तव में जिस भी व्यक्ति से हम से कुछ भी सीखते हैं , वह हमारा गुरु होता है और हमें उसका अवश्य ही सम्मान करना चाहिए।

आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2021 में यह पर्व 24 जुलाई को मनाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा के दिन यह ग्रहण लगने के कारण इस दिन पूजा, जप,तप, दान, पुण्य का महत्व बहुत ज्यादा हो गया है।


आषाढ़ पूर्णिमा / गुरु पूर्णिमा 23 जुलाई दिन शुक्रवार सुबह 10 बजकर 43 मिनट से 24 जुलाई दिन शनिवार को सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक है।
उदया तिथि 24 को होने के कारण इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को मनाई जाएगी।


वैसे तो हमें सदैव ही अपने गुरु का पूर्ण आदर एवं सम्मान करना चाहिए लेकिन शास्त्रों में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ‘गुरु पूर्णिमा’ (Guru Purnima) को गुरु सम्मान करना अत्यन्त पुण्यदायक माना है । प्राचीन काल से ही इस दिन लोग अपने गुरु का सम्मान करते हैं । इस दिन गुरु को गुरु दक्षिणा देने की भी परंपरा है।

गुरु पूर्णिमा के दिन भक्तो की आस्था सैलाब उमड़ पड़ता है । लोग अपने गुरु को पुष्प भेंट करते है उनका माल्यापर्ण करते हैं उन्हें अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य से फल, मिष्ठान, वस्त्र, और उपहार आदि अर्पित करके उनका पूजन करते है उनका आशीर्वाद, उनकी कृपादृष्टि प्राप्त करते है ।

गुरु पूर्णिमा के दिन अपने माता -पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी अवश्य ही पूजा करनी चाहिए।

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के दिन समस्त मनुष्यों को अपने गुरु का आशीर्वाद अनिवार्य रूप से लेना चहिये। गुरु का आशीर्वाद सभी विद्यार्थी , समस्त छोटे-बड़े के लिए अत्यन्त ज्ञानवर्द्धक, कल्याणकारी और समस्त संकटो से रक्षा करने वाला होता है ।

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के दिन हमें ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र की माला का अवश्य ही जाप करना चाहिए ।

इस दिन हमें व्यासजी, ब्रह्माजी, गुरु बृहस्पति, गुरु शुक्राचार्य, गोविंद स्वामीजी और आदि गुरु शंकराचार्यजी के नाम का अवश्य ही स्मरण , ध्यान करना चाहिए, उनसे अपनी जाने अनजाने में की गयी गलतियों के लिए माँगनी चाहिए।

इस दिन सप्त ऋषियों ऋषि वशिष्ठ,ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि, ऋषि जमदग्नि, ऋषि गौतम, ऋषि विश्वामित्र और ऋषि भारद्वाज का स्मरण भी अवश्य ही करें ।

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आचार्य मुक्ति नारायण पांडेय
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