आप सभी भक्तो को नवरात्री की महाष्टमी / महानवमी की हार्दिक शुभकामनायें, जय माँ महागौरी, जय महा सिद्धिदात्री
गुरुवार का पंचांग शनिवार का पंचांग
शुक्रवार का पंचांग, Shukrwar ka panchag, 11 अक्टूबर 2024 का पंचांग,
शुक्रवार का पंचांग, shukrwar ka panchang,
- Panchang, पंचाग, Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang, पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-
1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी नित्य पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए, Shukravar Ka Panchang, शुक्रवार का पंचांग, आज का पंचांग, aaj ka panchang,
11 अक्टूबर 2024 का पंचांग, 11 October 2024 ka Panchang,
- महालक्ष्मी मन्त्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
- ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
आज का पंचांग, aaj ka panchang,
दिन (वार) – शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु पर जल चढ़ाकर उन्हें पीले चन्दन अथवा केसर का तिलक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
शुक्रवार के दिन नियम पूर्वक धन लाभ के लिए लक्ष्मी माँ को अत्यंत प्रिय “श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” एवं समस्त संकटो को दूर करने के लिए “माँ दुर्गा के 32 चमत्कारी नमो का पाठ” अवश्य ही करें ।
शुक्रवार के दिन माँ लक्ष्मी को हलवे या खीर का भोग लगाना चाहिए ।
शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।
- *विक्रम संवत् 2081,
- * शक संवत – 1946,
*कलि संवत – 5126
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – अश्विन माह
* पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, मकर, मीन,,
शुक्रवार के दिन नियम पूर्वक धन लाभ के लिए लक्ष्मी माँ को अत्यंत प्रिय “श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” एवं समस्त संकटो को दूर करने के लिए “माँ दुर्गा के 32 चमत्कारी नमो का पाठ” अवश्य ही करें ।
शुक्रवार के दिन माँ लक्ष्मी को हलवे या खीर का भोग लगाना चाहिए ।
शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।
*कलि संवत – 5126
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – अश्विन माह
* पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, मकर, मीन,,
शुक्रवार को शुक्र देव की होरा :-
प्रात: 6.19 AM से 7.17 AM तक
दोपहर 1.05 PM से 2.03 PM तक
रात्रि 19.59 PM से 9.01 PM तक
अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए नवरात्री में अवश्य करें ये उपाय
दाहिने हाथ के अंगूठे से नीचे के हिस्से ( शुक्र का स्थान ) और अंगूठे पर थोड़ा सा इत्र लगाकर, ( इत्र ना मिले तो उसके बिना भी कर सकते है) बाएं हाथ के अंगूठे से उस हिस्से को शुक्र की होरा में “ॐ शुक्राये नम:” या
‘ॐ द्रांम द्रींम द्रौंम स: शुक्राय नम:।’ मंत्र का अधिक से अधिक जाप करते हुए अधिक से अधिक रगड़ते / मसाज करते रहे ( कम से कम 10 मिनट अवश्य )I
यह उपाय आप कोई भी काम करते हुए चुपचाप कर सकते है इसके लिए किसी भी विधि विधान की कोई आवश्यकता नहीं है I
सुख समृद्धि, ऐश्वर्य, बड़ा भवन, विदेश यात्रा, प्रेम, रोमांस, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए शुक्रवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा में शुक्रदेव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शुक ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
शुक्र देव के मन्त्र :-
ॐ शुं शुक्राय नमः।। अथवा
” ॐ द्राम द्रीम द्रौम सः शुक्राय नमः “।।
नवरात्री के दिन बहुत ही सिद्ध और शक्ति संपन्न होते है, नवरात्री के इस उपाय से मिलेगी सभी कार्यों में श्रेष्ठ सफलता, जानिए नवरात्री के अचूक उपाय
- तिथि, (Tithi) :- अष्टमी दोपहर 12.06 PM तक तत्पश्चात नवमी तिथि,
- तिथि के स्वामी – अष्टमी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ जी और नवमी तिथि की स्वामिनी माँ दुर्गा जी है I
नवरात्री में बहुत से लोग अष्टमी को कन्या पूजन करते है और बहुत से नवमी के दिन । नवमी तिथि पर कन्या पूजन के साथ ही नवरात्रि का महापर्व समाप्त हो जाता है । इस बार शरद नवरात्री में अष्टमी और नवमी तिथि को लेकर लोगों में बहुत असमंजस की स्तिथि है ।
आइए जानते हैं कि इस बार महाष्टमी और महानवमी किस दिन पड़ रही है ।
पंचांग के अनुसार, इस साल 2024 के शरद नवरात्री में सप्तमी और अष्टमी एक ही दिन 10 अक्टूबर को पड़ रही हैं । शास्त्रों के अनुसार सप्तमी युक्त अष्टमी के दिन कन्या पूजन को मना किया गया है ।
इसलिए अष्टमी पर महागौरी की पूजा और कन्या पूजन दोनों ही 11 अक्टूबर शुक्रवार को ही किए जाएंगे । इसी दिन महानवमी का कन्या पूजन और मां सिद्धिदात्री की भी पूजा होगी ।
इस साल अष्टमी तिथि का आरंभ 10 अक्टूबर को दोपहर 12.31 बजे से हो रहा है, जिसका समापन 11 अक्टूबर को दोपहर 12.06 बजे होगा, अर्थात उदया तिथि के अनुसार अष्टमी शुक्रवार को है और अष्टमी तिथि के समाप्त होते ही नवमी तिथि शुरू हो जाएगी, जिसका समापन 12 अक्टूबर को सुबह 11:01 मिनट पर होगा और तब दशमी तिथि लग जाएगी । इसलिए 11 अक्टूबर को अष्टमी और नवमी का पूजन किया जाएगा ।
जो लोग नवमी के दिन कन्या पूजन करते है वह 11 और 12 अक्टूबर को दोनों ही दिन कन्या पूजन कर सकते है ।
नवरात्री के आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा की जाती है। महागौरी को भगवान गणेश की माता के रूप में भी जाना जाता है ।
इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। कोई भी संकट, दुःख उसके पास भी नहीं आता है । मां गौरी ममता की मूर्ति कही जाती हैं जो अपने भक्तों को अपने पुत्र समान प्रेम करती हैं।
मां महागौरी का ये रूप बेहद सरस, सुलभ और मोहक है।
इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इनके सभी वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है और इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
महागौरी का वाहन वृषभ अर्थात बैल है। इन की चार भुजाएँ हैं, इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं।
अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। अष्टमी तिथि को माँ गौरी को दूध से बने नैवेद्य एवं नारियल का भोग लगाएं।
माँ गौरी की आराधना से सभी पाप नष्ट हो जाते है एवं धन, यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है । ये धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।
नवरात्री की अष्टमी के दिन मां गौरी की कृपा के लिए यहाँ दिए गए मन्त्र की एक माला का जाप करना चाहिए ।
“ॐ महा गौरी देव्यै नम:”
अथवा
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
जिनके घरो में अष्टमी पूजी जाती है जो सात नवरात्री का ब्रत रखते है उनके यहाँ अष्टमी की पूजा के बाद नन्ही कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना शुभ फल देने वाला माना जाता है।
अष्टमी के दिन नन्ही कन्याओं जिन्हे कंजक कहा जाता है की पूजा करना, उन्हें प्रेम पूर्वक भोजन करवाकर उन्हें उपहार देने से माँ दुर्गा की असीम कृपा मिलती है ।
शत्रुओं पर विजय, जीवन में अशातीत सफलता के लिए विजयदशमी के दिन सर्व सिद्धिदायी, विजय काल में अवश्य ही करे ये उपाय
- तिथि के स्वामी – अष्टमी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ जी और नवमी तिथि की स्वामिनी माँ दुर्गा जी है I
नवरात्री में बहुत से लोग अष्टमी को कन्या पूजन करते है और बहुत से नवमी के दिन । नवमी तिथि पर कन्या पूजन के साथ ही नवरात्रि का महापर्व समाप्त हो जाता है । इस बार शरद नवरात्री में अष्टमी और नवमी तिथि को लेकर लोगों में बहुत असमंजस की स्तिथि है ।
आइए जानते हैं कि इस बार महाष्टमी और महानवमी किस दिन पड़ रही है ।
पंचांग के अनुसार, इस साल 2024 के शरद नवरात्री में सप्तमी और अष्टमी एक ही दिन 10 अक्टूबर को पड़ रही हैं । शास्त्रों के अनुसार सप्तमी युक्त अष्टमी के दिन कन्या पूजन को मना किया गया है ।
इसलिए अष्टमी पर महागौरी की पूजा और कन्या पूजन दोनों ही 11 अक्टूबर शुक्रवार को ही किए जाएंगे । इसी दिन महानवमी का कन्या पूजन और मां सिद्धिदात्री की भी पूजा होगी ।
इस साल अष्टमी तिथि का आरंभ 10 अक्टूबर को दोपहर 12.31 बजे से हो रहा है, जिसका समापन 11 अक्टूबर को दोपहर 12.06 बजे होगा, अर्थात उदया तिथि के अनुसार अष्टमी शुक्रवार को है और अष्टमी तिथि के समाप्त होते ही नवमी तिथि शुरू हो जाएगी, जिसका समापन 12 अक्टूबर को सुबह 11:01 मिनट पर होगा और तब दशमी तिथि लग जाएगी । इसलिए 11 अक्टूबर को अष्टमी और नवमी का पूजन किया जाएगा ।
जो लोग नवमी के दिन कन्या पूजन करते है वह 11 और 12 अक्टूबर को दोनों ही दिन कन्या पूजन कर सकते है ।
नवरात्री के आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा की जाती है। महागौरी को भगवान गणेश की माता के रूप में भी जाना जाता है ।
इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। कोई भी संकट, दुःख उसके पास भी नहीं आता है । मां गौरी ममता की मूर्ति कही जाती हैं जो अपने भक्तों को अपने पुत्र समान प्रेम करती हैं।
मां महागौरी का ये रूप बेहद सरस, सुलभ और मोहक है।
इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इनके सभी वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है और इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
महागौरी का वाहन वृषभ अर्थात बैल है। इन की चार भुजाएँ हैं, इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं।
अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। अष्टमी तिथि को माँ गौरी को दूध से बने नैवेद्य एवं नारियल का भोग लगाएं।
माँ गौरी की आराधना से सभी पाप नष्ट हो जाते है एवं धन, यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है । ये धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।
नवरात्री की अष्टमी के दिन मां गौरी की कृपा के लिए यहाँ दिए गए मन्त्र की एक माला का जाप करना चाहिए ।
“ॐ महा गौरी देव्यै नम:”
अथवा
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
जिनके घरो में अष्टमी पूजी जाती है जो सात नवरात्री का ब्रत रखते है उनके यहाँ अष्टमी की पूजा के बाद नन्ही कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना शुभ फल देने वाला माना जाता है।
अष्टमी के दिन नन्ही कन्याओं जिन्हे कंजक कहा जाता है की पूजा करना, उन्हें प्रेम पूर्वक भोजन करवाकर उन्हें उपहार देने से माँ दुर्गा की असीम कृपा मिलती है ।
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नक्षत्र ( Nakshatra ) : उत्तराषाढ़ा 05.25 AM, 12 अक्टूबर तक,
नक्षत्र के स्वामी :– उत्तराषाढा नक्षत्र के देवता दस विश्वदेव जी एवं नक्षत्र के स्वामी सूर्य देव जी है ।
उत्तराषाढा नक्षत्र 21 वें नंबर का नक्षत्र है। उत्तराषाढ़ा’ का अर्थ होता है अजेय, विजय के पश्चात। यह एक हाथी के दांत जैसा प्रतीत होता है।
उत्तराषाढ़ नक्षत्र तारे का लिंग स्त्री है। उत्तराषाढा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष कटहल और नक्षत्र का स्वभाव स्थिर माना गया है ।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे जातक पर सूर्य, शनि और गुरु का प्रभाव बना रहता है।
उत्तराषाढा नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति एक सफल एवं स्वतंत्र व्यक्ति होते हैं। इन्हे ईश्वर में आस्था होती है, इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति प्रसन्न चित्त और मित्रो में लोकप्रिय होते है ।
विवाह के उपरान्त इनको जीवन में और अधिक सफलता प्राप्त होती है, इन्हे उत्तम पुत्र सुख मिलता है। यह घूमने फिरने के बहुत शौक़ीन होते है ।
उत्तराषाढा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 1, 3 और 8, भाग्यशाली रंग, तांबे का रंग, हल्का भूरा, भाग्यशाली दिन गुरुवार और शुक्रवार का माना जाता है ।
उत्तराषाढा नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ उत्तराषाढाभ्यां नमः”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।
उत्तराषाढा नक्षत्र में जन्मे जातको को नित्य गणेश संकट स्रोत्र का पाठ करना चाहिए इससे कार्यो में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है
नक्षत्र ( Nakshatra ) : उत्तराषाढ़ा 05.25 AM, 12 अक्टूबर तक,
नक्षत्र के स्वामी :– उत्तराषाढा नक्षत्र के देवता दस विश्वदेव जी एवं नक्षत्र के स्वामी सूर्य देव जी है ।
उत्तराषाढा नक्षत्र 21 वें नंबर का नक्षत्र है। उत्तराषाढ़ा’ का अर्थ होता है अजेय, विजय के पश्चात। यह एक हाथी के दांत जैसा प्रतीत होता है।
उत्तराषाढ़ नक्षत्र तारे का लिंग स्त्री है। उत्तराषाढा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष कटहल और नक्षत्र का स्वभाव स्थिर माना गया है ।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे जातक पर सूर्य, शनि और गुरु का प्रभाव बना रहता है।
उत्तराषाढा नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति एक सफल एवं स्वतंत्र व्यक्ति होते हैं। इन्हे ईश्वर में आस्था होती है, इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति प्रसन्न चित्त और मित्रो में लोकप्रिय होते है ।
विवाह के उपरान्त इनको जीवन में और अधिक सफलता प्राप्त होती है, इन्हे उत्तम पुत्र सुख मिलता है। यह घूमने फिरने के बहुत शौक़ीन होते है ।
उत्तराषाढा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 1, 3 और 8, भाग्यशाली रंग, तांबे का रंग, हल्का भूरा, भाग्यशाली दिन गुरुवार और शुक्रवार का माना जाता है ।
उत्तराषाढा नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ उत्तराषाढाभ्यां नमः”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।
उत्तराषाढा नक्षत्र में जन्मे जातको को नित्य गणेश संकट स्रोत्र का पाठ करना चाहिए इससे कार्यो में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है
शनि देव को करना है अपने अनुकूल तो नवरात्रि के शनिवार को अवश्य ही करें ये उपाय
योग(Yog) :- सुकर्मा 02.45 AM, 12 अक्टूबर तक,
योग के स्वामी, स्वभाव :- सुकर्मा योग के स्वामी इंद्र जी और स्वभाव शुभ माना जाता है ।
प्रथम करण : – बव 12.06 PM तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- बव करण के स्वामी इंद्र देव और स्वभाव सौम्य है ।
द्वितीय करण :- बालव 23.37 PM, तत्पश्चात कौलव,
करण के स्वामी, स्वभाव :- बालव करण के स्वामी ब्रह्म जी और स्वभाव सौम्य है ।
- गुलिक काल : – शुक्रवार को शुभ गुलिक प्रात: 7:30 से 9:00 तक ।
- दिशाशूल (Dishashool)- शुक्रवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है ।
यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से दही में चीनी या मिश्री डालकर उसे खाकर जाएँ ।
- राहुकाल (Rahukaal)-दिन – 10:30 से 12:00 तक ।
- सूर्योदय -प्रातः 06:20
- सूर्यास्त – सायं : 17:55
- विशेष – अष्टमी को नारियल का सेवन नहीं करना चाहिए, अष्टमी को नारियल का सेवन करने से बुध्दि का नाश होता है ।
- शास्त्रों के अनुसार किसी भी पक्ष की नवमी तिथि में लौकी और कद्दू का सेवन नहीं करना चाहिए।
- पर्व त्यौहार- महाष्टमी, महानवमी,
योग(Yog) :- सुकर्मा 02.45 AM, 12 अक्टूबर तक,
योग के स्वामी, स्वभाव :- सुकर्मा योग के स्वामी इंद्र जी और स्वभाव शुभ माना जाता है ।
प्रथम करण : – बव 12.06 PM तक,
करण के स्वामी, स्वभाव :- बव करण के स्वामी इंद्र देव और स्वभाव सौम्य है ।
द्वितीय करण :- बालव 23.37 PM, तत्पश्चात कौलव,
करण के स्वामी, स्वभाव :- बालव करण के स्वामी ब्रह्म जी और स्वभाव सौम्य है ।
- गुलिक काल : – शुक्रवार को शुभ गुलिक प्रात: 7:30 से 9:00 तक ।
- दिशाशूल (Dishashool)- शुक्रवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है ।
यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से दही में चीनी या मिश्री डालकर उसे खाकर जाएँ ।
- राहुकाल (Rahukaal)-दिन – 10:30 से 12:00 तक ।
- सूर्योदय -प्रातः 06:20
- सूर्यास्त – सायं : 17:55
- विशेष – अष्टमी को नारियल का सेवन नहीं करना चाहिए, अष्टमी को नारियल का सेवन करने से बुध्दि का नाश होता है ।
- शास्त्रों के अनुसार किसी भी पक्ष की नवमी तिथि में लौकी और कद्दू का सेवन नहीं करना चाहिए।
- पर्व त्यौहार- महाष्टमी, महानवमी,
जरुर पढ़ें :- पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रो का राजा कहते है जानिए क्यों महत्वपूर्ण है पुष्य नक्षत्र,
“हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
अगर नित्य पंचाग पढ़ने से आपको लाभ मिल रहा है, आपका आत्मविश्वास बढ़ रहा है, आपका समय आपके अनुकूल हो रहा है तो आप हमें अपनी इच्छा – सामर्थ्य के अनुसार कोई भी सहयोग राशि 9425203501 पर Google Pay कर सकते है ।
आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
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