जानिए ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का पौराणिक महत्व और ऐतिहासिक तथ्य

 

जानिए ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का पौराणिक महत्व और ऐतिहासिक तथ्य



ओंकारेश्वर धाम मध्य प्रदेश की मोक्ष दायिनी कही जाने वाली नर्मदा नदी के तट पर बसा हैं। यहां विराजित ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु नर्मदा पर बने पुल के माध्यम से उस पार जाना पड़ता हैं। नर्मदा नदी के बीच मन्धाता व शिवपुर नामक द्वीप पर ओंकारेश्वर पवित्र धाम बना हुआ हैं।

देशभर में भगवान महाकाल के 12 ज्योतिर्लिंग हैं। इनमे से 2 ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में विराजमान हैं। जिनमे पहला ज्योतिर्लिंग उज्जैन दूसरा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर-ममलेश्वर के रूप में मौजूद हैं। आज हम आपको ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहें जहां आये दिन कोई न कोई चमत्कार होता रहता हैं। यहां विराजित भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही अनेक मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं तथा भगवान शिव का अपरंपार आशीर्वाद बना रहता हैं। ओंकारेश्वर धाम किसी मोक्षधाम से कम नही हैं। ॐ के आकार में बने इस धाम की परिक्रमा करने से भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता हैं।


नर्मदा के तट पर विराजित हैं ओंकारेश्वर-

ओंकारेश्वर धाम मध्य प्रदेश की मोक्ष दायिनी कही जाने वाली नर्मदा नदी के तट पर बसा हैं। यहां विराजित ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु नर्मदा पर बने पुल के माध्यम से उस पार जाना पड़ता हैं। नर्मदा नदी के बीच मन्धाता व शिवपुर नामक द्वीप पर ओंकारेश्वर पवित्र धाम बना हुआ हैं। बताया जाता हैं कि जब भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग यहां विराजमान हुआ था तब नर्मदा नदी यहां स्वतः ही प्रकट हुई थी। आस्था हैं कि भगवान शिव के पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु पहले नर्मदा में स्नान कर पवित्र डूबकी लगाना पड़ती हैं। जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की कामना पूरी करते हैं। 

राजा मान्धाता की तपस्या से यहां प्रसन्न हुए थे भगवान शिव-

ओंकारेश्वर पवित्र धाम को लेकर कई प्रकार की कथाएं प्रचलित हैं। बताया जाता हैं कि ओंकारेश्वर धाम मन्धाता द्वपि पर स्थित हैं। मन्धाता द्वीप के राजा मान्धाता ने यहां पर्वत पर घोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न हुए भगवान शिव से राजा ने वरदान स्वरूप यही निवास करने का वरदान मांगा। जिसके बाद भगवान ने राजा के वचन अनुसार यहां पवित्र ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव विराजमान हुए एवं राजा के राज्य में रहने वाली हर जनता की सुरक्षा एवं रक्षा भगवान शिव स्वयं करते रहें। प्राचीन कथाओं के अनुसार ओंकारेश्वर को तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के नाम से भी प्राचीन समय में जाना जाता था।

इसलिए इस तीर्थ का नाम हैं ओंकारेश्वर-

राजा मान्धाता ने अपनी प्रजा के हित तथा मोक्ष के लिए तपस्या कर भगवान शिव से यही विराजमान होने का वरदान मांगा था। जिसके बाद से यहां पहाड़ी पर ओंकारेश्वर तीर्थ ॐ के आकार में बना हुआ हैं। ॐ शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ तथा वेद का पाठ उच्चारण किए बिना नही होता हैं। इसलिए इस तीर्थ का नाम ओंकारेश्वर हैं। आस्था हैं कि ॐ आकार से बने तीर्थ की परिक्रमा करने पर अत्यंत लाभदायक फल तथा मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

यहां विराजित हैं 33 करोड़ देवता, नर्मदा नदी का दर्शन देता हैं मनचाहा फल-

ओंकारेश्वर को लेकर कई मान्यता हैं जो इस तीर्थ के प्रति एक नई आस्था को हर रोज मनुष्य में उतपन्न करती हैं। कहा जाता हैं कि यहां पर 33 करोड़ देवी देवताओं का वास हैं तथा नर्मदा नदी मोक्ष दायनी हैं। 12 ज्योतिर्लिंग में ओंकारेश्वर का पवित्र ज्योतिर्लिंग भी शामिल हैं। शास्त्रों में मान्यता हैं कि जब तक तीर्थ यात्री ओंकारेश्वर के दर्शन कर यहां नर्मदा सहित अन्य नदी का जल नही चढ़ाते हैं तब तक उनकी यात्रा पूर्ण नही मानी जाती हैं। तथा यहां पर नर्मदा नदी में लगातार 7 दिवस तक सूर्य उदय से समय स्नान कर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से रोग, कष्ट दूर होकर मनचाहा फल एवं मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

आचार्य मुक्ति नारायण जी के अनुसार प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की आराधना, पंचामृत / दूध / जल से अभिषेक करने से संकट दूर होते है, समस्त सुख प्राप्त होते है ।
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आचार्य मुक्ति नारायण पांडेय
अध्यात्म ज्योतिष परामर्श कैद्र रायपुर छ्तीसगढ़
मोवोइल्स नंबर :9425203501+07714070168


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