मंगलवार का पंचांग, Mangalwar Ka Panchang, 19 नवम्बर 2024 का पंचांग,

मंगलवार का पंचांग, Mangalwar Ka Panchang, 19 नवम्बर 2024 का पंचांग,


मंगलवार का पंचांग, Mangalwar Ka Panchang,

Panchang, पंचाग, ( Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)




पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए मंगलवार का पंचांग (Mangalvar Ka Panchang)।

शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
*करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।

आज का पंचांग, Aaj ka Panchangमंगलवार का पंचांग, Mangalvar Ka Panchang,

19 नवम्बर 2024 का पंचांग, 19 November 2024 ka panchang,

हनुमान जी का मंत्र : हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ।

।। आज का दिन मंगलमय हो ।।

*विक्रम संवत् 2081,
*शक संवत – 194
5
*कलि सम्वत 5124
*अयन – 
दक्षिणायन
*ऋतु – शरद
 ऋतु
*मास –
 मार्गशीर्ष माह,
*पक्ष – कृष्ण पक्ष
*चंद्र बल – मेष, मिथुन, सिंह, कन्या, धनु, मकर,

देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन इस उपाय से समस्त मनोकामनाएँ होती है पूर्ण 

मंगलवार को मंगल की होरा :-

प्रात: 6.47 AM से 7.40 AM तक

दोपहर 12.59 PM से 1.52 PM तक

रात्रि 19.39 PM से 8.46 PM तक

मंगलवार को मंगल की होरा में हाथ की निम्न मंगल पर दो बूंद सरसो का तेल लगा कर उसे हल्के हल्के रगड़ते हुए अधिक से अधिक मंगल देव के मन्त्र का जाप करें ।

कृषि, भूमि, भवन, इंजीनियरिंग, खेलो, साहस, आत्मविश्वास

और भाई के लिए मंगल की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

मंगलवार के दिन मंगल की होरा में मंगल देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में मंगल मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

दीपावली के दिन इस तरह से करें पूजा, मां लक्ष्मी, गणेश जी की मिलेगी असीम कृपा, अवश्य जानिए दीपावली की आसान पूजन विधि

मंगल देव के मन्त्र

ॐ अं अंगारकाय नम: अथवा

ॐ भौं भौमाय नम:”

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तिथि :- चतुर्थी 17.28 PM तक तत्पश्चात पंचमी

तिथि के स्वामी :- चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश जी और पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता जी है ।

आज चतुर्थी तिथि है। चतुर्थी तिथि के स्वामी देवताओं में प्रथम पूज्य, भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र भगवान गणेश जी माने गए हैं।

मान्यता है कि किसी भी कार्य के प्रारम्भ में विघ्हर्ता की पूजा आराधना करने से सभी ग्रह दोष शांत होते है ।

चतुर्थी को गणपित जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके, लड्डुओं या गुड़ का भोग लगाकर “ॐ गण गणपतये नम:” मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।

गणेश जी को मोदक / लड्डू, लाल रंग के फूल, दुर्वा (दूब), शमी-पत्र, और केला अति प्रिय है, बुधवार और चतुर्थी को गजानन को यह वस्तुएं अर्पित करने से जीवन में शुभ समय आता है ।

चतुर्थी को गणेश जी की आराधना से किसी भी कार्य में विघ्न नहीं आते है, कार्यो में श्रेष्ठ सफलता मिलती है ।

चतुर्थी को गणेश जी के परिवार के सदस्यों के नामो का स्मरण, उच्चारण करने से भाग्य चमकता है, शुभ समय आता है 

यदि चतुर्थी तिथि यदि गुरुवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है, इस समय में शुभ कार्य करना वर्जित है।

लेकिन यदि चतुर्थी तिथि शनिवार को होती है तो वह सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय में किया गया कार्य सिद्ध होता है।

चतुर्थी तिथि को रिक्ता तिथि कहते है इस दिन शुभ कार्यो का प्रारम्भ शुभ नहीं समझा जाता है ।

किसी भी पक्ष की चतुर्थी तिथि में मूली और बैंगन का सेवन करना मना है। चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है, और चतुर्थी को बैगन खाने से रोग बढ़ते है  ।

 तुलसी जी को “विष्णु प्रिया” कहा गया है, तुलसी विवाह के महत्त्व जानने से समस्त पापो का नाश होता है,

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  • नक्षत्र (Nakshatra) – आद्रा 14.56 PM तक तत्पश्चात पुनर्वसु
  • नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी –  आर्द्रा नक्षत्र के देवता रुद्र (शिव) और नक्षत्र के स्वामी राहु जी है ।

आर्द्रा नक्षत्र आकाश मंडल में छठवां नक्षत्र है। यह मिथुन राशि में आता है और राहु का नक्षत्र है। आर्द्रा नक्षत्र कई तारों का समूह न होकर केवल एक तारा है। इसका आकार हीरे अथवा वज्र अथवा आँसू की तरह है।

आद्रा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष कृष्णागरू,काला तेंदू और नक्षत्र स्वभाव तीक्ष्ण माना गया है ।

आर्द्रा नक्षत्र आकाश मंडल में छठवां नक्षत्र है। यह मिथुन राशि में आता है और राहु का नक्षत्र है। आर्द्रा नक्षत्र कई तारों का समूह न होकर केवल एक तारा है। इसका आकार हीरे अथवा वज्र अथवा आँसू की तरह है।

आर्द्रा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष कृष्णागरू,काला तेंदू और नक्षत्र स्वभाव तीक्ष्ण माना गया है ।

आर्द्रा नक्षत्र में जन्मे जातको पर राहु का प्रभाव रहता है अत: इन्हे राहु का उपाय अवश्य करना चाहिए । इन्हे अनैतिक कार्यो से सदैव दूर रहना चाहिए अन्यथा इन्हे अपमान अपयश का सामना करना पड़ सकता है ।

आर्द्रा नक्षत्र के पुरुष हंसमुख, जिम्मेदार, आकर्षक व्यक्तित्व वाले, नए नए खोजो वाले लेकिन चालाक और अपना काम निकलने वाले होते है। लेकिन यदि बुध और रा‍हु खराब हो तो जातक घमंडी, बुरे विचारों वाले, पराई स्त्री में आसक्त रहने वाले, दुखी स्वाभाव वाले भी होते हैं।

आर्द्रा नक्षत्र में पैदा हुई महिला बुद्विमान, व्यवहार कुशल और शांतिप्रिय होती हैं। यह खूब खर्चा करने वाली, लेकिन हमेशा मीन मेख निकालने वाली भी होती है।

समान्यता इनके माता-पिता में बहुत ही अनबन रहती है, अर्थात इन्हे घर में कलह देखना पड़ता है।

आर्द्रा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 2, 4, 7 और 9, भाग्यशाली रंग, लाल और बैंगनी,  भाग्यशाली दिन मंगलवार तथा गुरुवार का माना जाता है ।

आद्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को तथा सभी मनुष्यों को जिस दिन आर्द्रा नक्षत्र हो उस दिन ॐ रुद्राय नम: मन्त्र की एक माला का जप करना चाहिए, इससे आर्द्रा नक्षत्र के शुभ फल मिलते है ।  

आर्द्रा नक्षत्र के जातक के लिए भगवान शिव की आराधना करना शुभदायक होता है।  भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करना चाहिए. सोमवार का व्रत एवं जाप इत्यादि करना उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है। 

धनतेरस के दिन यह खरीदने से घर से दरिद्रता का होगा नाश, लक्ष्मी जी का होगा वास, इस लिए धनतेरस पर यह अनिवार्य रूप से खरीदें,

नित्य गणेश जी के परिवार के सदस्यों के नामो का स्मरण, उच्चारण करने से भाग्य चमकता है, शुभ समय आता है

  • योग :- साध्य 14.56 PM तक तत्पश्चात शुभ
  • योग के स्वामी :-  साध्य योग की स्वामी देवी सावित्री जी और स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – बालव 17.28 PM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- बालव करण के स्वामी ब्रह्म जी और स्वभाव सौम्य है ।
  • द्वितीय करण : – कौलव 5.02 AM, 20 नवंबर तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-    कौलव करण के स्वामी मित्र और स्वभाव सौम्य है ।
  • गुलिक काल : – दोपहर 12:00 से 01:30 तक है ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- मंगलवार को उत्तर दिशा का दिकशूल होता है।

    यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से गुड़ खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal) दिन – 3:00 से 4:30 तक।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:42
  • सूर्यास्त – सायं 17:29
  • विशेष –  चतुर्थी को मूली का सेवन नहीं करना चाहिए, चतुर्थी को मूली का सेवन करने से धन का नाश होता है  ।
  • पर्व – त्यौहार-

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र (नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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इस बार नवरात्री में माँ दुर्गा अपने इस वाहन पर सवार होकर आएगी और ऐसा रहेगा उसका फल 

ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 7587346995)


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सोमवार का पंचांग, Somwar Ka Panchang, 18 नवम्बर 2024 का पंचांग,

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1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)

पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए, सोमवार का पंचांग, Somvar Ka Panchang।

राशिनुसार इन वृक्षों की करें सेवा, चमकने लगेगा भाग्य ,  

सोमवार का पंचांग, Somvar Ka Panchang,

18 नवम्बर 2024 का पंचांग, 18 November 2024 ka Panchang,

महा मृत्युंजय मंत्र – ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

  • दिन (वार) – सोमवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से पुत्र का अनिष्ट होता है शिवभक्ति को भी हानि पहुँचती है अत: सोमवार को ना तो बाल और ना ही दाढ़ी कटवाएं ।

    सोमवार के दिन भगवान शंकर की आराधना, अभिषेक करने से चन्द्रमा मजबूत होता है, काल सर्प दोष दूर होता है।

सोमवार का व्रत रखने से मनचाहा जीवन साथी मिलता है, वैवाहिक जीवन में लम्बा और सुखमय होता है।

जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए हर सोमवार को शिवलिंग पर पंचामृत या मीठा कच्चा दूध एवं काले तिल चढ़ाएं, इससे भगवान महादेव की कृपा बनी रहती है परिवार से रोग दूर रहते है।

सोमवार के दिन शिव पुराण के अचूक मन्त्र “श्री शिवाये नमस्तुभ्यम’ का अधिक से अधिक जाप करने से समस्त कष्ट दूर होते है. निश्चित ही मनवाँछित लाभ मिलता है।

घर पर कैसा भी हो वास्तु दोष अवश्य करें ये उपाय, जानिए वास्तु दोष निवारण के अचूक उपाय

*विक्रम संवत् 2081,
* शक संवत – 1945,
*कलि संवत 5124
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – मार्गशीर्ष माह,
* पक्ष – कृष्ण पक्ष
*चंद्र बल – मेष, मिथुन, सिंह, कन्या, धनु, मकर,

सोमवार को चन्द्रमा की होरा :-

प्रात: 6.46 AM से 7.39 AM तक

दोपहर 12.59 PM से 1.52 PM तक

रात्रि 7.39 PM से 8.46 PM तक

सोमवार को चन्द्रमा की होरा में अधिक से अधिक चन्द्र देव के मन्त्र का जाप करें। यात्रा, प्रेम, प्रसन्नता, कला सम्बन्धी कार्यो के लिए चन्द्रमा की होरा अति उत्तम मानी जाती है।

देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी 4 माह की योग निद्रा से जागते है, इस दिन इस उपाय से समस्त मनोकामनाएँ होती है पूर्ण 

सोमवार के दिन चन्द्रमा की होरा में चंद्रदेव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में चंद्र देव मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

चन्द्रमा के मन्त्र

ॐ सों सोमाय नम:।

ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम: ।

अवश्य जानिए :- माँ लक्ष्मी की कृपा चाहिए तो अवश्य करें नित्य श्री सूक्त का जाप, करें श्री सूक्त का जाप हिंदी में सिर्फ 5 मिनट में

  • तिथि (Tithi) – तृतीया 18.55 PM तक तत्पश्चात चतुर्थी
  • तिथि का स्वामी – तृतीया तिथि की स्वामी माँ गौरी और कुबेर देव जी और चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश जी है ।
  • तृतीया: किसी भी पक्ष की तीसरी तारीख को तृतीया तिथि या तीज कहते है।  तृतीया तिथि को जया तिथि भी कहा गया है।
  • अपने नाम के अनुसार ही यह तिथि सभी शुभ कार्यों में जय दिलाने अर्थात सफलता दिलाने वाली कही गई है। लेकिन बुधवार को तृतीया तिथि होने से मृत्युदा कहलाती है, इसलिए बुधवार की तृतीया को कोई भी नया कार्य शुरु करना शुभ नहीं माना जाता  है।
  • तृतीया तिथि में माँ गौरी जी की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है। तृतीया के दिन माँ गौरी का ध्यान करते हुए उन्हें दूध की मिठाई, फूल और चावल अर्पित करें एवं श्रद्धानुसार घी का दीपक जलाकर ’’ऊँ गौर्ये नमः’’ की एक माला का अवश्य ही जाप करें । 
  • कुबेर जी भी तृतीया तिथि के स्वामी माने गये हैं। शास्त्रों के अनुसार कुबेर जी देवताओं के कोषाध्यक्ष है अतः इस दिन इनकी भी पूजा करने से जातक को विपुल धन-धान्य, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
  • कुबेर देव रावण के सौतेले भाई है और या भगवान शिव जी के प्रिय सेवक , परम मित्र भी माने जाती है। घर में कुबेर देवता की फोटो को उत्तर दिशा की ओर लगाना चाहिए  और इस दिशा को बिलकुल साफ रखना चाहिए । 
  • शास्त्रों के अनुसार जो भी जातक किसी भी पक्ष की तृतीया को घी का दीपक जलाकर नियम से नीचे दिए गए कुबेर मंत्र का जप दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करता है उसे कुबेर देव की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है, उसे अपने कार्यक्षेत्र , व्यापार में आशातीत सफलता मिलती है। 
  • कुबेर मंत्र: “ऊँ श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं, ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:”। यदि इस मंत्र का जप किसी शिव मंदिर में अथवा बिल्वपत्र वृक्ष की जड़ों के समीप बैठकर करा जाये तो या बहुत अधिक उत्तम होता है, उस जातक को भगवान भोलेनाथ और कुबेर जी दोनों की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है ।
  • तृतीया को परवल का सेवन नहीं करना चाहिए, तृतीया को परवल का सेवन करने से शत्रुओं में वृद्धि होती है ।
  • तुलसी विवाह का पुण्य लिखने में देवता भी असमर्थ है, जानिए कैसे होता है तुलसी जी और शालिग्राम जी का विवाह,

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आज संकट चतुर्थी या संकष्टी चतुर्थी  है । प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकट चतुर्थी कहते है।

इस दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना, संकट चतुर्थी का व्रत सभी प्रकार के संकटो से रक्षा होती है।

अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी तो पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत का दिन, उस दिन के चन्द्रोदय के आधार पर निर्धारित किया जाता है। जिस चतुर्थी तिथि के दिन चन्द्र उदय होता है, संकष्टी चतुर्थी का व्रत भी उसी दिन रखा जाता है।

संकष्टी चतुर्थी के दिन शाम को चंद्रोदय के बाद गणेश जी और चंद्र देव जी की पूजा की जाती है   ।  यदि उस दिन  बादल के कारण  चन्द्रमा नहीं दिखाई देता है तो, पंचांग के अनुसार चंद्रोदय के समय में पूजा कर लेना चाहिए ।

आज गणेश जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके, लड्डुओं या गुड़ का भोग लगाकर “ॐ गण गणपतये नम:” मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।

चतुर्थी को गणेश जी की आराधना से किसी भी कार्य में विघ्न नहीं आते है ।

चतुर्थी को गणेश जी के परिवार के सदस्यों के नामो का स्मरण, उच्चारण करने से भाग्य चमकता है, शुभ समय आता है

चतुर्थी तिथि को रिक्ता तिथि कहते है इस दिन शुभ कार्यो का प्रारम्भ शुभ नहीं समझा जाता है ।

किसी भी पक्ष की चतुर्थी तिथि में मूली और बैंगन का सेवन करना मना है। चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है, और चतुर्थी को बैगन खाने से रोग बढ़ते है  ।

नक्षत्र (Nakshatra) – मृगशिरा 15.49 PM तक तत्पश्चात आद्रा

  • नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी- मृगशिरा नक्षत्र के देवता ‘चंद्र देव’ एवं नक्षत्र स्वामी: ‘मंगळ देव’ जी है । 

नक्षत्रों के गणना क्रम में मृगशिरा नक्षत्र का स्थान पांचवां है। इस नक्षत्र का स्वामी मंगल होने के कारण इस नक्षत्र में जन्मे जातको पर मंगल का प्रभाव अधिक रहता है। यह नक्षत्र एक हिरण के सिर जैसा प्रतीत होता है।

इस नक्षत्र का आराध्य वृक्ष खैर तथा स्वाभाव शुभ माना जाता है। मृगशिरा नक्षत्र सितारा का लिंग तटस्थ है।

चन्द्रमा का असर होने के कारण इस राशि के जातक कल्पनाशील, भावुक, सौंदर्य प्रेमी, बुद्धिमान, परिश्रमी, उत्साहीऔर ज्ञानवान होते हैं।

लेकिन आप लोगो पर शक बहुत करते है, व्यापार में साझेदारी करने से इन्हे अधिकतर नुकसान ही उठाना पड़ता है । इस नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ हंसमुख, धनवान, जीवन साथी के प्रति समर्पित लेकिन उस पर हावी रहती है ।

मृगशिरा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 9, भाग्यशाली रंग, चमकीला भूरा, कत्थई रंग,  भाग्यशाली दिन मंगलवार तथा गुरुवार का माना जाता है ।

मृगशिरा नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ चन्द्रमसे नम:” मन्त्र की एक माला का जाप करना चाहिए ।

मॄगशिरा नक्षत्र के जातको को माँ पार्वती की आराधना अत्यंत शुभ फलदाई है ।  मॄगशिरा नक्षत्र के दिन चावल और दही के दान से भी इस नक्षत्र के अशुभ फलो को दूर किया जा सकता है ।

अगर पश्चिम मुख का है आपका घर तो ऐसा रहना चाहिए आपके घर का वास्तु, जानिए पश्चिम दिशा के अचूक वास्तु टिप्स 
  • योग(Yog) – सिद्ध 17.22 PM तक तत्पश्चात साध्य
  • योग के स्वामी :-    सिद्ध योग के स्वामी भगवान कार्तिकेय जी और स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – वणिज 07.56 AM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-     वणिज करण की स्वामी लक्ष्मी देवी और स्वभाव सौम्य है ।

    अवश्य पढ़ें :- कुंडली में केतु अशुभ हो तो आत्मबल की होती है कमी, भय लगना, बुरे सपने आना, डिप्रेशन का होता है शिकार, केतु के शुभ फलो के लिए करे ये उपाय
  • द्वितीय करण : – विष्टि 18.55 PM तक तत्पश्चात बव
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
  • गुलिक काल : – दोपहर 1:30 से 3 बजे तक ।
  • विशेष – तृतीया तिथि को परवल का सेवन नहीं करना चाहिए, तृतीया तिथि को परवल का सेवन करने से शत्रुओं में वृद्धि होती है ।
  • पर्व त्यौहार- संकष्टी चतुर्थी
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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आप पर ईश्वर की असीम अनुकम्पा की वर्षा होती रहे ।

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ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168)


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रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag, 17 नवम्बर का पंचांग 2024 का पंचांग,

रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag, 17 नवम्बर का पंचांग 2024 का पंचांग,

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रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag,

17 नवम्बर 2024 का पंचांग17 November 2024 ka Panchang,

अवश्य पढ़ें :-  मनचाही नौकरी चाहते हो, नौकरी मिलने में आती हो परेशानियाँ  तो अवश्य करें ये उपाय 

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1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)



पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे । जानिए रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang।

रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang,
17 नवम्बर 2024 का पंचांग
17 November 2024 ka Panchang,

जानिए नवरात्री में कन्या पूजन में माता के किन किन स्वरूपों की पूजा की जाती है

इस लक्ष्मी मंदिर में विश्व में सबसे ज्यादा सोना लगा है, जानिए कहाँ और कैसा है माँ लक्ष्मी का यह अद्भुत मंदिर,

भगवान सूर्य जी का मंत्र : ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।
।। आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो ।।

👉🏽दिन (वार) रविवार को की गई सूर्य पूजा से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन उगते हुए सूर्य को देव को एक ताबें के लोटे में जल, चावल, लाल फूल और रोली डालकर अर्ध्य करें।

इस दिन आदित्य ह्रदय स्रोत्र का पाठ करें एवं यथा संभव मीठा भोजन करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य देव को जल देने से पितृ कृपा भी मिलती है।

घर पर कैसा भी हो वास्तु दोष अवश्य करें ये उपाय, जानिए वास्तु दोष निवारण के अचूक उपाय

रविवार के दिन भैरव जी के दर्शन, आराधना से समस्त भय और संकट दूर होते है, साहस एवं बल की प्राप्ति होती है । अत: रविवार के दिन मंदिर में भैरव जी के दर्शन अवश्य करें ।

रविवार के दिन भैरव जी के मन्त्र ” ॐ काल भैरवाय नमः “ या ” ॐ श्री भैरवाय नमः “ की एक माला जाप करने से समस्त संकट, भय दूर होते है, रोगो, अकाल मृत्यु से बचाव होता है, मनवांछित लाभ मिलता है।

धनतेरस के दिन इस उपाय से पूरे वर्ष होगा प्रचुर मात्रा में धन लाभ, धनतेरस के दिन अवश्य करें ये उपाय

*विक्रम संवत् 2081,
* शक संवत – 1945,
*कलि संवत 5124
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – मार्गशीर्ष माह
* पक्ष – कृष्ण पक्ष
* चंद्र बल – मेष, मिथुन, सिंह, कन्या, धनु, मकर,

रविवार को सूर्य देव की होरा :-

प्रात: 6.45 AM से 7.39 AM तक

दोपहर 12.59 PM से 01.52 PM तक

रात्रि 19.39 PM से 8.46 PM तक

रविवार को सूर्य की होरा में अधिक से अधिक अनामिका उंगली / रिंग फिंगर पर थोड़ा सा घी लगाकर मसाज करते हुए सूर्य देव के मंत्रो का जाप करें ।

सुख समृद्धि, मान सम्मान, सरकारी कार्यो, नौकरी, साहसिक कार्यो, राजनीती, कोर्ट – कचहरी आदि कार्यो में सफलता के लिए रविवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

रविवार के दिन सूर्य देव की होरा में सूर्य देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

भाई दूज के दिन अवश्य पढ़िए यह कथा, रोग, अकाल मृत्यु से होगा बचाव, पूरे वर्ष सुख – सौभाग्य की होगी प्राप्ति

अवश्य जानिए देव दीपावली किस दिन मनाई जाएगी, देव दीपावली क्यों मनाते है 

सूर्य देव के मन्त्र :-

ॐ भास्कराय नमः।।

अथवा

ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।

  • तिथि (Tithi) – द्वितीया 21.06 PM तक तत्पश्चात तृतीया
  • तिथि के स्वामी :- द्वितीया तिथि के स्वामी भगवान ब्रह्मा जी और तृतीया तिथि के स्वामी माँ गौरी और कुबेर देव जी है ।
  • द्वितीया तिथि के स्वामी सृष्टि के रचियता भगवान ‘ब्रह्मा’ जी हैं। इसका विशेष नाम ‘सुमंगला’ है। यह भद्रा संज्ञक तिथि है।
  • सोमवार और शुक्रवार को द्वितीया तिथि मृत्युदा होती है।
  • लेकिन बुधवार के दिन दोनों पक्षों की द्वितीया में विशेष सामर्थ होता है और यह सिद्धिदा हो जाती है, अर्थात इसमें किये गये सभी कार्य शुभ और सफल होते हैं।
  • द्वितीया तिथि को चारो वेदो के रचियता ब्रह्मा जी का स्मरण करने से कार्य सिद्ध होते है।
  • व्यासलिखित पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के चार मुख हैं, जो चार दिशाओं में देखते हैं। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा को स्वयंभू (स्वयं जन्म लेने वाला) और चार वेदों का निर्माता माना गया है।
  • ब्रह्मा जी की उत्पत्ति विष्णु की नाभि से निकले कमल से मानी गयी है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी के एक मुँह से हर वेद निकला था।
  • देवी सावित्री ब्रह्मा जी की पत्नी, माँ सरस्वती ब्रह्मा जी की पुत्री, सनकादि ऋषि,नारद मुनि और दक्ष प्रजापति इनके पुत्र और इनका वाहन हंस है।
  • ब्रह्मा जी ने अपने चारो हाथों में क्रमश: वरमुद्रा, अक्षरसूत्र, वेद तथा कमण्डलु धारण किया है।
  • द्वितीया तिथि को ब्रह्मचारी ब्राह्मण की पूजा करना एवं उन्हें भोजन, अन्न, वस्त्र आदि का दान देना बहुत शुभ माना गया है।
  • भारत के राजस्थान के पुष्कर में ब्रह्मा जी का विश्व प्रसिद्द मंदिर है, ब्रह्मा जी की पूजा भारत में केवल यहीं पुष्कर तीर्थ के ब्रह्मा मंदिर में ही की जाती है । यहाँ पर ब्रह्मा जी के दर्शन पूजा से समस्त कार्य सिद्ध होने लगते है ।
  • ऐसा माना जाता है कि पुष्कर तीर्थ को स्वयं सृष्टि के हिंदू देवता ब्रह्मा द्वारा निर्मित किया गया था । इस तीर्थ में हर साल लाखो हिन्दू ब्रह्मा जी के दर्शन, उनकी पूजा करने के लिए आते है ।
  • शुक्ल पक्ष की द्वितीया में भगवान शंकर जी माँ पार्वती के संग होते हैं इसलिए भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।
  • लेकिन कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान शंकर की पूजा करना उत्तम नहीं माना जाता है।

    अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए नवरात्री में अवश्य करें ये उपाय  

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  • नक्षत्र (Nakshatra) – रोहिणी 17.22 PM तक तत्पश्चात मृगशिरा
  • नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी-         रोहिणी नक्षत्र के देवता ब्रम्हा और स्वामी चंद्र देव जी है ।  

रोहिणी नक्षत्र, नक्षत्रों के क्रम में चौथे स्थान पर है तथा चंद्रमा का केंद्र माना जाता है। ‘रोहिणी’ का अर्थ ‘लाल’ होता है। इसे आकाश में सबसे चमकीले सितारों में से एक माना जाता है।

 यह 5 तारों का समूह है, जो धरती से किसी भूसा गाड़ी की तरह दिखाई देता है।

रोहिणी नक्षत्र का आराध्य वृक्ष जामुन और स्वभाव शुभ माना गया है ।

 पुराण कथा के अनुसार रोहिणी चंद्र की सत्ताईस पत्नियों में सबसे सुंदर, तेजस्वी, सुंदर वस्त्र धारण करने वाली है। ज्यों-ज्यों चंद्र रोहिणी के पास जाता है, त्यों-त्यों उसका रूप अधिक खिल उठता है।

इस नक्षत्र के जातक पतले, मिलनसार, दृढ़ निश्चयी, बुद्धिशाली, यशवान, ललित कलाओं के प्रेमी, ईश्वर में आस्था रखने वाले, किन्तु झूठ बोलने वाले, स्वार्थी होते है।

रोहिणी नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ सुंदर, भाग्यशाली, पति से प्रेम करने वाली, माता-पिता की आज्ञाकारी, योग्य संतान वाली और ऐश्वर्यवान होती है।

रोहिणी नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 1, 2, 3, 6 और 9, भाग्यशाली रंग सफेद, पीला और नीला तथा भाग्यशाली दिन शनिवार, शुक्रवार और बुधवार है।

आज रोहिणी नक्षत्र के बीज मंत्र “ऊँ ऋं ऊँ लृं” अथवा “ॐ रौहिण्यै नमः”  l  का 108 बार जाप करें इससे रोहिणी नक्षत्र को बल मिलेगा।  

रोहिणी नक्षत्र में घी, दूध, का दान करना चाहिए।


घर के बैडरूम में अगर है यह दोष तो दाम्पत्य जीवन में आएगी परेशानियाँ, जानिए बैडरूम के वास्तु टिप्स

  • योग (Yog) – शिव 20.21 PM तक तत्पश्चात सिद्ध
  • योग के स्वामी :-     शिव योग के स्वामी मित्र देव एवं स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – तैतिल 10.24 AM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- तैतिल करण के स्वामी विश्वकर्मा जी और स्वभाव सौम्य है ।
  • द्वितीय करण : – गर 21.06 PM तक तत्पश्चात वणिज
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- गर करण के स्वामी भूमि तथा स्वभाव सौम्य है ।
  • गुलिक काल : – अपराह्न – 3:00 से 4:30 तक ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- रविवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से पान या घी खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सायं – 4:30 से 6:00 तक ।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:45
  • सूर्यास्त – सायं 17:27

    आँखों की रौशनी बढ़ाने, आँखों से चश्मा उतारने के लिए अवश्य करें ये उपाय

  • विशेष – रविवार को बिल्ब के वृक्ष / पौधे की पूजा अवश्य करनी चाहिए इससे समस्त पापो का नाश होता है, पुण्य बढ़ते है।

    रविवार के दिन भगवान सूर्य देव को आक का फूल अर्पण करना किसी भी यज्ञ के फल से कम नहीं है, इससे सूर्य देव की सदैव कृपा बनी रहती है ।

    रविवार को अदरक और मसूर की दाल का सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।

  • द्वितीया को बैगन, कटहल और नींबू का सेवन नहीं करना चाहिए ।
  • पर्व त्यौहार-
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत शुभ फलो वाला हो ।

मित्रो हम इस साईट के माध्यम से वर्ष 2010 से निरंतर आप लोगो के साथ जुड़े है। आप भारत या विश्व के किसी भी स्थान पर रहते है, अपने धर्म अपनी संस्कृति को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए www.memorymuseum.net के साथ अवश्य जुड़ें, हमारा सहयोग करें ।


आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

17 नवम्बर 2024 का पंचांग, 17 November 2024 ka panchang, aaj ka panchang, aaj ka rahu kaal, aaj ka shubh panchang, panchang, Ravivar Ka Panchang, ravivar ka rahu kaal, ravivar ka shubh panchang, sunday ka panchang, Sunday ka rahu kaal, आज का पंचांग, आज का राहुकाल, आज का शुभ पंचांग, पंचांग, रविवार का पंचांग, रविवार का राहु काल, रविवार का शुभ पंचांग, संडे का पंचांग, संडे का राहुकाल,

ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 94252 03501
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 7587346995)

दोस्तों यह साईट बिलकुल निशुल्क है। यदि आपको इस साईट से कुछ भी लाभ प्राप्त हुआ हो, आपको इस साईट के कंटेंट पसंद आते हो तो मदद स्वरुप आप इस साईट को प्रति दिन ना केवल खुद ज्यादा से ज्यादा विजिट करे वरन अपने सम्पर्कियों को भी इस साईट के बारे में अवश्य बताएं …..धन्यवाद ।

शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchang, 16 नवंबर 2024 का पंचांग,

शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchang, 16 नवंबर 2024 का पंचांग,


Shaniwar Ka Panchang, शनिवार का पंचांग, 16 November 2024 ka Panchang,

  • Panchang, पंचाग, ( Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)


पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang), आज का पंचांग, aaj ka panchang,।

  • शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang, )

    16 नवंबर
     2024 का पंचांग, 16 November 2024 ka Panchang,
  • दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से आयु का नाश होता है । अत: शनिवार को बाल और दाढ़ी दोनों को ही नहीं कटवाना चाहिए।
  • शनिवार के दिन पीपल के नीचे हनुमान चालीसा पड़ने और गायत्री मन्त्र की àएक माला का जाप करने से किसी भी तरह का भय नहीं रहता है, समस्त बिग़डे कार्य भी बनने लगते है ।

* विक्रम संवत् 2081,
* शक संवत – 1946,
* कलि संवत 5126,
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – 
मार्गशीर्ष माह,
* पक्ष – 
कृष्ण पक्ष,
*चंद्र बल – वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन,

शनिवार को शनि महाराज की होरा :-

प्रात: 6.44 AM से 7.38 AM तक

दोपहर 12.59 PM से 1.52 PM तक

रात्रि 19.39 PM से 8.46 PM तक

शनिवार को शनि की होरा में अधिक से अधिक शनि देव के मंत्रो का जाप करें । श्रम, तेल, लोहा, नौकरो, जीवन में ऊंचाइयों, त्याग के लिए शनि की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

शनिवार के दिन शनि की होरा में शनि देव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शनि ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

ऐसे मनाएं गोवर्धन पूजा का पर्व, भगवान श्री कृष्ण की मिलेगी असीम कृपा, धन – धान्य की कभी नहीं होगी कोई कमी

शनि देव के मन्त्र :-

ॐ शं शनैश्चराय नमः।

अथवा

ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।।

  • तिथि (Tithi)- प्रतिपदा 23.50 PM तक तत्पश्चात द्वितीया ।
  • तिथि का स्वामी – प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि देव जी और द्वितीया तिथि के स्वामी भगवान ब्रह्मा जी है ।

आज प्रतिपदा है । प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि देव हैं। प्रतिपदा को आनंद देने वाली कहा गया है।

रविवार एवं मंगलवार के दिन प्रतिपदा होने पर मृत्युदा होती है, लेकिन शुक्रवार को प्रतिपदा सिद्धिदा हो जाती है।

अग्नि देव इस पृथ्वी पर साक्षात् देवता हैं, देवताओं में सर्वप्रथम अग्निदेव की उत्पत्ति हुई थी । ऋग्वेद का प्रथम मंत्र एवं प्रथम शब्द अग्निदेव की आराधना से ही प्रारम्भ होता है।

हिन्दू धर्म ग्रंथो में  देवताओं में प्रथम स्थान अग्नि देव का ही दिया  गया  है। अग्नि देव सोने के भगवान के रूप में वर्णित है।

पुराणों में आठ दिशाओं के आठ रक्षक देवता हैं जिन्हें अष्ट-दिक‌्पाल कहते हैं। इनमें दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा के रक्षक अग्निदेव हैं। इसीलिए अग्निदेव की प्रतिमा मंदिर के दक्षिण-पूर्वी कोण में स्थापित होती है।

पौराणिक युग में अग्नि देव के ऊपर अग्नि पुराण नामक एक ग्रन्थ भी रचित हुआ। अग्निदेव सब देवताओं के मुख हैं और यज्ञ में इन्हीं के द्वारा देवताओं को समस्त यज्ञ-वस्तु प्राप्त होती है। 

अग्निदेव में प्रेम पूर्वक ‘‘स्वाहा‘‘ कहकर दी हुई आहुतियों को अग्नि देव अपनी सातो जिह्वाओं से ग्रहण करते है, इससे  तीनो देव ब्रह्मा – विष्णु – महेश तथा समस्त देव स्वत: ही तृप्त हो जाते है ।


अग्नि देव की पत्नी का नाम स्वाहा हैं जो कि दक्ष प्रजापति तथा आकूति की पुत्री थीं। अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र और पुत्र-पौत्रों की संख्या उनंचास है।

प्रतिपदा तिथि के दिन अग्नि देव के मन्त्र “ॐ अग्नये स्वाहा” का जाप अवश्य ही करें । शास्त्रों में अग्निदेव का बीजमन्त्र “रं” तथा मुख्य मन्त्र “रं वह्निचैतन्याय नम:” है।

शास्त्रों के अनुसार अग्नि देव की उपासना से धन, धान्य, यश, शक्ति, सुख – समृद्धि प्राप्त होती है, परिवारिक सुख मिलता है । 

भाई दूज के दिन अवश्य पढ़िए यह कथा, रोग, अकाल मृत्यु से होगा बचाव, पूरे वर्ष सुख – सौभाग्य की होगी प्राप्ति

अवश्य पढ़ें :- जानिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसा रहना चाहिए आपका बाथरूम, अवश्य जानिए बाथरूम के वास्तु टिप्स

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छोटी दीपावली पर अवश्य ही करे ये उपाय, पूरे वर्ष होती रहेगी धन की वर्षा

नक्षत्र (Nakshatra) – कृतिका 19.28 PM तक तत्पश्चात रोहिणी

नक्षत्र के स्वामी :-        कृतिका नक्षत्र के देवता अग्नि देव और स्वामी सूर्य देव जी है ।

कृत्तिका नक्षत्र आकाश मंडल में तीसरा नक्षत्र है जो सात सितारों के एक समूह,आग को दर्शाता है और इसे शक्ति और ऊर्जा का अंतिम स्रोत माना जाता है। यह नक्षत्र भगवान अग्नि देव द्वारा शासित है ।

 कृत्तिका नक्षत्र स्टार का लिंग मादा है। कृतिका नक्षत्र का तत्व अग्नी, आराध्य वृक्ष उंबर, औदुंबर और नक्षत्र स्वभाव क्रूर माना गया है ।

कृतिका नक्षत्र में जन्मे जातक तेजस्वी, सुन्दर, महत्वाकांक्षी, गुणवान, आत्मवश्वासी एवं धर्म पर पूर्ण विश्वास रखने वाले होते हैं। कृतिका नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति विलासता जीवन जीने में विश्वास रखता हैं। यह बड़ी ही आसानी से विपरीत लिंग को आकर्षित कर लेते हैं। इनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।

इनकी सबसे बड़ी कमजोरी इनका जिद्दीपन है और यह कई बार बहुत ही जल्दी लड़ने पर भी उतारू हो जाते है ।

कृत्तिका नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 1, 2, 3 और 9, भाग्यशाली रंग पीला और लाल , भाग्यशाली दिन मंगलवार और रविवार होता है ।

कृतिका नक्षत्र में जन्मे जातको को नित्य तथा अन्य सभी को आज गायत्री मन्त्र  “ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्॥” मन्त्र की एक माला का जाप करना चाहिए इससे जीवन की सभी बाधाएं दूर होती है।

कृत्तिका नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को  गूलर के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और अपने  घर अथवा मंदिर में गूलर के पेड को लगाकर उसकी सेवा करनी चाहिए ।

धनतेरस के दिन यह खरीदने से घर से दरिद्रता का होगा नाश, लक्ष्मी जी का होगा वास, इस लिए धनतेरस पर अवश्य ही यह अनिवार्य रूप से खरीदें,

अगर 50 की जगह 25, 60 की जगह 30 की उम्र चाहते है, जीवन में डाक्टर के पास ना जाना हो तो अवश्य करे ये उपाय   

  • योग (Yog) – परिध 23.48 PM तक तत्पश्चात शिव
  • योग के स्वामी, स्वभाव :-   परिध योग की स्वामी विश्वकर्मा जी एवं स्वभाव हानिकारक माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – बालव 13.21 PM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-    बालव करण के स्वामी ब्रह्म जी और स्वभाव सौम्य है ।
  • द्वितीय करण : – कौलव 23.50 PM तक तत्पश्चात तैतिल
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-   कौलव करण के स्वामी मित्र और स्वभाव सौम्य है । ।
  • गुलिक काल : – शनिवार को शुभ गुलिक प्रातः 6 से 7:30 बजे तक ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- शनिवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है ।

    यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से अदरक खाकर, घी खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सुबह – 9:00 से 10:30 तक।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:45 AM
  • सूर्यास्त – सायं 17:27 PM
  • विशेष – प्रतिपदा के दिन कद्दू  /  पेठे का सेवन नहीं करना चाहिए, प्रतिपदा के दिन इनका सेवन करने से धन की हानि होती है ।


अवश्य पढ़ें :-राशिनुसार इन वृक्षों की करें सेवा, चमकने लगेगा भाग्य,

  • पर्व त्यौहार-
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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अगर नित्य पंचाग पढ़ने से आपको लाभ मिल रहा है, आपका आत्मविश्वास बढ़ रहा है, आपका समय आपके अनुकूल हो रहा है तो आप हमें अपनी इच्छा – सामर्थ्य के अनुसार कोई भी सहयोग राशि 9425203501 पर Google Pay कर सकते है ।

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आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501
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कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व, kartik purnima ka mahatwa, kartik purnima 2024,


कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व, kartik purnima ka mahatwa, kartik purnima 2024,

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कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व, kartik purnima ka mahatwa,

सृष्टि के प्रारम्भ से ही कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima की तिथि बड़ी ही खास रही है। पुराणों में कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima को स्नान,व्रत, तप एवं दान को मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है।

इस माह के महत्व के बारे में स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है ।

पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा तिथि शुक्रवार 15 नवंबर को सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर शुरू हो रही है जो शनिवार 16 नवंबर को सुबह तड़के 3 बजे तक रहेगी ।

इसलिए उदयातिथि के आधार पर कार्तिक पूर्णिमा का पर्व शुक्रवार 15 नवंबर को मनाया जायेगा ।

जानिए कार्तिक पूर्णिमा, Kartik Purnima, कार्तिक पूर्णिमा का महत्व, Kartik Purnima ka mahatwa ।

भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास की व्याख्या करते हुए कहा है,‘पौधों में तुलसी , मासों में कार्तिक , दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के सबसे निकट है।’ इसीलिए इस मास में भगवान श्री नारायण के साथ तुलसी और शालीग्राम के पूजन से भी असीम पुण्य प्राप्त होता है ।

अवश्य पढ़ें :-  मनचाही नौकरी चाहते हो, नौकरी मिलने में आती हो परेशानियाँ  तो अवश्य करें ये उपाय 

इस पवित्र माह में की पूजा, व्रत दान और नित्य सुबह स्नान से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima में किए स्नान का फल,

# एक हजार बार किए गंगा स्नान के समान,
# सौ बार माघ स्नान के समान,
# वैशाख माह में नर्मदा नदी पर करोड़ बार स्नान के समतुल्य होता है।

# जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह की पूर्णिमा Kartik Maah ki Purnima में किसी भी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से प्राप्त होता है।

कार्तिक मास की पूर्णिमा Kartik Maah ki Purnima का बहुत ही ज्यादा महत्व है। कार्तिक मास की पूर्णिमा Kartik Maah ki Purnima को कार्तिक पूर्णिमा / त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है।

क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे,

इसीलिए इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से मनुष्य अगले सात जन्म तक ज्ञानी, धनवान और भाग्यशाली होता है।

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इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय या उसके बाद रात्रि में कभी भी शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं के नाम का 21 बार उच्चारण करते हुए इनका पूर्ण श्रद्धा से पूजन करने से जातक को भगवान शिव जी की अनुकम्पा प्राप्त होती है, जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं होता है।


इन 6 कृतिकाओं ने ही भगवान शिव और माँ पारवती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को जन्म दिया था और उनका पालन पोषण किया था। शास्त्रों के अनुसार कार्तिकेय का जन्म 6 अप्सराओं के 6 अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे 6 अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे।


शास्त्रों में कई जगह इन 6 कृतिकाओं को 6 सप्तऋषियों की पत्नियों के रूप में माना गया है। इन्हे भगवान कार्तिकेय के आदेशानुसार ही नक्षत्रमण्डल में स्थान प्राप्त हुआ है ( महाभारत वनपर्व के मार्कण्डेयसमास्यापर्व के अंतर्गत अध्याय 230 में वर्णित। )

कार्तिक पूर्णिमा Kartik Maah के दिन इन कृतिकाओं का नाम लेकर स्मरण करने से पूरे वर्ष घर परिवार में प्रेम और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

शास्त्रो में कार्तिक पूर्णिमा को बहुत मान्यता है इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहते है।

यदि इस पूर्णिमा Purnima के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।

अगर कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima के दिन रोहिणी नक्षत्र है तो इस पूर्णिमा का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है, यह अति शुभ मानी जाती है।

इस समय भगवान सत्य नारायण की कथा महा फलदाई है।

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इस दिन सांयकाल घर को दिये / रौशनी से सजाने से भगवान श्री विष्णु जी के साथ साथ माँ लक्ष्मी की भी स्थाई कृपा प्राप्त होगी।

और अगर इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह पूर्णिमा महापूर्णिमा कहलाती है।

और अगर इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो पद्मक योग का निर्माण होता है जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर स्नान से भी अधिक श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है।

इस दिन गंगा / पवित्र नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।

पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में धर्म, वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था।

इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को पुन: उठते हैं और पूर्णिमा से कार्यरत हो जाते हैं।

कार्तिक माह की देवोत्थान एकादशी के दिन लक्ष्मी की अंशरूपा तुलसी जी का का विवाह विष्णु स्वरूप शालिग्राम से होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी जी की विदाई होती है । इन्ही सब खुशियों के कारण देवता स्वर्गलोक में दिवाली मनाते हैं इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima के दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, यज्ञ, अपनी समर्थानुसार पूर्ण श्रद्धा के साथ दान और गरीबों को भोजन आदि करने से सभी सांसारिक पापों से छुटकारा मिलता है|

इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन और वस्त्र दान का भी बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है।

कहते है कि इस दिन जो भी दान किया जाता हैं हमें उसका अनंत गुना लाभ मिलता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ भी दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।

इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है, इस दान से भगवान श्री हरि अत्यंत प्रसन्न होते है । क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें सोने या चाँदी की मछली डालकर किया जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद भगवान श्री सत्यनारायण के व्रत की कथा अवश्य ही सुननी चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान श्री हरि की गंध, अक्षत, पीले लाल पुष्प, नारियल, पान, सुपारी, कलावा, तुलसी, आंवला, दूर्वा, शमी पत्र,पीपल के पत्तों एवं गंगाजल से पूजन करने से व्यक्ति को जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता है। वह इस लोक में समस्त सांसारिक सुखों को भोगते हुए अंत में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

इस दिन सायंकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाए जाते हैं और गंगाजी / नदियों को भी दीपदान किया जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रत्येक मनुष्य को दीपदान अनिवार्य रूप से करना चाहिए। स्कन्द पुराण में ब्रह्मा जी ने नारद जी को कार्तिक मास में दीपदान की महिमा के बारे में विस्तार से बताया है।

उनके अनुसार कार्तिक माह में दीपदान से राजसुय यज्ञ और अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। उसमें भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान करने का पुण्य जन्म जन्मांतर तक अक्षय रहता है। पूरे वंश में किसी को भी नरक का मुँह नहीं देखना पड़ता है।

इस दिन संध्याकाल में जो लोग अपने घरों को दीपक जला कर सजाते है उनका जीवन सदैव आलोकित प्रकाश से प्रकाशित होता है उन्हें अतुल लक्ष्मी, रूप, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है, माँ लक्ष्मी ऐसे लोगो के घरों में स्थाई रूप से सदैव निवास करती है ।

इसीलिए इस दिन हर जातक को अपने घर के आँगन, मंदिर, तुलसी, नल के पास, छतों और चारदीवारी पर दीपक अवश्य ही जलाना चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima का दिन सिक्ख सम्प्रदाय में प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देवजी का जन्म हुआ था इसलिए इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।

इस दिन सिक्ख श्रद्धालु गुरूद्वारों में जाकर शबद – कीर्तन – गुरूवाणी सुनते हैं और गुरु नानक देवजी के सिखाये मार्ग पर चलने का संकल्प लेते है। इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के लोग अपने घरो और गुरुद्वारों को खूब रौशनी करके जगमगाते है ।

ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय 9425203501

( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ 07714070168) adhyatm jyotish paraamarsh Kendra Raipur Chhattisgarh

Shukrwar ka panchag, शुक्रवार का पंचांग, 15 नवंबर 2024 का पंचांग,


Shukrwar ka panchag, शुक्रवार का पंचांग, 15 नवंबर 2024 का पंचांग,

आप सभी को कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

गुरुवार का पंचांग शनिवार का पंचांग

शुक्रवार का पंचांग, Shukrwar ka panchag, 15 नवंबर 2024 का पंचांग,

शुक्रवार का पंचांग, shukrwar ka panchang,

  • Panchang, पंचाग, Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang, पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-

    1:- तिथि (Tithi)
    2:- वार (Day)
    3:- नक्षत्र (Nakshatra)
    4:- योग (Yog)
    5:- करण (Karan)


    पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी नित्य पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।

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    15 नवंबर 2024 का पंचांग15 November  2024 ka Panchang,

  • महालक्ष्मी मन्त्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

  • ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥


आज का पंचांग, aaj ka panchang,

दिन (वार) – शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु पर जल चढ़ाकर उन्हें पीले चन्दन अथवा केसर का तिलक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।

शुक्रवार के दिन नियम पूर्वक धन लाभ के लिए लक्ष्मी माँ को अत्यंत प्रिय 
“श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” एवं समस्त संकटो को दूर करने के लिए “माँ दुर्गा के 32 चमत्कारी नमो का पाठ” अवश्य ही करें ।
शुक्रवार के दिन माँ लक्ष्मी को हलवे या खीर का भोग लगाना चाहिए ।

शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की आराधना करने से जीवन में समस्त सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है बड़ा भवन, विदेश यात्रा के योग बनते है।

  • *विक्रम संवत् 2081,
  • * शक संवत – 1946,
    *कलि संवत – 5126
    * अयन – दक्षिणायन,
    * ऋतु – शरद ऋतु,
    * मास – कार्तिक माह
    * पक्ष – शुक्ल पक्ष
    *चंद्र बल – वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन,

शुक्रवार को शुक्र देव की होरा :-

प्रात: 6.44 AM से 7.37 AM तक

दोपहर 12.59 PM से 1.52 PM तक

रात्रि 19.40 PM से 8.46 PM तक

कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस तरह से करें स्नान, अक्षय पुण्य की होगी प्राप्ति 

दाहिने हाथ के अंगूठे से नीचे के हिस्से ( शुक्र का स्थान ) और अंगूठे पर थोड़ा सा इत्र लगाकर, ( इत्र ना मिले तो उसके बिना भी कर सकते है) बाएं हाथ के अंगूठे से उस हिस्से को शुक्र की होरा में “ॐ शुक्राये नम:” या

‘ॐ द्रांम द्रींम द्रौंम स: शुक्राय नम:।’ मंत्र का अधिक से अधिक जाप करते हुए अधिक से अधिक रगड़ते / मसाज करते रहे ( कम से कम 10 मिनट अवश्य )I

यह उपाय आप कोई भी काम करते हुए चुपचाप कर सकते है इसके लिए किसी भी विधि विधान की कोई आवश्यकता नहीं है I

सुख समृद्धि, ऐश्वर्य, बड़ा भवन, विदेश यात्रा, प्रेम, रोमांस, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए शुक्रवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा में शुक्रदेव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शुक ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

शुक्र देव के मन्त्र :-

ॐ शुं शुक्राय नमः।। अथवा

” ॐ द्राम द्रीम द्रौम सः शुक्राय नमः “।।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन, देव दीपावली पर ऐसा करने से पूरी होगी सभी मनोकामनाएं, अवश्य जानिए देव दीपावली क्यों मनाते है

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  • आज अति शुभ देव दीपावली का पर्व है । मनुष्यो की दीपावली मनाने के एक पक्ष अर्थात 15 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं की दीपावली अर्थात देव दीपावली होती है।

    मान्यता है कि देव दीपावली मनाने के लिए सभी देवतागण स्वर्ग से धरती पर गंगा नदी के पावन घाटों पर अदृश्य रूप में आते हैं। देव दीपावली दीपावली समारोह का अंतिम उत्सव है।

    एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु जी अपने वामन अवतार के बाद, बलि के पास से लौटकर अपने निवास स्थान बैकुंठ लोक में वापस आये थे और इसी खुशी में सभी देवो ने दीप जलाए थे ।

    एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिन सायंकाल के समय भगवान विष्णु जी का मत्स्यावतार हुआ था, इसलिए इस दिन किये गए दीप दान, का दस यज्ञों के समान फल मिलता है।

    कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि आज के दिन ही भगवानशंकर ने महाभयंकर असुर त्रिपुरासुर का संहार किया था जिसके पापो से मनुष्य, ऋषि, देवता सभी त्रस्त थे।

    त्रिपुरासुर और उसकी असुरी सेना के संहार के पश्चात सभी देवताओं ने दीप जलाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना, आराधना की थी, प्रसन्नता व्यक्त की थी इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती है ।

    देव-दीपावली महोत्सव बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी / वाराणसी में गंगा तट पर बहुत भव्यता से मनाया जाता है, इस उत्सव को देखने के लिए देश से ही नहीं, वरन दुनिया भर से लोग काशी आते है।

    कार्तिक पूर्णिमा की रात में काशी में गँगा नदी के घाटों पर हजारों दीपक जलाकर माँ गंगा की महा आरती होती है, यह अवसर अत्यंत अदभुत प्रतीत होता है, ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश के तारे दीपको में उतर आये है ।

    मान्यता है कि इस दिन सभी मनुष्यों को अपने घर को दीपको की रौशनी से अवश्य ही सजाना चाहिए, ऐसा करने से उस मनुष्य पर देवताओं की असीम कृपा रहती है ।

    शास्त्रो के अनुसार जो जातक कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने घर में दीपमाला जलाकर देव दीपावली मानते है उनके सभी जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है उनको जीवन में सभी सुखो की प्राप्ति होती है।

    नक्षत्र ( Nakshatra ) : भरणी 9.55 PM तक तत्पश्चात कृतिका,

    नक्षत्र के स्वामी :–     भरणी नक्षत्र के देवता यमराज जी और नक्षत्र के स्वामी शुक्र जी है ।

    भरणी नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से दूसरा नक्षत्र है और त्रिकोण का प्रतीक है। यह नक्षत्र प्रकृति के स्त्री वाले पहलू को इंगित करता है।

    भरणी नक्षत्र बलिदान, ईर्ष्या, सहनशीलता और शुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। यह संयम का एक सितारा माना जाता है और गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है। भरणी नक्षत्र सितारा का लिंग मादा है। 

    भरणी नक्षत्र का आराध्य वृक्ष आँवला और नक्षत्र स्वभाव क्रूर माना गया है ।

    भरणी नक्षत्र में पैदा होने वाले एक बड़े दिल वाले व्यक्ति माने जाते हैं, यह लोगो की बातो का बुरा नहीं मानते है। आपकी ताकत आपकी मुस्कुराहट है आप हमेशा शांत और प्रसन्न रहते हैं। आप ईमानदार है और सकारात्मक रहते है। इनका पारिवारिक जीवन सुखमय रहता है ।

    भरणी नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 9, 3 और 12, भाग्यशाली रंग पीला, लाल, और हरा एवं भाग्यशाली दिन मंगलवार तथा गुरुवार माना जाता है । 

    भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को तथा सभी मनुष्यों को जिस दिन भारणी नक्षत्र हो उस दिन नक्षत्र देवता नाममंत्र:- “ॐ यमाय् नमः” l  मन्त्र की एक माला का जप करना चाहिए, इससे भारणी नक्षत्र के शुभ फल मिलते है ।  

    भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातको को भगवान शंकर जी की आराधना परम फलदाई है, इन्हे इस नक्षत्र के दिन महा मृत्युंजय मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।

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  • “हे आज की तिथि ( तिथि के स्वामी ), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
    आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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    आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
    आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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    ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय
    ( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )


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Aacharya Mukti Narayan Pandey Adhyatma Jyotish paramarsh Kendra Raipur

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