ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )

बुधवार का पंचांग, Budhwar Ka Panchang, 17 जुलाई 2024 का पंचांग,

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आप सभी को देवशयनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनायें


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पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :- 1:- तिथि (Tithi) 2:- वार (Day) 3:- नक्षत्र (Nakshatra) 4:- योग (Yog) 5:- करण (Karan)

पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
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बुधवार का पंचांग (Budhwar Ka Panchang)


17 जुलाई 2024 का पंचांग, ( Panchang ), 17 July 2024 ka Panchang,

गणेश गायत्री मंत्र :
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात ।।

।। आज का दिन मंगलमय हो ।।

* दिन (वार) – बुधवार के दिन तेल का मर्दन करने से अर्थात तेल लगाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है धन लाभ मिलता है।
बुधवार का दिन विघ्नहर्ता गणेश का दिन हैं। बुधवार के दिन गणेश जी के परिवार के सदस्यों का नाम लेने से जीवन में शुभता आती है।

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बुधवार के दिन गणेश जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके लड्डुओं का भोग लगाकर उनकी की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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* बुधवार को सभी ग्रहो के राजकुमार बुध देव की आराधना करने से ज्ञान मिलता है, वाकपटुता में प्रवीणता आती है, धन लाभ होता है ।

बुधवार को गाय को हरा चारा खिलाने तथा रात को सोते समय फिटकरी से दाँत साफ करने से आर्थिक पक्ष मजबूत होता है ।

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*विक्रम संवत् 2081,
*शक संवत – 1945
*कलि संवत 5124
*अयन – दक्षिणायन
*ऋतु – वर्षा ऋतु
*मास – आषाढ़ माह
*पक्ष – शुक्ल पक्ष
*चंद्र बल – वृषभ, मिथुन, कन्या, वृश्चिक, मकर, कुम्भ,

बुधवार को बुध की होरा :-

प्रात: 5.34 AM से 6.43 AM तक

दोपहर 01.35 PM से 2.44 PM तक

रात्रि 21.02 PM से 9.53 PM तक

बुधवार को बुध की होरा में हाथ की सबसे छोटी उंगली और बुध पर्वत को हल्के हल्के रगड़ते हुए अधिक से अधिक बुध देव के मन्त्र का जाप करें ।

ज्योतिष, पढ़ाई, लिखाई, सीखने, वाकपटुता, अपना प्रभाव डालने और व्यापार में सफलता के लिए बुध की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

बुधवार के दिन बुध की होरा में बुध देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

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बुध देव के मन्त्र

“ॐ बुं बुधाय नमः” अथवा

“ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:।।”

अक्षय तृतीया के दिन इस वस्तु का दान करने, सेवन करने से समस्त पापो का होता है नाश,

  • तिथि (Tithi) – एकादशी 21.02 PM तक तत्पश्चात द्वादशी
  • तिथि के स्वामी – एकादशी तिथि के स्वामी विश्व देव जी और द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान श्री विष्णु जी है ।

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है।

इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है, भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर कार्तिक शुक्ल की एकादशी को उन्हें उठाया जाता है।

इसी कारण कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की देवोत्थानी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है तथा इस बीच के चार माह के समय को  ही चातुर्मास कहा गया है।

देवशयनी एकादशी के दिन से सभी शुभ कार्य 4 माह के लिए निषेध माने गए है।  

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु इस दिन से ( चातुर्मास ) पूरे चार माह तक  पाताल लोक में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को वापस विष्णु लोक को लौटते हैं।

शास्त्रों में इस सम्बन्ध में एक कथा लिखी है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंखासुर नामक दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से भगवान श्री विष्णु जी चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को जागते हैं।

पुराण में एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्री हरि जी ने वामन रूप में दैत्य बलि से मात्र तीन पग दान के रूप में मांगे जिसे बलि ने स्वीकार कर लिया ।

तब विष्णु जी ने अपने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश एवं समस्त दिशाओं को ढक लिया।  उन्होंने अपने अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक को नाप लिया । फिर बलि ने अपने तीसरे पग में अपने  सिर पर पग रखने को कहा ।

राजा बलि के इस प्रकार के दान से भगवान श्री विष्णु जी ने प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का अधिपति बना दिया और वर मांगने को कहा ।

यह सुनकर बलि ने वर मांगते हुए कहा कि प्रभु आप नित्य मेरे महल में रहें। विष्णु जी को बलि के बंधन में बंधा देख उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी ने बलि को अपना भाई बना लिया और बलि को भगवान को अपने वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया।

मान्यता है कि तब से इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा दिए गए  वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4 – 4 माह पातळ लोक में निवास करते हैं।

विष्णु जी देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक,

भगवान भोलेनाथ जी देवउठानी एकादशी से महाशिवरात्रि तक

और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक पाताल लोक में निवास करते हैं।

शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करता है उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं और व्यक्ति विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करता है।

पद्म पुराण के अनुसार  देवउठानी एकादशी के दिन उपवास करने से जाने अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

इस तरह से मनाएं जन्माष्टमी का पर्व जीवन में लग जायेगा सुखो का अम्बार 

नक्षत्र (Nakshatra) – अनुराधा 3.13 AM, 18 जुलाई तक

नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी-      अनुराधा नक्षत्र के देवता मित्र, भैरव जी तथा स्वामी शनि देव जी है । 

अनुराधा नक्षत्र, नक्षत्र मंडल में उपस्थित 27 नक्षत्रों में 17 वां है। आकाश मंडल में अनुराधा 4 तारों का समूह मंडल है।  

यह एक कमल का फूल जैसा लगता है जो हर परिस्तिथि में खिलने की क्षमता का प्रतीक है। यह सुरक्षा और शक्ति का भी प्रतीक है।

इस नक्षत्र का आराध्य वृक्ष : मौलश्री तथा स्वाभाव शुभ माना गया है। अनुराधा नक्षत्र सितारे का लिंग पुरुष है।  इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक पर शनि और मंगल दोनों ही ग्रहों का प्रभाव हमेशा रहता है।

इस नक्षत्र में जन्मे जातक आकर्षक, बुद्धिमान, बहादुर, परिश्रमी, नेतृत्व करने वाले, भरोसेमंद, ऊर्जावान तथा धार्मिक होते है।

लेकिन शनि – मंगल के शुभ ना होने पर जातक के जीवन में बहुत अस्थिरता रहती है, वह स्वार्थी, कठोर, क्रूर स्वभाव, असंतुष्ट, और बहुत चिंता करने वाला हो सकता है ।

अनुराधा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 8,  भाग्यशाली रंग लाल, सुनहरा और भूरा,  भाग्यशाली दिन  शनिवार, सोमवार और गुरुवार माना जाता है ।

अनुराधा नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को ॐ अनुराधाभ्यो नमः। मन्त्र माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।

जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें, सूर्य देव के नामों का स्मरण करें ।

इस नक्षत्र के जातको को भगवान शिव और विष्णु  जी की पूजा करने से भी शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

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  • योग (Yog) – शुभ 7.05 AM तक तत्पश्चात शुक्ल
  • योग के स्वामी, स्वभाव :- शुभ योग की स्वामी माँ लक्ष्मी जी और स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – वणिज 8.54 AM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-     विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
  • द्वितीय करण : – विष्टि 21.02 PM तक तत्पश्चात बव
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- बुधवार को उत्तर दिशा में दिशा शूल होता है ।

    इस दिन कार्यों में सफलता के लिए घर से सुखा / हरा धनिया या तिल खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal) : – बुधवार को राहुकाल दिन 12:00 से 1:30 तक ।
  • सूर्योदय – प्रातः 5.34 AM
  • सूर्यास्त – सायं 19.20 PM
  • विशेष – एकादशी के दिन सेम फली, चावल का सेवन और दूसरो के अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए ।
  •  एकादशी के दिन चावल खाने से रोग बढ़ते है और दूसरे का अन्न खाने से पुण्य नष्ट होते है ।
  • पर्व त्यौहार- देवशयनी एकादशी

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“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र (नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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