ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )

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शास्त्रों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा हो, उस दिन से नव संवत्सर, nav samvatsar, आरंभ होता है।

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा के दिन से भारतीय नववर्ष अर्थात हिन्दु नव संवत्सर Hindi nav samvatsar की शुरुआत मानी जाती है । धार्मिक ग्रंथो में इस दिन को बहुत पुण्यदायक , शुभ एवं महत्वपूर्ण माना गया है ।

‘चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति’

 ब्रह्म पुराण में लिखे इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पास के सूर्योदय पर सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी और इसी दिन से नव संवतसर, nav samvatsar, प्रारम्भ होता है ।

चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा, 2 अप्रैल शनिवार के दिन विक्रम संवत 2079 का आरंभ हो जाएगा ।

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इस बार संवत्सर 2079 में का नाम संवत्सर नल रहेगा। नवसंवत्सर के राजा शनि देव महाराज और मंत्री गुरुदेव बृहस्पति होंगे।

शास्त्रों के अनुसार नवसंवत्सर का आरंभ जिस वार से होता है, उस वार का अधिपति ग्रह ही उस संवत्सर का राजा कहलाता है। चूँकि इस बार शनिवार के दिन हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ हो रहा है, इसलिए इस संवत्सर के राजा शनि देव जी होंगे

100 साल में 15वीं बार और 10 साल में दूसरी बार नए संवत्सर की शुरुआत शनिवार को हो रही है।

इस नवसंवत्सर में राजा-शनि, मन्त्री-गुरु, सस्येश-सूर्य , दुर्गेश-बुध, धनेश-शनि, रसेश-मंगल, धान्येश-शुक्र , नीरसेश-शनि, फलेश-बुध, मेघेश-बुध होंगे।

इस नवसंवत्सर में संवत्सर का निवास कुम्हार का घर एवं समय का वाहन अश्व अर्थात घोड़ा होगा। शास्त्रों के अनुसार जिस वर्ष में भी समय का वाहन घोड़ा होता है उस वर्ष तेज चक्रवात, भूकंप भूस्खलन आदि से क्षति होने की संभावना बन जाती है साथ ही तेज गति से चलने वाले वाहनों के क्षतिग्रस्त होने की भी संभावना हो जाती है अत: इस संवस्तर में वाहन चलाने में विशेष सावधानी रखनी चाहिए ।

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भविष्यफल भास्कर नामक ग्रन्थ के अनुसार, ‘नल’ संवत्सर में राष्ट्र में वर्षा अच्छी होती है लेकिन राजाओं अर्थात राजनेताओं को कष्ट होता है साथ जी आम जनता को भी ‘चोरों’ का भय होता है।

इस संवत्सर का राजा शनि है, इस विषय में बृहत संहिता के ‘ग्रह वर्ष फलाध्याय’ अध्याय संख्या 19 में लिखित है कि, जिस संवत्सर में शनि देव वर्ष के राजा होते है उस वर्ष में चोरों, डकैतों और अपराधियों का बोलबाला होता है।

संवत्सर का राजा शनि होने के कारण राजनीतिक अस्थिरता, भूकंप, युद्ध, आतंकवाद बढ़ता है, जान-माल के नुकसान की सम्भावना बढ़ जाती है, लोग बीमारी से पीड़ित होते हैं।

शास्त्रो में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को एक स्वयं सिद्ध अमृत तिथि माना गया है । यह दिन इतना शुभ माना गया है कि शास्त्रो में उल्लेखित है कि यदि  इस दिन किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत की जाए या कोई संकल्प लिया जाए तो उसमें अवश्य ही सफलता मिलती है।

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – 1 अप्रैल, 2022 को 11:54 AM बजे से

प्रतिपदा तिथि समाप्त – 2 अप्रैल, 2022 को 11:58 AM बजे तक

महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष या नव-सवंत्सर के आरंभ के दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में पूर्ण हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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नव संवतसर का बहुत ही धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी है।

चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा के दिन ही लगभग एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 120  साल पहले भगवान ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का सृजन किया था।

 शास्त्रो के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का राज्याभिषेक भी इसी शुभ दिन किया गया था ।

इसी दिन से माँ दुर्गा के श्रद्धा, भक्ति और शक्ति के नौ दिन के नवरात्रो की शुरुआत होती है।

चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा अर्थात नव संवत्सर के दिन ही सम्राट विक्रमादित्य ने 2077 साल पहले अपना राज्य स्थापित कर विक्रम संवत की शुरुआत की थी।

 नव संवत्सर के दिन ही विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने भी हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में अपना श्रेष्ठ राज्य स्थापित किया था। इसी दिन से शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ भी माना जाता है ।  

 सिंध प्रांत के प्रसिद्घ समाज सुधारक और सिंधीयो के पराम् पूजनीय वरुणावतार संत झूलेलाल इसी दिन अवतरित हुए थे ।

इस शुभ दिन सिख धर्म के द्वितीय गुरु श्री अंगददेव का जन्म दिवस भी माना जाता है।

 शुभ हिन्दु नव संवत्सर के दिन ही समाज को नयी राह दिखाने के लिए प्रसिद्द समाज सुधारक और विचारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी।

 5123 वर्ष पूर्व युगाब्द संवत्सर के प्रथम दिन ही युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी हुआ था।

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